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न्यू दिल्ली: यमन (Yemen) में हालात दिन पर दिन बिगड़ते जा रहे हैं. पिछले 10 साल से गृह युद्ध की मार झेल रहे यमन में दिमागी लकवा यानी सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy) तेजी से फैल रहा है. यहां से 7 साल के एक ऐसे बच्चे की तस्वीर सामने आ रही है, जिसका वजन बस 7 किलोग्राम ही रह गया है.
यमन की राजधानी सना (Sanaá) में अस्पताल के बिस्तर पर पड़े इस बच्चे को देखकर आपको यकीन नहीं होगा कि यह बच्चा एक ऐसी बीमारी (Cerebral Palsy) का शिकार है, जिसने उसे पैरालाइज (Paralyse) कर दिया है. इस बच्चे को देख कर लगता है कि जैसे यह महज छह माह का होगा. जानिए दिमागी लगवा के लक्षण (Cerebral Palsy Symptoms).
सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy) को हिंदी में प्रमस्तिष्क पक्षाघात या प्रमस्तिष्क अंगघात कहते हैं. इस बीमारी को देसी भाषा में लोग दिमाग में लकवा (Brain Paralysis) मारने के तौर पर भी जानते हैं. इसके लक्षण (Cerebral Palsy Symptoms) बहुत जल्दी ही नजर आने लगते हैं. हर बच्चे में अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं. इस बीमारी में दिमाग के दोनों हिस्सों में समस्या आ जाती है, जिससे शारीरिक विकास पर प्रभाव पड़ता है और शरीर पर होने वाले कंट्रोल को भी डैमेज करता है.
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इंग्लैंड के मशहूर सर्जन डॉक्टर विलियम जॉन लिटिल ने सबसे पहले साल 1760 में बच्चों में पाई जाने वाली असामान्यता के बारे में बात की थी.
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इस बीमारी (Cerebral Palsy Symptoms) में हाथ और पैर की मांसपेशियां कड़ी हो जाती हैं. इससे ग्रस्त बच्चे को किसी सामान को पकड़ने में और चलने-फिरने में कठिनाई होती है. सबसे बड़ी बात है कि बच्चों के दिमाग को जितना ज्यादा नुकसान होगा, उनमें विकलांगता उतनी अधिक बढ़ जाती है.
सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy) एक जटिल, अप्रगतिशील अवस्था है, जो जीवन के पहले 3 सालों में मस्तिष्कीय क्षति के कारण होती है. इसकी वजह से मांसपेशियां मस्तिष्क से सामंजस्य नहीं बिठा पाती हैं और इसी से अपंगता होती है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 10 लाख बच्चे इस बीमारी का शिकार होते हैं.
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यह बीमारी तीन समय पर हो सकती है- गर्भधारण के वक्त, बच्चे के जन्म के समय और तीन वर्ष तक की आयु के बच्चों को. गर्भावस्था में इस बीमारी के होने की आशंका सबसे ज्यादा यानी 75 प्रतिशत तक रहती है. अगर गर्भावस्था के समय महिला को इंफेक्शन हो जाए तो बच्चे को यह बीमारी हो सकती है.
इस बीमारी से बचाव जरूर संभव है लेकिन इसका निश्चित इलाज अब तक संभव नहीं है. कुछ दवाइयों और टेक्नोलॉजी के अलावा ब्रेसेज लगाकर इससे कुछ हद तक राहत जरूर पाई जा सकती है.
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