दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर बना हुआ है. ऐसे में ज्यादा प्रदूषित हवा में रहने वाले लोगों में कैंसर होने का खतरा रहता है. एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि वायु प्रदूषण से गले, गर्दन के कैंसर का खतरा कई गुना तक बढ़ जाता है.
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देश की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर बना हुआ है. AQI की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक दिल्ली में रविवार को इस सीजन का अब तक का रिकॉर्ड प्रदूषण दर्ज किया गया. कल दिल्ली इंस्टीट्यूट आफ टूल इंजीनियरिंग (DIT area) रोहिणी इलाके में प्रदूषण का स्तर 1079 दर्ज किया गया था, जोकि स्वास्थ्य के लिहाज से एक डराने वाला लेवल था. ऐसे में लोगों को अपनी सेहत का खासा ख्याल रखना चाहिए.
आपको बता दें कि ज्यादा प्रदूषित हवा में रहने वाले लोगों में कैंसर होने का खतरा रहता है. एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि वायु प्रदूषण से गले, गर्दन के कैंसर का खतरा कई गुना तक बढ़ जाता है. अध्ययन में पाया गया कि जो लोग प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, उनमें गले, गर्दन के कैंसर का खतरा उन लोगों की तुलना में 70% अधिक होता है, जो प्रदूषित हवा में सांस नहीं लेते हैं.
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर काफी अधिक है. यहां वायु में प्रदूषकों की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों से कई गुना अधिक होती है. ऐसे में दिल्ली-एनसीआर के लोगों को वायु प्रदूषण से बचने के लिए विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है.
वायु प्रदूषण से बचने के टिप्स
मास्क पहनें: जब भी आप बाहर निकलें, तो मास्क पहनना न भूलें. मास्क आपको प्रदूषकों से बचाने में मदद करेगा.
धूम्रपान से बचें: धूम्रपान भी गले, गर्दन के कैंसर का एक प्रमुख कारण है. इसलिए, धूम्रपान से बचें या धूम्रपान करने वालों से दूर रहें.
स्वस्थ आहार लें: स्वस्थ आहार खाने से आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है, जो आपको कैंसर से बचाने में मदद करती है.
गठिया की हो सकती है समस्या
हमारी नाक पीएम 10 के आकार के प्रदूषण कणों को ही अंदर जाने से रोकने में सक्षम है. जब हवा में पीएम 2.5 और एक माइक्रोन जितने छोटे आकार के कणों की मात्रा बढ़ती है तो सांस लेते वक्त ये शरीर के अंदर जाकर खून में घुल जाते हैं और फिर दिल और सांसनली के प्रोटीन में जब ये पहुंचते हैं तो शरीर का प्रतिरोधी तंत्र इन्हें बाहरी कण समझकर इनसे लड़ने के लिए एंटीबॉडी पैदा करने लगता है. हालांकि ये एंटीबॉडी घुटनों या दूसरे जोड़ों की कोशिकाओं पर भी हमला करने लगते हैं. इस वजह से जोड़ों में दर्द और गठिया का खतरा बढ़ जाता है.