सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यों है: गुनगुनाइये शहरयार के गीत, आज है ‘उमराव जान’ के शायर का जन्मदिन
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सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यों है: गुनगुनाइये शहरयार के गीत, आज है ‘उमराव जान’ के शायर का जन्मदिन

उर्दू शायरी का राजकुमार कहे जाने वाले शहरयार ने हिंदी फिल्मों में थोड़ा लिखा, लेकिन वह बहुत लिखने वालों पर भारी है। उन्हें खास तौर पर उमराव जान की गजलों के लिए याद किया जाता है। शहरयार के लिए फिल्मी दुनिया के दरवाजे खुले थे, मगर उन्होंने गाने लिखने को अपना पेशा नहीं बनाया।

सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यों है: गुनगुनाइये शहरयार के गीत, आज है ‘उमराव जान’ के शायर का जन्मदिन

हिंदी फिल्मों के गीतों के महासागर में मोतियों जैसे गीत रचने वाले शायर शहरयार का आज जन्मदिन है। वह रहते तो 86वां जन्मदिन मना रहे होते। यह हिंदी सिनेमा की किस्मत है कि उसके लिए उर्दू के कुछ बेहतरीन शायरों ने गीत लिखे हैं। ये ऐसे गीत हैं, जो खास और आम, हर सुनने वालों को बरसों-बरस बाद भी अपनी मिठास से भिगो देते हैं तो कभी उदासी में तर कर देते हैं। शहरयार भी ऐसे ही शायर-गीतकार थे। ऐसी कोई शाम नहीं ढलती, जब उनके गीत इस महाद्वीप के किसी न किसी कोने में सुने नहीं जा रहे होते।

फुलटाइम नहीं

शहरयार उर्दू शायरी के राजकुमार थे। अल्मोड़ा में 16 जून 1936 को पैदा हुए शहरयार अलगीढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफेसर थे। साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ जैसे पुरस्कार पाने वाले शहरयार को हिंदी सिनेमा गमन (1978) और उमराव जान (1981) के लिए याद करता है। उन्होंने यश चोपड़ा की फासले (1985) के लिए भी गीत लिखे। यश चोपड़ा ने जब शहरयार को तीन फिल्में ऑफर की तो उन्होंने इंकार कर दिया। वह फिल्मों में गीत लिखने को पेशा नहीं बनाना चाहते थे। उनका कहना था कि मैं चाहता तो पूरी जिंदगी फिल्मी गीतों के नाम कर देता, लेकिन यह बहुत खराब काम होता। तब लोगों की राय मेरे बारे में कुछ और होती। शहरयार के मुताबिक, ‘फिल्मों में फुलटाइम काम करने का मतलब है कि आपके पास कोई चॉइस नहीं है। आपको दूसरों के इशारे पर काम करना पड़ेगा।’

कैसे आए फिल्मों में

ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के बाद शहरयार ने एक इंटरव्यू में बताया था कि यह सिर्फ इत्तेफाक था। फिल्म निर्देशक मुजफ्फुर अली अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में मेरे काफी जूनियर थे. वह बीएससी कर रहे थे. वह पेंटिंग करते थे. वह मेरी शायरी भी काफी पसंद करते थे. मेरी शायरी की पहली किताब इस्मे-आजम उनके पास थी. जब वह मुंबई चले गए, तो वहां से एक दिन फोन करके कहा कि आपकी दो गजलें सीने में जलन और अजीब हादसा मुझ पर गुजर गया यारो अपनी फिल्म में ले रहा हूं। यह फिल्म थी, गमन। बस, यहीं से शुरू हुआ फिल्मों का सफर।

याद हमें सब

* सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यों है

इस शहर में हर शख्स परेशान क्या क्यों है

(फिल्मः गमन, 1978। गायकः सुरेश वाडेकर)

* जुस्तजू जिसकी की थी उसको तो न पाया हमने

इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने

(फिल्मः उमराव जान, 1981। गायिकाः आशा भोंसले)

* दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए

बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए

(फिल्मः उमराव जान, 1981। गायिकाः आशा भोंसले)

* ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं

तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं

(एलमबः होप, 1981। गायिकाः चित्रा सिंह)

* ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है

हदे-निगाह तक जहां गुबार ही गुबार है

(फिल्मः उमराव जान, 1981। गायिकाः आशा भोंसले)

* जिंदगी जब भी तेरी बज्म में लाती है हमें

ये जमीं चांद से बेहतर नजर आती है हमें

(फिल्मः उमराव जान, 1981। गायिकाः आशा भोंसले)

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