हार्ट अटैक के दौरान खून के थक्के बनने से न सिर्फ दिल की नसों में रुकावट होती है, बल्कि कभी-कभी ये थक्के जमा होकर कान की नसों तक भी पहुंच जाते हैं. इससे कान में दर्द, भारीपन या यहां तक कि सुनने में कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
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दिल की बीमारी भारत में तेजी से बढ़ते हुए रोगों में से एक है और अक्सर इसके लक्षणों को अनदेखा कर दिया जाता है. लेकिन अब एक नए अध्ययन से पता चला है कि कान का दर्द और भारीपन भी हार्ट अटैक का एक 'साइलेंट' संकेत हो सकता है. यह चौंकाने वाला खुलासा अमेरिकी नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) द्वारा प्रकाशित एक रिसर्च में हुआ है.
इस रिसर्च के अनुसार, हार्ट अटैक के दौरान खून के थक्के बनने से न सिर्फ दिल की नसों में रुकावट होती है, बल्कि कभी-कभी ये थक्के जमा होकर कान की नसों तक भी पहुंच जाते हैं. इससे कान में दर्द, भारीपन या यहां तक कि सुनने में कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
500 से ज्यादा मरीजों पर रिसर्च
शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के लिए दिल की बीमारी से पीड़ित 500 से अधिक मरीजों का डेटा विश्लेषण किया. उन्होंने पाया कि जिन मरीजों को दिल का दौरा पड़ा था, उनमें से 12% को कान से जुड़ी समस्याएं भी थीं. इनमें से लगभग आधे मरीजों को कान में दर्द हुआ था, जबकि बाकी लोगों को भारीपन या सुनने की कमी का अनुभव हुआ था.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. डेविड मिलर का कहना है कि यह अध्ययन बताता है कि कान का दर्द और भारीपन दिल के दौरे का एक संभावित लक्षण हो सकता है, खासकर अगर यह अचानक और बिना किसी स्पष्ट कारण के हो. ऐसे में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. हालांकि, शोधकर्ता यह भी स्पष्ट करते हैं कि कान का दर्द और भारीपन अकेले दिल के दौरे का संकेत नहीं है. यह अन्य समस्याओं जैसे कि कान का संक्रमण, साइनसाइटिस या माइग्रेन का भी लक्षण हो सकता है. इसलिए, जांच के लिए डॉक्टर से सलाह करना बेहद जरूरी है.
इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि कई बार हार्ट अटैक के पारंपरिक लक्षण जैसे सीने में दर्द या सांस लेने में तकलीफ महसूस नहीं होती है. ऐसे में चुप चाप मिलने वाले संकेतों पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण है. कान का दर्द और भारीपन, खासकर बुजुर्गों और डायबिटीज के मरीजों में, हार्ट अटैक का एक संभावित संकेत हो सकता है. डॉ. मिलर कहते हैं कि हमें हार्ट अटैक के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है और लोगों को यह समझने में मदद करनी चाहिए कि इसके लक्षण हमेशा पारंपरिक नहीं होते हैं.