Lok Sabha Chunav: यूपी में इस बार सपा ने भी अलग दांव चला है. केवल यादव और मुस्लिम उम्मीदवारों या कहें कि वोटरों तक खुद को फोकस न करते हुए उसने अति पिछड़ा कार्ड खेला है. बीजेपी 2014 से इसी फॉर्मूले पर जीतती आ रही है.
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Samajwadi Party Lok Sabha Chunav: विपक्ष के INDIA गठबंधन में शामिल सपा ने भाजपा को चुनौती देने के लिए यूपी में नई रणनीति बनाई है. मुलायम सिंह यादव के समय से चले आ रहे पुराने मुस्लिम-यादव यानी 'MY' समीकरण से आगे निकलकर अखिलेश यादव ने इस बार सबसे कम मुस्लिम और यादव उम्मीदवार खड़े किए हैं. जी हां, लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 80 सदस्य यूपी से ही जीतकर संसद पहुंचेंगे और विपक्षी गठबंधन में सबसे ज्यादा उम्मीदवार सपा ने खड़े किए हैं. दिलचस्प यह है कि सपा ने इस बार भाजपा का फॉर्मूला अपनाया है.
सपा का अति पिछड़ा कार्ड
सपा ने लोकसभा चुनाव में अति पिछड़ा कार्ड खेला है. पार्टी ने अति पिछड़े और अति दलित जातियों के लोगों को ज्यादा टिकट दिए हैं. सपा 62 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इसमें से 47 पर उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है. इसमें 4 मुस्लिम और 4 ही यादव कैंडिडेट हैं. खास बात यह है कि सभी यादव अखिलेश के अपने परिवार से आते हैं.
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सपा ने सामान्य वर्ग के 6 उम्मीदवारों को टिकट दिया है. 17 सीटों पर लड़ रही कांग्रेस ने भी 2 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. यूपी में मुस्लिम आबादी का प्रभाव समझें तो 13 लोकसभा सीटों पर इनकी जनसंख्या 30 से 50 प्रतिशत तक है. पिछली बार 6 मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे. इस बार भी विपक्ष की तरफ से अब तक 6 मुस्लिम कैंडिडेट खड़े कर दिए गए हैं. हालांकि अकेले लड़ रही बसपा ने भी कई जगहों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतार कर सेंधमारी की रणनीति बनाई है.
भाजपा की स्टाइल में सपा का दांव
2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने अति पिछड़ों और अति दलितों को साधा था. पार्टी का वोट शेयर करीब 38 प्रतिशत रहा और वह दूसरे नंबर पर रही. अगर लोकसभा चुनाव में भी सपा का यह दांव सफल रहा तो भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है. वैसे सपा ने अचानक ओबीसी कार्ड नहीं खेला है. वह पिछले साल से ही इस दिशा में काम कर रही है. पिछले साल जब पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ऐलान हुआ था तो ओबीसी चेहरों को काफी जगह दी गई. ब्राह्मण या ठाकुर से दूरी बनाई गई थी.
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लोकसभा चुनाव में सपा ने PDA का फॉर्मूला उछाला है. इसके जरिए पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को साधने की कोशिश की है. एक्सपर्ट मानते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक भाजपा अति पिछड़ों और अति दलितों के दम पर ही यूपी में अपना प्रभाव बढ़ाने में सफल रही है. सपा को पल्लवी पटेल और ओवैसी के गठबंधन से थोड़ी बहुत टेंशन जरूर मिल सकती है.
ओबीसी और भाजपा
ओबीसी वोटर की ताकत ऐसे समझिए. सीएसडीएस-लोकनीति के आंकड़े बताते हैं कि 30 प्रतिशत से ज्यादा ओबीसी वोट पाने वाली पार्टी को केंद्र में स्पष्ट बहुमत मिला है. 2019 में भाजपा को 44 प्रतिशत ओबीसी वोट मिले थे. 2014 में उसे 34 प्रतिशत ओबीसी वोट मिले थे. यही कारण था कि 30 साल बाद केंद्र में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला.
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यह जानना भी दिलचस्प है कि 2004 और 2009 में कांग्रेस को 24 प्रतिशत ओबीसी वोट मिले थे. केंद्र की कई योजनाएं ओबीसी समुदाय को ध्यान में रखते हुए बनाई गई हैं. क्षेत्रीय और दूसरे दल भी ओबीसी के इर्द-गिर्द इस बार अपनी राजनीति लेकर आए हैं.