Global Warming In 2024: गर्मी हर महीने नया रिकॉर्ड बना रही है. वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर यही हाल रहा तो दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी.
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Global Warming 1.5 degrees Celsius Threshold: मई का महीना अब तक का सबसे गर्म मई साबित हुआ. देखा जाए तो पिछले एक साल में हर महीने में गर्मी का नया रिकॉर्ड बना है. पिछले महीने का एवरेज ग्लोबल टेंपरेचर औसत, 1850-1900 प्री-इंडस्ट्रियल रेफरेंस पीरियड के लिए अनुमानित मई एवरेज से 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. 12 महीने की टाइमलाइन लें तो जून 2023 - मई 2024 के बीच, औसत तापमान 1850-1900 के औसत से 1.63 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा.
6 जून को विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की रिपोर्ट आई. इसके मुताबिक, 2024 और 2028 के बीच किसी एक साल में औसत तापमान के प्री-इंडस्ट्रियल लेवल से 1.5 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाने की आशंका 80% तक बढ़ गई है. एक साल पहले तक, इसकी आशंका 66% थी. ये आंकड़े डराने वाले हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि दुनिया 1.5 डिग्री वाली लिमिट पार करने वाली है. वह लिमिट तो दो से तीन दशक लंबे अंतराल पर गर्मी के लिए है.
2015 में भारत समेत 195 देशों ने पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसमें प्रण लिया गया कि सदी के अंत तक ग्लोबल टेंपरेचर को प्री-इंडस्ट्रियल लेवल के 2 डिग्री सेल्सियस ऊपर तक जाने नहीं दिया जाएगा. ग्लोबल तापमान को इससे कहीं नीचे मेंटेन किया जाएगा.
पेरिस एग्रीमेंट के अनुसार, सभी देश यह कोशिश करेंगे कि गर्मी 1.5 डिग्री सेल्सियस वाली सीमा पार न करने पाए. समझौते में जिस प्री-इंडस्ट्रियल दौर की बात हुई थी, उसे साफ नहीं किया गया था. जलवायु विज्ञानी आमतौर पर 1850 से 1900 को बेसलाइन की तरह लेते हैं.
सिर्फ 1.5 डिग्री सेल्सियस ही क्यों?
1.5 डिग्री सेल्सियस की यह सीमा एक फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट पर आधारित थी. रिपोर्ट के मुताबिक, अगर यह सीमा पार हुई तो 'कुछ इलाकों और असुरक्षित इकोसिस्टम' को बहुत ज्यादा खतरा पैदा हो जाएगा.
अगर दुनिया का औसत तापमान प्री-इंडस्ट्रियल लेवल से 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया तो जलवायु परिवर्तन के भयावह परिणाम देखने को मिलेंगे. कुछ इलाकों के लिए औसत तापमान में इतनी बढ़त का मतलब तबाही होगा. इसी को देखते हुए 2 नहीं, 1.5 डिग्री की लिमिट रखी गई.
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1.5 डिग्री सेल्सियस की लिमिट किसी बांध जैसी नहीं है कि औसत तापमान उससे ज्यादा बढ़ा तो अचानक तबाही आ जाएगी. लेकिन इतना जरूर है कि लंबे समय तक यह लिमिट क्रॉस होती रही तो दुनिया तबाही की तरफ बढ़ जरूर जाएगी. समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा, भयानक बाढ़ और सूखा आम हो जाएंगे. जंगल में आग कहीं तेजी से और कहीं बड़े पैमाने पर लगेगी.
कुछ हद तक दुनिया ऐसे प्रभावों से अब भी जूझ रही है. मई के आखिरी दिनों में, उत्तर और मध्य भारत का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा था. दुनियाभर में पिछले एक साल में लू की वजह से सैकड़ों मौतें दर्ज की गई हैं.
दुनिया को कैसे बचाया जाए?
जब से इंसान ने तापमान का रिकॉर्ड रखना शुरू किया है, 2023 सबसे गर्म साल साबित हुआ. WMO के मुताबिक, दुनिया का औसत तापमान प्री-इंडस्ट्रियल लेवल से 1.45 डिग्री सेल्सियस ऊपर तक पहुंच गया था. हालांकि, इसके पीछे अल-नीनो को भी वजह बताया गया था. प्रशांत महासागर का यह मौसमी पैटर्न अब अपने चरम को पार कर चुका है. आने वाले महीनों में ठंडे ला नीना की ओर बढ़ेगा.
WMO की चेतावनी है कि अगले पांच साल में 1.5 डिग्री सेल्सियस वाली लिमिट अस्थायी तौर पर ही सही, पार तो होगी. उस लिमिट के दायरे में रहने का एक ही तरीका है कि ग्रीन हाउस गैसों (GHGs) के उत्सर्जन पर लगाम कसी जाए.
दुनिया को कोयला, तेज और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों को जलाना बंद करना होगा. हालांकि, इस दिशा में अब तक ठोस कोशिशें नहीं हुई हैं. 2023 में, वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा ऐतिहासिक स्तर पर जा पहुंची थी.