PM Modi Meets Xi Jinping: दगाबाज ड्रैगन का दागदार इतिहास, भारत भरोसा तो कर ले पर चौकन्ना रहने में ही भलाई
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PM Modi Meets Xi Jinping: दगाबाज ड्रैगन का दागदार इतिहास, भारत भरोसा तो कर ले पर चौकन्ना रहने में ही भलाई

Tainted History Of Treacherous Dragon: रूस के हेरिटेज शहर कजान में आयोजित 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 साल बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मुलाकात की. इस मुलाकात के दौरान भारत और चीन के बीच कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की गई. 

PM Modi Meets Xi Jinping: दगाबाज ड्रैगन का दागदार इतिहास, भारत भरोसा तो कर ले पर चौकन्ना रहने में ही भलाई

India- China Relations: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मुलाकात और द्विपक्षीय बातचीत की. रूस के हेरिटेज शहर कजान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन ( BRICS Summit) के बाद मिले दोनों राष्ट्र प्रमुखों के बीच साल 2020 में गलवान झड़प के बाद यह पहली द्विपक्षीय बैठक थी. लगभग एक घंटे तक चली बैठक में पीएम मोदी और जिनपिंग ने सीमा सुरक्षा समेत तमाम अहम मुद्दों पर बातचीत की. 

पीएम मोदी ने कहा- भारत और चीन के बीच संबंध महत्वपूर्ण

पीएम नरेंद्र मोदी ने शी जिनपिंग के साथ मुलाकात के बाद उसके बारे में एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि भारत और चीन के बीच संबंध महत्वपूर्ण है. ये संबध ना केवल दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं बल्कि दुनिया में शांति और स्थिरता के लिए भी अहम है. एक दूसरे का सम्मान, भरोसा, संवेदनशीलता संबंधों को आगे का रास्ता दिखाएगी.

दोनों देशों के बीच बर्फ पिघल गई? क्या रिश्ते फिर से मजबूत हुए

पीएम मोदी और शी जिनपिंग मुलाकात के बाद कहा जाने लगा है कि दोनों देशों के बीच बर्फ पिघल गई है. रिश्ते फिर से मजबूत हो गए हैं. इसके बावजूद लोगों के मन में सवाल उठता है कि जिस ड्रैगन का इतना दागदार इतिहास है उस पर भरोसा कैसे किया जाए. साथ ही अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकारों ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि चीन के साथ संबंधों के दौरान आगे बढ़ने में भारत के चौकन्ना रहने में ही भलाई है.

बार-बार भरोसा तोड़ने वाले चीन पर आगे कैसे विश्वास किया जाए?

साल 1962 से लेकर डोकलाम और गलवान तक बार-बार भरोसा तोड़ने वाले चीन पर आगे कैसे विश्वास किया जा सकता है? भारत-चीन द्विपक्षीय वार्ता की ब्रीफिंग के लिए विदेश मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस सवाल का विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने जवाब दिया. उन्होंने कहा कि मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि पिछले दो दिन में जो कदम हमने उठाए गए हैं, वो हमारे सामने हैं. इन पर जो काम हुआ है वो काफी समय से चल रहा है.

विक्रम मिस्री ने कहा- सीमा पर शांति का रास्ता अब खुल गया

विक्रम मिस्री ने कहा कि  इनसे हमारी एक तरह से जो प्रक्रिया है सामान्य रिश्ते बनाने के लिए, वो यात्रा एक तरह से चल पड़ी है. जो पीछे अभी समझौता हुआ है उससे सीमा पर शांति का रास्ता अब खुल गया है. इस रास्ते पर अब आगे चलने की हम दोनों (भारत-चीन) को आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि जहां तक चीन पर भरोसे का सवाल है, आगे चल के हम दोनों के बीच जो प्रतिक्रिया होगी, हमे आशा है कि उससे दोनों देशों के बीच भरोसा बढ़ेगा.

