GK: कौन सा केमिकल होता है जो आसानी से नहीं मिटती चुनावी स्याही, कहां और कैसे बनती है ये इंक?
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GK: कौन सा केमिकल होता है जो आसानी से नहीं मिटती चुनावी स्याही, कहां और कैसे बनती है ये इंक?

Indelible Ink: इलेक्शन कमीशन की ओर से लोक चुनाव 2024 से जुड़ी सभी सामग्री जरूरी कार्यालयों में भेजी जा रही हैं, जिसमें चुनावी स्याही भी शामिल है. आज हम जानेंगे कि यह कैसे और कहां तैयार की जाती है. 

GK: कौन सा केमिकल होता है जो आसानी से नहीं मिटती चुनावी स्याही, कहां और कैसे बनती है ये इंक?

Election Ink Chemical: अप्रैल में देश में लोकसभा चुनाव 2024 होने हैं. चुनाव आयोग ने आम चुनाव की तैयारियां लगभग पूरी कर ली है. यह तो सभी जानते हैं कि वोटिंग करने वाले मतदाताओं की अंगुली पर स्याही लगाई जाती है, जो आसानी से छूटती नहीं है, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर मतदान के समय लगने वाली इंक में ऐसा कौन सा केमिकल होता है, जिसके कारण कई दिनों तक ये नहीं छूटती? आज हम जानेंगे कि ऐसा क्यों है और यह इंक कहां और कैसे तैयार की जाती है...

चुनावी स्याही
वोटिंग बूथ पर मतदान करने के बाद सरकारी कर्मचारी वोटर की बाएं हाथ की पहली अंगुली पर इलेक्शन इंक लगाता है, जो लगने के बाद आसानी से नहीं मिटती है. इस स्याही को इंडेलिबल इंक भी कहते हैं. यह इंक वोटर की अंगुली पर यह सुनिश्चित करती है कि एक व्यक्ति एक चुनाव में एक से ज्यादा बार वोट नहीं दे सकता है. 

कहां तैयार होती है ये स्याही?

जानकारी के मुताबिक ये स्याही कर्नाटक की कंपनी मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड में तैयार की जाती है.  देश में इलेक्शन इंक बनाने का लाइसेंस सिर्फ इसी कंपनी के पास है. हालांकि, इस कंपनी में कई तरह के पेंट तैयार किए जाते हैं, लेकिन इसकी मुख्य पहचान चुनावी स्याही बनाने के कारण है. कंपनी इस स्याही को थोक में नहीं बेचती, केवल सरकार या चुनाव से जुड़ी एजेंसियों को ही इसकी सप्लाई की जाती है.

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पहली बार कब हुआ इसका इस्तेमाल

साल  1951 में देश के पहले लोक सभा चुनाव से ही मतदाता के उल्टे हाथ की तर्जनी अंगुली पर इंक से निशान लगाने की शुरुआत हो गई थी. चुनाव में पारदर्शिता और फर्जी वोटिंग रोकने के लिए ऐसा किया गया था. उस समय कोई मतदाता कार्ड या पहचान पत्र नहीं थे, इसलिए वोट डालते समय स्याही लगाने की परंपरा शुरू हुई जो आज तक जारी है. 

इस केमिकल का होता है इस्तेमाल

यह इंक पानी से धोने पर भी यह कुछ दिनों तक बनी रहती है. इसे बनाने का उद्देश्य फर्जी मतदान को रोकना था. जानकारी के मुताबिक चुनावी स्याही बनाने के लिए सिल्वर नाइट्रेट केमिकल का होता है, जो पानी के संपर्क में आने के बाद काले रंग का हो जाता है. जब वोटर की अंगुली पर नीली स्याही लगाते है तो सिल्वर नाइट्रेट हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है, जो काले रंग को होता है. यह क्लोराइड पानी में घुलता नहीं है. चुनावी स्याही में एल्कोहल भी होता है, जिसके कारण यह 40 सेकेंड से भी कम समय में सूख जाती है.

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भारत कई देशों को करता है इंक सप्लाई

इस स्याही का इस्तेमाल भारत के अलावा दुनिया के 30 से भी ज्यादा देशों में होता है. सरकारी आंकड़ों के की माने तो मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड द्वारा तैयार चुनावी स्याही 25 से ज्यादा देशों में भेजी जाती है. 

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