Life Support: गंभीर मरीजों से लाइफ सपोर्ट हटाने की कड़ी शर्तें, डॉक्टर की निगरानी में इच्छामृत्यु पर सरकार की नई गाइडलाइन
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Life Support: गंभीर मरीजों से लाइफ सपोर्ट हटाने की कड़ी शर्तें, डॉक्टर की निगरानी में इच्छामृत्यु पर सरकार की नई गाइडलाइन

Health Ministry Guidelines Draft: सरकार ने गंभीर रूप से बीमार लोगों को जीवन रक्षक प्रणाली (लाइफ सपोर्ट सिस्टम) से हटाने के लिए गाइडलाइंस का ड्राफ्ट जारी किया. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पब्लिक कमेंट के लिए जारी इस मसौदे में कई सुझाव और शर्तों को भी जोड़ा है.

Life Support: गंभीर मरीजों से लाइफ सपोर्ट हटाने की कड़ी शर्तें, डॉक्टर की निगरानी में इच्छामृत्यु पर सरकार की नई गाइडलाइन

Terminally Ill Patients Life Support Withdraw: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि अगर अस्पताल द्वारा गठित प्राइमरी और सेकेंडरी मेडिकल बोर्ड, साथ ही मरीज के परिवार या सरोगेट दोनों अपनी सहमति देते हैं, तो गंभीर रूप से बीमार मरीज से जीवन रक्षक प्रणाली (लाइफ सपोर्ट सिस्टम) वापस ली जा सकती है. इसे निष्क्रिय इच्छामृत्यु यानी गंभीर रूप से बीमार मरीजों का लाइफ सपोर्ट हटाने के मामले में बड़ा कदम माना जा रहा है.

जनता की राय के लिए मंत्रालय की ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी

सार्वजनिक टिप्पणी के लिए जारी किए गए मसौदा दिशा-निर्देशों में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि आईसीयू में भर्ती कई रोगी गंभीर रूप से बीमार हैं और उन्हें जीवन रक्षक उपचार (एलएसटी) से लाभ मिलने की उम्मीद नहीं है. इसमें मैकेनिकल वेंटिलेशन, सर्जिकल प्रक्रियाएं, पैरेंट्रल न्यूट्रिशन और एक्स्ट्राकॉर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन (ईसीएमओ) शामिल हैं. हालांकि, ये गाइडलाइंस इन्हीं तक सीमित नहीं हैं.

लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने के पीछे की बड़ी दलीलें क्या हैं?

स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है, "ऐसी परिस्थितियों में, एलएसटी गैर-लाभकारी होते हैं और मरीजों पर अनावश्यक बोझ और पीड़ा बढ़ाते हैं और इसलिए, उन्हें बहुत ज्यादा और अनुचित माना जाता है. इसके अलावा, वे परिवार में भावनात्मक तनाव और आर्थिक कठिनाई के साथ पेशेवर मेडिकल देखभाल करने वालों के लिए नैतिक संकट बढ़ाते हैं. ऐसे रोगियों में एलएसटी को वापस लेना दुनिया भर में आईसीयू देखभाल का एक मानक माना जाता है और कई अदालतों द्वारा इसका समर्थन किया जाता है."

टर्मिनल इलनेस क्या है? स्वास्थ्य मंत्रालय ने क्या बताया है?

टर्मिनल इलनेस एक अपरिवर्तनीय या लाइलाज स्थिति को कहा जाता है, जिससे निकट भविष्य में मृत्यु अपरिहार्य है. मस्तिष्क की गंभीर, दर्दनाक और जानलेवा  चोट जो 72 घंटे या उससे अधिक समय के बाद भी ठीक नहीं होती है, उसे भी इसमें शामिल किया गया है. स्वास्थ्य मंत्रालय की ड्राफ्ट गाइडलाइंस के अनुसार, अगर कोई रोगी ब्रेन डेड है या रोग का इलाज बताता है कि उसे एग्रेसिव मेडिकल ट्रीटमेंट से लाभ होने की संभावना नहीं है या अगर रोगी/सरोगेट ने रोग का निदान करने के बाद, लाइफ सपोर्ट जारी रखने से लिखित इनकार कर दिया है, तो इसे वापस लिया जा सकता है.