इस द्विपक्षीय बातचीत से क्या LAC पर हालात ठीक हो जाएंगे?

इस द्विपक्षीय बातचीत से क्या LAC पर हालात ठीक हो जाएंगे?  विदेश सचिव मिस्त्री ने इस सवाल के जवाब में  कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि इससे निश्चित रूप से एलएसी पर स्थिति में सुधार होगा. उन्होंने कहा कि जहां तक विश्वास निर्माण उपायों से संबंधित सवाल की बात है तो हमारे पास कई उपाय हैं और ये लगातार विकसित होते रहते हैं, क्योंकि दोनों पक्ष एक बार फिर कई प्रारूपों में जुड़ते हैं. मुझे लगता है कि यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे में दोनों पक्षों के बीच चर्चा होगी. बाकी बॉर्डर पर सैन्य स्थिति के बारे में सैन्य नेतृत्व ही सही बता पाएंगे क्योंकि यह ऑपरेशनल मामलों से जुड़ा हुआ है. 

पीएम मोदी ने जिनपिंग को महाबलिपुरम घुमाया, बदले में गलवान

विदेश सचिव के जवाब के बावजूद भारत को चीन के साथ संभलकर आगे बढ़ने की जरूरतों पर इसलिए जोर दिया जा रहा है क्योंकि ड्रैगन का काफी दागदार इतिहास है. सबसे हालिया उदाहरण के तौर पर देखें तो पांच साल पहले पीएम मोदी ने शी जिनपिंग को महाबलिपुरम घुमाया था और ड्रैगन ने डोकलाम और गलवान में धोखे से इसका रिटर्न गिफ्ट दिया था. 1949 में नए चीन की स्थापना के अगले साल भारत ने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए, 1954 में पंचशील का समझौता किया, संयुक्त राष्ट्र में चीन की मदद करने में भी भारत आगे रहा.

भारत के 'हिंदी-चीनी भाई भाई' को ड्रैगन ने हमेशा पलीता लगाया

भारतीय नेताओं की भलमनसाहत और 'हिंदी-चीनी भाई भाई' की भावनाओं को ड्रैगन ने हमेशा पलीता लगाया. चीन नें मैत्री को ताक पर रखकर 1962 में भारत पर हमला किया. भारत की बहुत सारी जमीन पर कब्जा करते हुए 21 नवम्बर 1962 को एकपक्षीय युद्धविराम की घोषणा कर दी. तब से दोनों देशों के रिश्ते सामान्य नहीं हो पाए हैं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने चीन से दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया, तो ड्रैगन ने 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में अन्यायपूर्ण तरीके से पाकिस्तान का एकतरफा सर्मथन कर दिया.

पहली बार 1966 में चीन के राष्ट्रपति की तीन दिनों की भारत यात्रा

चीन के राष्ट्रपति और साम्यवादी दल के सबसे बड़े नेता जियांग जोमीन ने पहली बार नवंबर 1966 में तीन दिन की भारत यात्रा की. इस दौरान 3488 कलोमीटर लंबी वास्तविक नियन्त्रण रेखा (LAC) पर एक-दूसरे द्वारा आक्रमण नही करने का ऐतिहासिक समझौता किया गया, लेकिन उसका हश्र जगजाहिर है. 1967 में सिक्किम में और 1987 में अरुणाचल प्रदेश में भी दोनों देशों के बीच झड़पें हुईं, लेकिन इसके अलावा दोनों देशों के बीच नरमी रही.

जार्ज फर्नाण्डीस ने चीन को कहा था भारत का सबसे बड़ा दुश्मन

1990 के दशक में रिश्ते एक बार फिर से बिगड़ गए. 1993 और 1996 के समझौते के बाद भी चीन सरहद पर अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के परमाणु परीक्षण के बाद दोनों देशों के बीच फिर से तनाव पैदा हो गया. रक्षामंत्री जार्ज फर्नाण्डीस ने चीन को 'भारत का सबसे बड़ा शत्रु' की संज्ञा दे डाली थी. तब चीन ने अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों के साथ मिलकर एन०पी०टी० और सी०टी०बी०टी० पर दस्तखत करने के लिए भारत पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था.

