Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में हिंदुत्व मतलब बाल ठाकरे, क्या पर्सेप्शन की फाइट में पिछड़ रही भाजपा?
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Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में हिंदुत्व मतलब बाल ठाकरे, क्या पर्सेप्शन की फाइट में पिछड़ रही भाजपा?

Maharashtra BJP News: बाला साहेब ठाकरे इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन महाराष्ट्र में आज भी भाजपा समेत दूसरे दल उनका नाम लेते रहते हैं. वहां उनके बिना हिंदुत्व का चैप्टर अधूरा है. शिवसेना के दो टुकड़े हो गए लेकिन उद्धव और शिंदे सेना दोनों खुद को ठाकरे की विरासत के असली उत्तराधिकारी साबित करने में जुटे हैं. ऐसे में लोकसभा चुनाव आया है. 

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में हिंदुत्व मतलब बाल ठाकरे, क्या पर्सेप्शन की फाइट में पिछड़ रही भाजपा?

Maharashtra Hindutva Politics: महाराष्ट्र की राजनीति हिंदुत्व और बाल ठाकरे के इर्द-गिर्द घूमती रही है लेकिन पिछले 10 साल में भाजपा ने काफी कुछ बदलकर रख दिया है. केंद्र और राज्य में भाजपा सरकार में है. महाराष्ट्र में कहा जाता है कि बाल ठाकरे का नाम लिए बगैर हिंदुत्व की बात पूरी नहीं होती. यहीं से भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती है. लोकसभा चुनाव में वह भले ही 400 पार का नारा लगा रही है लेकिन महाराष्ट्र में वो समीकरण सेट होने में मुश्किल आ सकती है. राज्य की पॉलिटिक्स को गहराई से समझने वाले समाजशास्त्र के प्रोफेसर सुमित म्हस्कर कहते हैं कि 2019 के स्कोर को सुधारना NDA के लिए आसान नहीं होगा. 

बाल ठाकरे हिंदुत्व के चैंपियन

एक लेख में म्हस्कर ने लिखा है कि 2019 में भाजपा और शिवसेना का गठबंधन था और इसने 48 में से 41 लोकसभा सीटें जीती थीं. भाजपा को 23 और शिवसेना को 18 सीटें मिली थीं. इस बार शिवसेना के दो हिस्से हो चुके हैं. वास्तव में महाराष्ट्र अकेला ऐसा राज्य है जहां भाजपा नहीं, एक क्षेत्रीय पार्टी हिंदुत्व की मशाल लेकर चलती रही है. हालांकि अकेले हिंदुत्व ही नहीं चलता, मराठी मानुष की राजनीति भी उसके साथ चलती है, जिसके बाल ठाकरे चैंपियन थे. 

बीजेपी ने पलटी बाजी

भाजपा के बारे में पर्सेप्शन यह बना है कि उसमें ब्राह्मणों और सामाजिक-आर्थिक एलीट क्लास का दबदबा है. कुछ साल पहले तक उसे बाल ठाकरे की लीडरशिप स्वीकार करनी पड़ती थी. जब भाजपा का जनाधार बढ़ा तो उसने गठबंधन की शर्तें अपने हिसाब से तय करनी शुरू कर दी. 2014 में सत्ता में आने के बाद भाजपा ने महाराष्ट्र में गठबंधन के सहयोगी शिवसेना को खुद पर निर्भर बना दिया. उसे डिप्टी सीएम नियुक्त करने का भी मौका नहीं मिला. 

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हालांकि 2019 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद भाजपा को सरकार बनाने के लिए शिवसेना पर निर्भर रहना पड़ा. कई राजनीतिक ड्रामे के बाद उद्धव ठाकरे ने भाजपा से रिश्ता तोड़ दिया और एनसीपी-कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास अघाडी की सरकार बनाई. तमाम विरोधों के बावजूद सभी को चौंकाते हुए MVA सरकार ने अच्छा काम किया. कोरोना काल में उद्धव ठाकरे बेहतर प्रशासक बनकर उभरे. उन्होंने कई बहुजन नेताओं को पार्टी में अहम पद दिया. 

भाजपा ले आई नारायण राणे

शिवसेना को काउंटर करने के लिए भाजपा ने नारायण राणे को राज्य में आगे किया. पार्टी मराठी लोगों तक पहुंचना चाहती थी. इसका एक उदाहरण चिपी एयरपोर्ट के उद्घाटन के दौरान देखने को मिला जब हिंदी बोलने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मराठी में अपनी बात कही. हालांकि इस तरह की कोशिशों से एमवीए सरकार को कोई नुकसान नहीं हुआ. 

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ऐसे समय में महाराष्ट्र की दोनों क्षेत्रीय पार्टियों- शिवसेना और एनसीपी में- एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के नेतृत्व में गुटबाजी हो गई. माना जाता है कि इसके पीछे भाजपा का ही हाथ रहा. ऐसे में उद्धव ठाकरे और शरद पवार के लिए एक अलग तरह की सहानुभूति पैदा हुई है. उद्धव सेना पर निशाना साधने के बावजूद भाजपा को बाल ठाकरे की हिंदुत्व विरासत का जिक्र करना ही पड़ता है. हिंदुत्व का मजबूत नरैटिव बनाने के लिए भाजपा ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे से हाथ मिलाया. राज भीड़ जरूर जुटाते हैं लेकिन हाल के चुनावों में कोई प्रभाव नहीं देखा गया है. 

आरक्षण भाजपा की अगली टेंशन

भाजपा ने कांग्रेस और एनसीपी के कई मराठा नेताओं को अपने साथ जोड़ा लेकिन हाल में आरक्षण को लेकर आंदोलन के कारण मराठा समुदाय के बीच भी दरार पैदा हो गई. मनोज जरांगे का खेमा मराठा नेताओं की आलोचना कर रहा है. मराठा आंदोलन से मराठा और ब्राह्मण के बीच का पुराना तनाव फिर से सामने आ गया है. चूंकि डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस भाजपा के ब्राह्मण चेहरे हैं, ऐसे में मराठा प्रदर्शनकारियों के लिए भाजपा के खिलाफ एंटी- ब्राह्मण नरैटिव तैयार करना आसान हो गया. ऐसे में मराठा नेताओं की एंट्री के बावजूद पार्टी को अपने मराठा वोटों के बारे में भी सोचना होगा. एक और महत्वपूर्ण प्लेयर प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाडी है, जिनके पास दलित-बहुजन का सपोर्ट बेस है.

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एक्सपर्ट कहते हैं कि भाजपा देशभर में भारी-भरकम चुनाव प्रचार कर रही है लेकिन महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना के टूटने में उसकी भूमिका के खिलाफ निगेटिव पर्सेप्शन है. इस बार 2019 से बेहतर नतीजे हासिल करना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा. 

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