कोरोना वैक्सीन के लिए इस भारतीय ने दांव पर लगा दी अपनी जिंदगी, जानें कौन है ये शख्स
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कोरोना वैक्सीन के लिए इस भारतीय ने दांव पर लगा दी अपनी जिंदगी, जानें कौन है ये शख्स

इस वक्‍त हर कोई कोरोना के बारे में सोचकर डर में है. कोरोनावायरस की वैक्‍सीन (Coronavirus Vaccine) के जल्‍द से जल्‍द तैयार होने के इंतजार में है लेकिन एक भारतीय ऐसा भी है जिसने इस वैक्‍सीन के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी.

दीपक पालीवाल (फाइल फोटो)

नई दिल्‍ली: इस वक्‍त हर कोई कोरोना के बारे में सोचकर डर में है. कोरोना वायरस की वैक्‍सीन (Coronavirus Vaccine) के जल्‍द से जल्‍द तैयार होने के इंतजार में है लेकिन एक भारतीय ऐसा भी है जिसने इस वैक्‍सीन के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी. बात हो रही है, जयपुर में जन्‍म और फिलहाल लंदन में रह रहे दीपक पालीवाल (Deepak Paliwal) की. दीपक उन चंद लोगों में से एक हैं जिन्‍होंने कोरोना वैक्‍सीन ट्रायल में बतौर वॉलेंटियर हिस्‍सा लिया.   

  1. जयपुर के रहने वाले दीपक पालीवाल बने वॉलेंटियर 
  2. ऑक्‍सफोर्ड में कोरोना वैक्‍सीन के हयूमन ट्रायल में हिस्‍सा लिया 
  3. वॉलेंटियर की मौत की खबर के बाद भी नहीं डिगा हौंसला 

दीपक ने बताया, 'मैं बार-बार सोच रहा था कि कोरोना से जंग में मैं कैसे मदद कर सकता हूं. एक दिन बैठे-बैठे यूं ही ख्याल आया क्यों ना दिमाग की जगह शरीर से ही मदद करूं. मेरे दोस्त ने मुझे बताया था कि ऑक्सफोर्ड में ट्रायल चल रहे हैं, उसके लिए वॉलेंटियर की जरूरत है. बस, मैंने इस ट्रायल के लिए अप्लाई कर दिया. ' 

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ट्रायल के दिन वॉलेंटियर की मौत का पता चला 
हयूमन ट्रायल देने के कई खतरे होते हैं. दीपक को भी इन खतरों के बारे में बताया गया था. दीपक ने कहा, 'मुझे बताया गया कि इस वैक्सीन में 85 फीसदी कंपाउड मेनिंनजाइटिस वैक्सीन से मिलता जुलता है. डॉक्टरों ने बताया कि मैं कोलैप्स भी कर सकता हूं, आर्गन फेलियर का खतरा भी रहता है, जान भी जा सकती है. लेकिन इस प्रक्रिया में डॉक्टर और कई नर्स भी वॉलेटियर कर रहे थे. उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया.'  

दीपक ने आगे बताया कि जिस दिन मुझे वैक्सीन का पहला शॉट लेने जाना था, उस दिन व्हॉटसेप पर मेरे पास मैसेज आया कि ट्रायल के दौरान एक वॉलेंटियर की मौत हो गई है. तब भी मैं अपने फैसले पर अड़ा रहा. 

पत्‍नी थीं फैसले के खिलाफ 
42 साल के दीपक लंदन में एक फार्मा कंपनी में कंसल्‍टेंट के तौर पर काम करते हैं. उनकी पत्‍नी भी फार्मा कंपनी में काम करती हैं. दीपक ने बताया, '16 अप्रैल को मुझे पता चला था कि मैं इस वैक्सीन ट्रायल में वॉलेंटियर कर सकता हूं. जब पत्नी को ये बात बताई तो वो मेरे फैसले के बिलकुल खिलाफ थी. भारत में अपने परिवार वालों को मैंने कुछ नहीं बताया था. जाहिर है वो इस फैसले का विरोध ही करते. इसलिए मैंने केवल अपने नजदीकी दोस्तों से ही ये बात शेयर की थी.' 

डर था कि परिवार से मिल पाएंगे या नहीं 
दीपक के पिता का तीन साल पहले निधन हो गया था, लेकिन विदेश में होने के कारण वे अपने पिता के अंतिम दर्शन नहीं कर पाए थे. ट्रायल के दौरान उन्हें इसी बात का डर था कि क्या वो अपनी मां और भाई-बहन से मिल पाएंगे या नहीं. अभी भी दीपक 90 दिन तक कहीं बाहर आ-जा नहीं सकते हैं. 

इस वैक्सीन ट्रायल के लिए ऑक्सफोर्ड को एक हजार लोगों की आवश्यकता थी. इसमें उन्‍हें विभिन्‍न देशों जैसे अमरीकी, अफ्रीकी, भारतीय मूल आदि के लोग चाहिए थे ताकि वैक्सीन अगर सफल होता है तो विश्व के हर देश में इसे इस्तेमाल किया जा सके. 

वर्तमान में अमरीका, ब्रिटेन, चीन, भारत जैसे तमाम बड़े देशों में वैक्‍सीन तैयार करने का काम जोर-शोर से चल रहा है. कई वैक्‍सीन कैंडिडेट के लिए हयूमन ट्रायल भी चल रहे हैं. 

 

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