Neeyat Review: इमोशंस को नहीं छू पाता कहानी का थ्रिल, विद्या दे चुकी हैं इससे बेहतर परफॉरमेंस
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Neeyat Review: इमोशंस को नहीं छू पाता कहानी का थ्रिल, विद्या दे चुकी हैं इससे बेहतर परफॉरमेंस

Neeyat Film Review: विद्या बालन को बॉक्स ऑफिस (Box Office) सफलता के लिए और इंतजार करना पड़ेगा. हाल की फिल्मों में उन्हें देखकर लगता है कि वह बैक-फुट पर खेल रही हैं. तय है कि इससे कामयाबी नहीं मिलेगी. अनु मेनन के (Anu Menon) साथ उनकी यह दूसरी फिल्म है. यहां भी लेखकों-निर्देशकों ने पुरानी ही गलतियां दोहराई हैं.

 

Neeyat Review: इमोशंस को नहीं छू पाता कहानी का थ्रिल, विद्या दे चुकी हैं इससे बेहतर परफॉरमेंस

Neeyat Movie Review: हमेशा कहा जाता है कि कोई भी काम अच्छी नीयत से किया जाना चाहिए. लेकिन बात सिर्फ नीयत की नहीं है, काम सही से होना भी चाहिए. लेखक-निर्देशक अनु मेनन (Director Anu Menon) ने 2020 में विद्या बालन को लेकर प्रसिद्ध गणितज्ञ शकुंतला देवी (Shakuntala Devi) की बायोपिक (Biopic) बनाई थी. अच्छ नीयत से बनने के बावजूद खराब राइटिंग और कमजोर निर्देशक का शिकार हो गई थी. अनु मेनन के साथ नीयत में भी यही हुआ है. इस बार चार राइटरों ने उनकी फिल्म लिखी और रायता फैल गया. जबकि निर्देशन में मामले में कह सकते हैं कि वह पिछली फिल्म से आगे नहीं बढ़ी हैं. शुंकतला देवी डायरेक्ट ओटीटी (OTT) पर रिलीज हुई थी, लेकिन नीयत को थिएटरों में रिलीज किया गया है.

बर्थडे और मौत
नीयत में ढेर सारे कलाकार हैं. आप गिनते रहते हैं कि अब कौन आया. पहले हाफ में एक के बाद एक इंट्रोडक्शन देर तक चलता है. बात बढ़ती नहीं. ब्रिटेन (Britain) में रहने वाला एक भगोड़ा भारतीय उद्योगपति है, एके यानी आशीष कपूर (राम कपूर). वह 20000 हजार करोड़ का घपला करके भागा है. उसने भारत सरकार (Indian Government) से बात कर ली है कि वह यह पैसा लौटा देगा और बदले में उसके साथ न्याय किया जाएगा. लेकिन जाने से पहले वह स्कॉटलैंड के एक भव्य महल में अपने करीबियों और दोस्तों को जन्मदिन की पार्टी (Birthday Party) देता है. इसी पार्टी में आती है, सीबीआई ऑफिसर (CBI Officer) मीरा राव (विद्या बालन). पार्टी वाले दिन ही तूफान भी आता है और महल तक पहुंचे मेहमानों को पता चलता है कि अब जब तक हालात सुधर नहीं जाते, न कोई आ सकता है और न जा सकता है. कहानी ट्विस्ट यह कि इसी दौरान महल के नीचे गिरकर एके की मौत हो जाती है! मीरा राव को शक है कि यह सामान्य मौत नहीं है और एके की हत्या हुई है. मीरा राव वहां मौजूद हरेक व्यक्ति पर शक करती है. हर शख्स की नीयत पर अंगुली उठाने की वाजिब वजह मीरा के पास राव के पास है. अब आगे क्याॽ

