Egg या स्पर्म डोनर का नहीं होगा बच्चे पर कानूनी अधिकार, जान लीजिए क्या कहता है कानून
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Egg या स्पर्म डोनर का नहीं होगा बच्चे पर कानूनी अधिकार, जान लीजिए क्या कहता है कानून

Bombay High Court: क्या कोई अपने एग या स्पर्म डोनेट करने के बाद उस बच्चे को कानूनन अपना बच्चा बताकर अधिकार जमा सकता है या नहीं? ये वो सवाल है जिस पर देश में विवाद के कई मामले सामने आए. अब मुंबई हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में इस मुश्किल सवाल की पेचीदगियों को सुलझा दिया है. क्या कहता है कानून, आइए आपको बताते हैं

 

Egg या स्पर्म डोनर का नहीं होगा बच्चे पर कानूनी अधिकार, जान लीजिए क्या कहता है कानून

Surrogacy IVF ART Technology Explained: शुक्राणु या अंडाणु दान करने वाले का बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार होगा या नहीं? इस विवाद को फिल्में और सीरियलों में भी दिखाया जा चुका है. इस बीच बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए बड़ी बात कही है. देश में ऐसे विवादों के कई मामले आए जब डोनर्स ने बच्चे के जन्म के बाद उसके बायोलॉजिकल पैरेंट होने का दावा किया. इन तमाम कानूनी बारीकियों पर बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने स्थिति साफ कर दी है. हाई कोर्ट ने कहा कि स्पर्म या अंडाणु डोनर का बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता और वह उसका जैविक माता-पिता होने का दावा नहीं कर सकता.

क्या है पूरा मामला?

बॉम्बे हाई कोर्ट ने साफ किया था कि स्पर्म या ऐग डोनर का बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है. वो उसके बायोलॉजिकल माता-पिता होने का दावा भी नहीं कर सकते हैं. रिश्तों के इस बेहद पेचीदा मामले में याचिकाकर्ता के पति ने दावा किया था कि चूंकि उसकी साली डोनर थी इसलिए उसे जुड़वा बच्चों की जैविक माता कहलाने का वैध अधिकार है और उसकी पत्नी का उन पर कोई अधिकार नहीं है. HC ने पति की दलील को खारिज करते हुए कहा डोनर उसकी बहन हो या कोई और उसे ये दावा करने का वैध अधिकार नहीं है कि वो जुड़वा बच्चों की जैविक मां है. 

क्या कहता है कानून?

यूं तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ऐसे बाकी मामलों के लिए नजीर बन जाते हैं. लेकिन यहां तक नौबत क्यों आती है? ऐसे विवादों को रोकने के लिए कानून में क्या इंतजाम किए गए हैं, अब उनके बारे में आपको बताते हैं. सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 और सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) (विनियमन) अधिनियम, 2021 क्या है? ये जानना जरूरी है.

दुनिया भर में करीब 18 से 20% जोड़े निसंतानता की समस्या से पीड़ित हैं. 1978 में दुनिया के पहले इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) चाइल्ड, लुइस का जन्म होने के बाद निसंतान दंपतियों में जैविक बच्चा होने की उम्मीद बढ़ी. ये संभव हुआ 'सहायक प्रजनन तकनीक' (ART) से जिसके इस्तेमाल में कुछ सालों में बेहिसाब इजाफा हुआ है. ब्रिटेन, पहला देश था जिसने सहायक प्रजनन को कानूनी दायरे में लाने के लिए संसद में कानून पास किया. कई देशों में ऐसे कानून बने. अधिकांश देशों में ऐसे एक्ट के तहत डोनर पैदा होने वाले बच्चे पर अपना अधिकार छोड़ देता है.

साल 2021 में संसद के एक अधिनियम द्वारा सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) अधिनियम, 2021 को पारित किया गया. ये अधिनियम सरोगेट माताओं के अधिकारों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है. ये एक्ट सहायक प्रजनन की इस फास्टेस्ट ग्रोइंग इंडस्ट्री की निगरानी, विनियमन, लाइसेंसिंग और सभी में अच्छे नैतिक व्यवहार सुनिश्चित करने से जुड़ा है.

बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) के साथ 1978 में करोड़ों डॉलर की रिप्रोडक्टिव टूरिज्म इंडस्ट्री की नींव पड़ी. भारत की बात करें तो एक अनुमान के मुताबिक देश में करीब 45000 ART क्लीनिक हैं. ऐसे में तमाम कानूनी, नैतिक और सामाजिक मुद्दे सामने आने के चलते देश में एक स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल की जरूरत महसूस हुई. ऐसे तमाम विवादों का समाधान निकालने की एक बड़ी कोशिश 2005 में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने की. ICMR ने ART क्लीनिकों की मान्यता, सुपरविजन और विनियमन के लिए गाइडलाइंस जारी करके की दिशा में काम किया.

भारत में गृह मंत्रालय ने सरोगेसी को कानूनी दायरे में लाने के लिए समय-समय पर दिशानिर्देश जारी किए हैं. 2009 में विधि आयोग ने अपनी 228वीं रिपोर्ट में ART के सही इस्तेमाल और सरोगेसी को वैध बनाने की सुविधा के लिए कानून बनाने की सिफारिश की.

संसद ने 8 दिसंबर, 2021 को सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 पारित किया. जिसे 18 दिसंबर, 2021 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली. इस अधिनियम का उद्देश्य ART क्लीनिकों का विनियमन और पर्यवेक्षण करना और उन्हें सहायता प्रदान करना है. 

एआरटी अधिनियम की महत्वपूर्ण बातें

ART एक्ट के तहत, प्रत्येक एआरटी क्लिनिक और बैंकों का रजिस्ट्रेशन पहली अनिवार्य शर्त होता है. इस तरह की रजिस्ट्री, ART सेवाएं प्रदान करने वाली सभी संगठनों की जानकारी एक केंद्रीय डेटाबेस में स्टोर हो जाती है. राज्य सरकारों को पंजीकरण प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए अधिकारियों को नियुक्त करना जरूरी है. कोई भी व्यक्ति/क्लिनिक/बैंक एआरटी प्रक्रियाएं प्रस्तुत नहीं करेगा जब तक कि वे रजिस्ट्री में पंजीकृत न हों.

अधिनियम एक राष्ट्रीय प्रजनन प्रौद्योगिकी और सरोगेसी बोर्ड की स्थापना का भी प्रावधान करता है, जो एआरटी क्लीनिकों और बैंकों में काम करने वाले व्यक्तियों द्वारा पालन की जाने वाली आचार संहिता निर्धारित करेगा और भौतिक बुनियादी ढांचे, प्रयोगशाला और नैदानिक ​​​​उपकरण और विशेषज्ञ के न्यूनतम मानक भी निर्धारित करेगा. क्लीनिकों और बैंकों द्वारा नियोजित की जाने वाली जनशक्ति. बोर्ड रजिस्ट्री के कामकाज की निगरानी भी करता है.

यह अधिनियम एआरटी बैंकों और क्लीनिकों द्वारा निभाए जाने वाले कर्तव्यों को भी निर्धारित करता है, जिसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि कमीशनिंग दंपति, महिला और दाता एआरटी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए पात्र हैं या नहीं. यहां ये भी सुनिश्चित किया जाएगा कि डोनर पूरी तरह स्वस्थ्य है कि नहीं. ART के दायरे में कमीशनिंग जोड़ों और महिलाओं की काउंसलिंग होती है. उन्हे परामर्श सेवाएं दी जाती हैं. इसमें उन्हें बच्चे के अधिकार के बारे में बताया जाता है. कमीशनिंग करने वाले जोड़ों और महिलाओं की जानकारी को गोपनीय रखा जाता है. इसके अलावा किसी तरह के विवाद होने की स्थिति में एक शिकायत निवारण कक्ष बनाने का भी प्रावधान है. यह अधिनियम केंद्र सरकार को जरूरत पड़ने पर क्लीनिकों और बैंकों दोनों को अपनी गाइडलाइंस पूरी तरह लागू कराने के लिए नियम बनाने का भी अधिकार देता है.

अधिनियम अपने प्रावधानों के उल्लंघन की स्थिति में कड़ी सजा का प्रावधान सुनिश्चित करता है. पहली बार उल्लंघन करने वालों को ₹5 लाख से ₹10 लाख के बीच जुर्माना देना पड़ सकता है. दूसरी बार दोषी पाए जाने पर आरोपी को 8 से 12 साल की कैद की सजा होने के साथ ₹10 लाख का जुर्माना भी देना पड़ सकता है. वहीं लिंग परीक्षण के खुलासे और भ्रामक विज्ञापन करने वाले क्लीनिकों या बैंकों के संचालकों को 5 से 10 साल की कैद या 10 से 25 लाख रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.

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