Lakshadweep news: समंदर के सिकंदरों की बात करें तो भले ही अरेबियन नाइट्स वाले बगदाद के सिंदबाद नाम के जहाजी के किस्से मशहूर हों. लेकिन भारत-मालदीव विवाद के बीच आपको लक्षद्वीप के पद्मश्री जहाजी अली मानिकफ़ान के बारे में बताते हैं, जिनके बारे में जानकर आपके जनरल नॉलेज में इजाफा होगा, वहीं उनकी रोमांचकारी जिंदगी के बारे में जानकर मजा आ जाएगा.
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Lakshadweeps Padma Shri Ali Manikfan: लक्षद्वीप की आजकल खूब चर्चा हो रही है. खासकर पीएम मोदी की विजिट के बाद हर खासो आम वहां जाने को बेकरार और बेचैन दिख रहा है, हो भी क्यों ना क्योंकि ये आईलैंड है ही इतना खूबसूरत की आप इसकी तस्वीरें देखकर सुधबुध खो बैठेंगे. ऐसे में आइए आपको लक्षद्वीप के समंदर से जुड़ी ऐसी कहानी बताते हैं. जिसमें मौजूद रोमांच आपका दिल खुश करने के साथ आपका दिन बना देगा.
समुद्री यात्राओं में दो चीजें हमेशा महत्त्वपूर्ण रही हैं- दिशा और नाविक (जहाजी) की मनोदशा. एक से नाविक समुद्र में अपना जहाज उतारने से पहले ही रूट का अंदाजा लगाकर दिशा का निर्धारण कर लेता था. वहीं नाविक की मनोदशा तब काम आती जब रोचक और रोमांचकारी समुद्री यात्राओं में दिशा और समुद्री किनारे की समझ गड़बड़ाने का खतरा होता. यहां बात लक्षद्वीप के उस जहाजी अली मणिकफन की जो सिंदबाद की तरह ज्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं लेकिन इतना कढ़ा (काबिल) था कि उसे 2023 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया.
कौन हैं मणिकफन?
भारतीय जहाजी अली मणिकफन और आयरिश नाविक टिम सेवरिन की कहानी दुनियाभर में मशहूर है. अली मणिकफन को साल 1981 में एक रोमांचकारी टास्क के लिए चुना गया था. तब लक्षद्वीप के सबसे दक्षिणी द्वीप मिनिकॉय में आयरिश सेलर टिम सेवरिन उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. उन्हें ओमान जाना था. वो भी एक ऐसे जहाज से जिसे उन्हें कम से कम देसी संसाधनों के जरिए खुद बनाना था.
मणिकफन को आप इंडिया का 'बियर ग्रिल्स' (Bear Grylls) कह सकते हैं, जो अपनी जवानी के दिनों में उतने ही निडर और जांबाज थे. मणिकफन को जिस ‘सोहर जहाज’ बनाने का टास्क मिला था, वो कुछ-कुछ वास्कोडेगामा या सिंदबाद के जहाज जैसा था. हालांकि कुछ ऐसे एक जहाज में टिम और अली सफर कर चुके थे. इसी कहानी की बात करें तो अली से मुलाकात के पहले टिम का लक्षद्वीप के मिनिकॉय द्वीप पर भव्य स्वागत हुआ था. मिनिकॉय दीप तब भी अपने बेजोड़ नाविकों के लिए मशहूर था. ये वही जगह है जहां से अरब जहाजों के निर्माण के लिए इस्तेमाल होने वाली रस्सियों की आपूर्ति होती थी. कुल मिलाकर इस द्वीप की भौगोलिक परिस्थितियां इसे वर्ल्ड अट्रैक्शन बनाने के लिए काफी थीं.
सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (CMFRI) तक थे चर्चे
अली ने कभी अपनी कहानी सुनाते हुए बताया था कि जब टिम ने उन्हें पहली बार देखा तब उनके हाथ में एक छोटी अटैची थी. उसमें दो जोड़ी सफेद अरबी पोशाकें थी. वो अपनी जिंदगी की इस बड़ी चुनौती के लिए भी कमर कस के यहां पहुंचे थे. दरअसल तब टिम को अपने काम के लिए, एक सुपरवाइजर की जरूरत थी. करीब 42 साल पहले सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (CMFRI) के समुद्री जीवविज्ञानी, डॉ संथप्पन जोन्स ने उन्हें मणिकफन का नाम बताया था. हालांकि टिम को उस समय यह जानकर झटका लगा था कि उनका सुपरवाइजर जिसे उनकी जिंदगी के इस सबसे बड़े मिशन में मदद की जरूरत थी वो सिंदबाद की तरह ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था.
ऐसे बनी स्नेक बोट वाला जहाज
जहाज बनाना शुरू करने से पहले दोनों ने साथ में नारियल की जटाएं इकट्ठा करने में बहुत सा वक्त साथ बिताया. उसे दोनों ने अच्छी गुणवत्ता वाले नारियल के भूसे के साथ अपने हाथ से रोल किया. उसी दौरान मणिकफन ने 'आइनी' की व्यवस्था की, जो एक प्रकार की लकड़ी है. इसी खास लकड़ी का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर केरल की मशहूर ‘स्नेक बोट’ बनाने में होता है.
