Ratan Tata: ये हैं भारत के स्टीलमैन, कहलाते हैं रतन टाटा के 'महागुरू', इनके सामने अंग्रेजों ने भी झुका लिया था सर
Advertisement
trendingNow12403620

Ratan Tata: ये हैं भारत के स्टीलमैन, कहलाते हैं रतन टाटा के 'महागुरू', इनके सामने अंग्रेजों ने भी झुका लिया था सर

Jamshedji Tata Steelmen of India: भारत को 1920 में पहली बार ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया. भारतीय ओलंपिक परिषद के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने 1924 के पेरिस ओलंपिक के लिए भारतीय दल की आर्थिक तौर पर सहायता की.

Ratan Tata: ये हैं भारत के स्टीलमैन, कहलाते हैं रतन टाटा के 'महागुरू', इनके सामने अंग्रेजों ने भी झुका लिया था सर

Steelman of India: "उठा लो टाटा का कोई भी शेयर, पुरानी कंपनी है. आज नहीं तो कल फायदा ही देगी", हर्षद मेहता की लाइफ पर बेस्ड वेब सीरीज 'स्कैम 1992' में ये डायलॉग एक्टर प्रतीक गांधी के थे. भले ही ये मात्र एक वेब सीरीज के डायलॉग हों, लेकिन 21वीं सदी के तेजी से बढ़ते भारत में ये लाइन टाटा के लिए बिलकुल सटीक साबित होती है.

आज के इस दौर में टाटा कंपनी किसी परिचय की मोहताज नहीं है. टाटा कंपनी की स्थापना महान उद्योगपति जमशेदजी टाटा ने की थी, लेकिन इसे नई ऊंचाई तक पहुंचाने का काम किया सर दोराबजी जमशेदजी टाटा ने. उन्होंने साल 1907 में टाटा स्टील और 1911 में टाटा पावर की स्थापना की.

27 अगस्त 1859 को जन्मे देश के महान उद्योगपति दोराबजी टाटा को बिजनेस विरासत में मिला. वे जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे थे. उन्होंने बिजनेस के गुण अपने पिता से सीखे, लेकिन 1904 में अपने पिता की मौत के बाद दोराबजी ने टाटा ग्रुप की कमान संभाली. उन्होंने अपने पिता के सपनों को साकार करने का बीड़ा उठाया. कंपनी का नेतृत्व संभालने के महज तीन साल बाद ही उन्होंने स्टील के फील्ड में कदम रखा और 1907 में टाटा स्टील की स्थापना की.

उस दौर में टाटा स्टील देश का पहला स्टील प्लांट था. लोहे की खानों का अधिकतर सर्वेक्षण उन्हीं के नेतृत्व में हुआ. उन्होंने कारखाना लगाने के लिए लोहा, मैंगनीज, कोयला समेत इस्पात और खनिज पदार्थों की खोज की. साल 1910 आते-आते ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नाईटहुड की उपाधि दी. वे टाटा ग्रुप के पहले चैयरमैन बने और 1908 से 1932 तक चैयरमैन पद पर कायम रहे.

दोराबजी टाटा ही थे, जिन्होंने झारखंड के जमशेदपुर के कायाकल्प की. सर दोराबजी ने अपने पिता के ख्वाबों को पूरा करने के लिए जमशेदपुर का विकास किया. नतीजतन ये शहर औद्योगिक नगर के रूप में भारत के मैप पर छा गया.

बिजनेस के अलावा दोराबजी टाटा की स्पोर्ट्स में भी रूचि थी. कैम्ब्रिज में बिताए दो सालों के दौरान उन्होंने स्पोर्ट्स में अपनी अलग पहचान बनाई. वह क्रिकेट और फुटबॉल भी खेलना जानते थे. इसके अलावा उन्होंने अपने कॉलेज के लिए टेनिस भी खेला और वे एक अच्छे घुड़सवार भी थे.

मम्मी-पापा दोनों इनकम टैक्स अफसर से रिटायर, अब बेटा चाहता है...

उन्होंने भारत को 1920 में पहली बार ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया. भारतीय ओलंपिक परिषद के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने 1924 के पेरिस ओलंपिक के लिए भारतीय दल की आर्थिक तौर पर सहायता की. दोराबजी ने मौत से पहले अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दान कर दिया. इसी से ही सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की स्थापना हुई.

दर्जी के बेटे ने अखबार बेचकर निकाला पढ़ाई का खर्च, उधार के नोट्स से पढ़ाई करके बन गए DM

11 अप्रैल 1932 को सर दोराबजी यूरोप की यात्रा पर गए. इसी यात्रा के दौरान 3 जून 1932 को जर्मनी के बैड किसेनगेन में उनकी मौत हो गई. बाद में इन्हें इंग्लैंड के ब्रुकवुड कब्रिस्तान में उनकी दिवंगत पत्नी लेडी मेहरबाई टाटा के बगल में दफनाया गया. दोनों की कोई संतान नहीं थी.

Adaptive Learning: एडाप्टिव लर्निंग क्या है, NEET और JEE की तैयारी में कैसे कर सकती है हेल्प?

Trending news