चीन की कथनी और करनी में अंतर का रहा है लंबा इतिहास 

अक्टूबर 1998 में चीन ने अटल बिहारी वाजपेयी की दलाई लामा के साथ मुलाकात की आलोचना की और इसे 'चीन के खिलाफ तिब्बत-कार्ड का प्रयोग' कहा. कारगिल युद्ध के पहले और उसके दौरान भी पाकिस्तान के साथ चीन की साजिशें सामने आई. हालांकि, उसके बाद भी हालात सामान्य करने की कई कोशिशों के मद्देनजर दोनों देशों के प्रमुख एक-दूसरे के मेहमान बने. कई बैठकों में तमाम समझौते भी हुए, लेकिन चीन की कथनी और करनी में अंतर का लंबा इतिहास रहा है. 

भारत के साथ ड्रैगन का हर मोड़ पर दोहरा रवैया, धोखे की मंशा

डोकलम विवाद के दौरान चीन ने भूटान के हिस्से पर सड़क बनाने की कोशिश की, जबकि समझौते के मुताबिक चीन को इस क्षेत्र में सड़क बनाने का अधिकार नहीं था. उसने भारत पर सामरिक बढ़त हासिल करने के लिए यह हरकत की. हालांकि भारत के हस्तक्षेप और कड़े रुख के बाद उसे कदम पीछे खींचने पड़े. भारत की संप्रभुता का सम्मान करने की बातें करने वाले चीन ने भारत द्वारा अपने हिस्से में एलएसी तक रोड सहित दूसरे कंस्ट्रक्शन पर एतराज जताया, जबकि दूसरी ओर खुद ऐसे निर्माण कार्य करता रहा.

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भारत को घेरने की नीयत से चीन ने सभी पड़ोसियों को खूब उकसाया

सीमा विवाद की आड़ लेकर चीन हमेशा भारत के अलग-अलग हिस्सों पर अपना दावा जताता रहता है. कई बार भारतीय इलाके का मनमाना नामकरण कर देता है. कई बार नक्शे को बिगाड़कर दिखा देता है. इस बार भारत ने चीन से विवादित हिस्सों पर उसके दावों को आधिकारिक तौर पर दर्ज करने के लिए कहा तो वह मुकर गया. गलवान घाटी में भी ऐसे ही अचानक हमला करने और मार खाकर पीछे हटने के बाद चीन ने सैन्य स्तर पर बातचीत बढ़ाई.

आधिकारिक तौर पर परमाणु अप्रसार नीति का हिमायती रहे चीन ने महज भारत को घेरने की नीयत से पाकिस्तान को परमाणु संपन्न देश बनाया. दूसरे देशों में दखल न देने का दावा करने के बावजूद चीन ने हाल के वर्षों में नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश जैसे सभी पड़ोसी देशों को भारत के खिलाफ उकसाया. 

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पीएम मोदी ने साल 2014 के बाद बढ़ाए 18 बड़े कदम, कूटनीति का असर

साल 2014 के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दोस्ती के हरसंभव प्रयास किए. हालांकि, 18 से ज्यादा बड़ी कोशिशों के बाद चीन के तेवर अब जाकर नरम पड़े हैं. इसमें व्यापार, सांस्कृतिक, अंतरराष्ट्रीय राजनीति समेत कई कूटनीतिक प्रयासों का रंग दिख रहा है. इसके बावजूद भारत को भरोसे के मामले में दागदार इतिहास चीन के साथ काफी संभलकर आगे बढ़ने और चौकन्ना बने रहने में ही भलाई है.

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