टिम की किताब The Sindbad Voyage में जिंदगी का खूबसूरत वर्णन
अब मणिकफन को देसी सिंदबाद बोलें या लक्षद्वीप का 'वास्कोडेगामा' पीएम मोदी की सरकार में उन्हें उनके हुनर, खोज और रिसर्च को सम्मान देने के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया. मणिकफन की कहानी को टिम ने अपनी किताब द सिंदबाद वोएज में लिखा है. ये किस्सा भी उसी किताब से है.
टिम ने लिखा - 'पहले ही दिन अली की काबिलियत ने मेरा ध्यान खींचा. मैं बहुत जल्द उनके काम का मुरीद हो गया. वो लाखो में एक हैं. जो 14 भाषाएं बोल सकते हैं. जिस सब्जेक्ट में में उनकी दिलचस्पी होती या जो टास्क उन्हें पूरा करना होता, वो उसमें डूबकर (रिसर्च करके) कुछ नया खोज लाते. भले ही वो मेरे पास किसी की सिफारिश से आए थे लेकिन उन्होंने मेरा दिल जीत लिया.'
ओमान से चीन का वो सफर जिसका दुनियाभर में बजा डंका
मणिकफन और टिम ने आगे लकड़ी और नारियल की जटाओं जैसी कुछ बेहद नेचुरल और पारंपरिक चीज़ों से 80 फुट लंबा और 22 फुट चौड़ा जहाज बनाने का गोल सेट किया. मणिकफन और टिम अपने टास्क के लिए दो दर्जन से ज्यादा कारपेंटरों का लश्कर लेकर ओमान की राजधानी मस्कट पहुंचे. मणिकफन ने उस टास्क के लिए लगातार एक साल न दिन देखा न रात. कुछ कर गुजरने की चाह में उन्होंने चौबीसों घंटे काम किया. उन्होंने दस्ती आरी से लड़की के फट्टों को काटा और मेटल की कील या टुकड़ों की जगह भी लकड़ी का इस्तेमाल किया. आखिरकार उनकी मुहिम कामयाबी हुई. उनका जहाज बन कर तैयार हुआ. जिसका नाम ओमान के एक शहर 'सोहर' के नाम पर सोहर रखा गया. टिम ने उसी जहाज से ओमान से चीन तक करीब 10000 km की समुद्री यात्रा की. उस जहाज को अब ओमान के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है.
रिटायरमेंट लाइफ भी बेहद प्रेरणाप्रद
ओमान से लौटने के बाद, उन्होंने एक तरह से वीआरएस लिया और तमिलनाडु पहुंचे. वहां भी उनके प्रयोग रुके नहीं. उन्होंने एक गैरेज में काम किया. उन्होंने एक कार का इंजन खोला और नया आविष्कार रच दिया. उन्होंने 1982 में, बैटरी से चलने वाली रोलर साइकिल बनाई और बेटे के साथ दिल्ली पहुंच गए. बाद में वो अपने पुरखों की जगह केरल पहुंचे.
83 साल के मणिकफन, केरल के कोड़िकोड जिले में रहते हैं. जहां उनके पूर्वज रहते थे. वो आज भी आत्मनिर्भर हैं. वह अपने लिए फसल उगाते हैं. मछली पालन करते हैं. नारियल के पेड़ उगाते हैं और सोलर प्लांट से अपनी जरूरत की बिजली हासिल करते हैं.
चार बच्चे - बेटा नौसेना में बेटियां टीचर
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उनके चार बच्चे हैं. बेटा नौसेना में है और बेटियां टीचर हैं. वो आज भी एकदम फिट हैं. उनका हौसला आज की युवा पीढ़ी की प्रेरणा का स्त्रोत है.
हर नाविक की अपनी कहानी और इतिहास
वास्कोडेगामा और कोलंबस की कहानी भी रोमांचक थी. कोलंबस तो निकला था इंडिया की खोज में लेकिन दिशा भटक जाने के कारण अमेरिका पहुंच गया. हालांकि उसके दिशा भ्रम का फायदा ये हुआ कि दुनिया को अमेरिका का पता चला. कोलंबस इतालियन समुद्री यात्री था जिसे भूगोल, विज्ञान और इतिहास की अच्छी जानकारी थी, वो सेलर के साथ विशुद्ध व्यापारी यानी कारोबारी था. लेकिन अली के हौसलों और संघर्षों की बात ही कुछ और है. हम इस कहानी के जरिए किसी की तुलना नहीं कर रहे हैं. हम बस ये बताना चाहते हैं कि अली मणिकफन भी समंदर के वो योद्धा हैं, जिनके प्रेरणादायक जीवन के बारे में हर भारतीय को जानना चाहिए.