यह है ताना-बाना
अपने मूल आइडिये में यह कहानी थ्रिलर और मिस्ट्री का आभास कराती है, लेकिन फिल्म के रूप में ढीली और बिखरी हुई है. कहानी में आने वाले ट्विस्ट एंड टर्न हास्यास्पद मालूम पड़ते हैं. मीरा राव की जांच के दौरान एक के बाद तीन जानें जाती है. एक कुत्ता भी मारा जाता है. लेकिन सवाल यह कि अंतिम नतीजा क्याॽ फिल्म का अंत हैरान करने के बजाय निराश करता है कि आखिर यह क्या बात हुई! वास्तव में नीयत शुरू से बिखरी हुई है. एके के हर दोस्त और रिश्तेदार की बैक स्टोरी आपको यहां मिलेगी. कोई उसका साला है, तो कोई बहन. कोई उसका सौतेला बेटा है तो कोई उसकी प्रेमिका. एके की एक्स-गर्लफ्रेंड भी है. दोस्त के साथ भी एके की दोस्ती सहज नहीं है. किसी को नशे की लत है तो कोई खबरी है. किसी ने धोखा दिया है, तो किसी ने धोखा खाया है. अजीब तरह से यह ताना-बाना बुना हुआ है.

इमोशन से अलग
दो घंटे से कुछ अधिक की यह फिल्म कहीं-कहीं टुकड़ों में, किसी की बैक स्टोरी में कुछ पल को आकर्षित करती है. लेकिन फिर तुरंत बोरियत की पटरी पर बढ़ जाती है. समझ नहीं आता कि राइटरों ने साथ बैठकर स्टोरी-स्क्रिप्ट लिखी या वे अपनी-अपनी जगह से लिख कर अनु मेनन को भेजते रहे. जो अपने हिसाब से चीजों को खांचे में फिट करती रहीं. फिल्म से दूसरे हिस्से में लगता है कि हर किरदार दूसरे पर हावी होने की कोशिश में है. कहानी भी यहां से वहां छलांग लगाती है. ऐसे माहौल में दर्शक न तो किसी किरदार से इमोनशली कनेक्ट हो पाता है और न कहानी से सीधा जुड़वा महसूस करता है. दूसरे हाफ में देखते हुए सिर्फ इतना लगता है कि यह सब कब खत्म होगा.

करें थोड़ा इंतजार
फिल्म की कहानी और स्क्रिप्ट ऐसे लिखी गई है कि दर्शक सिर्फ दर्शक है. लेकिन सामने जो चल रहा होता है, उससे भी रोमांच पैदा नहीं होता. विद्या बालन लीड करती हैं, मगर उनका परफॉरमेंस औसत है. वह इससे बेहतर काम पिछली फिल्मों में कर चुकी हैं. फिर जिस तरह के संवाद उनके हिस्से आए हैं, वह चौंकाते हैं कि क्या कोई अफसर ऐसे बात करेगा. राम कपूर जरूर आकर्षक लगे हैं. भगोड़े भारतीय बिजनेसमैन की तरह उनका लुक आता है और उनका काम भी अच्छा है. राहुल बोस कुछ दृश्यों में गुदगुदाते हैं. जबकि नीरज काबी एके के दोस्त की भूमिका में जमे हैं. हालांकि कई बार देखकर लगता है कि निर्देशक उन्हें टाइपकास्ट करते जा रहे हैं. के के रूप में अमृता पुरी सुंदर लगी हैं, जबकि प्राजक्ता कुछ दृश्यों में परफॉरमेंस से चौंकाती हैं. कुल मिलाकर फिल्म एंटरटेन नहीं करती और ओटीटी पर इसका इंतजार किया जा सकता है.

निर्देशकः  अनु मेनन
सितारे: विद्या बालन, राम कपूर, राहुल बोस, शहाना गोस्वामी, शशांक अरोरा, नीरज काबी, दिपनिता शर्मा, अमृता पुरी, निकी वालिया, दानेश रजवी, प्राजक्ता कोली
रेटिंग**

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