कौन होता है सरोगेट? क्या है ड्राफ्ट गाइडलाइइंस की शर्तें

सरोगेट स्वास्थ्य सेवा देने वालों के अलावा एक व्यक्ति होता है जिसे मरीज के सर्वोत्तम हितों के प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार किया जाता है. वह तब मरीज की ओर से निर्णय लेता है जब मरीज खुद निर्णय लेने की क्षमता खो देता है. अगर मरीज ने एडवांस मेडिकल डाइरेक्टिव यानी वैध उन्नत चिकित्सा निर्देश (AMD) बनाया है, तो सरोगेट निर्देश में नामित व्यक्ति होंगे. अगर कोई वैध AMD नहीं है, तो सरोगेट मरीज का निकटतम रिश्तेदार (परिवार) या मित्र या अभिभावक (अगर कोई हो) होगा.

प्राइमरी और सेकेंडरी मेडिकल बोर्ड बनाने के लिए नियम

सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्राइमरी मेडिकल बोर्ड (पीएमबी) जिसे जीवन रक्षक प्रणाली के गैर-जरूरी होने का आकलन करना है, उसमें प्राइमरी डॉक्टर और कम से कम पांच साल के अनुभव वाले कम से कम दो सबजेक्ट एक्सपर्ट शामिल होने चाहिए. उसके बाद, निर्णय को सेकेंडरी मेडिकल बोर्ड (एसएमबी) द्वारा आगे सत्यापित किया जाना चाहिए, जिसमें सीएमओ द्वारा नामित एक रेगुलर मेडिकल प्रैक्टिशनर (आरएमपी) और कम से कम दो सबजेक्ट एक्सपर्ट शामिल होने चाहिए. पीएमबी का कोई सदस्य एसएमबी का हिस्सा नहीं बन सकता.

गाइडलाइंस ड्राफ्ट पर 20 अक्टूबर तक कर पाएंगे कमेंट

इसके अलावा, सरकारी दिशा-निर्देशों में सुझाव दिया गया है कि अस्पताल ऑडिट, निरीक्षण और संघर्ष की स्थिति में समाधान के लिए मल्टी-प्रोफेशनल सदस्यों की एक क्लिनिकल एथिक्स कमिटी का गठन कर सकता है. दिशा-निर्देशों का मसौदा तैयार करने में शामिल डॉक्टरों में से एक डॉ. आर के मणि ने बताया कि टिप्पणियां जमा करने की अंतिम तिथि 20 अक्टूबर है. उन्होंने कहा, "उठाए गए किसी भी मुद्दे को स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से विशेषज्ञ समूह द्वारा उस पर कदम उठाया जाएगा." 

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कुछ अनुभवों के बाद निकट भविष्य में की जाएगी समीक्षा

एक्सपर्ट डॉक्टरों की एक टीम के साझा बयान के मुताबिक, "सुप्रीम कोर्ट ने अपने विवेक से व्यक्ति की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है, लेकिन दुर्भाग्य से इसने प्रक्रिया को बहुत जटिल और कठिन बना दिया है तथा इसे लागू करना कठिन बना दिया है.। लेकिन, यह निश्चित रूप से एक कदम आगे है और उम्मीद है कि इस प्रक्रिया के साथ कुछ अनुभव के बाद निकट भविष्य में इसकी समीक्षा की जाएगी, ताकि इसे अधिक सहज और कम जटिल बनाया जा सके. साथ ही रोगी की स्वायत्तता और सुरक्षा तथा परिवार की इच्छाओं को भी ध्यान में रखा जा सके."

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