एक तरबूज के पीछे छिड़ी खूनी जंग, हजारों सैनिकों को गंवानी पड़ी थी अपनी जान
Advertisement
trendingNow11027937

एक तरबूज के पीछे छिड़ी खूनी जंग, हजारों सैनिकों को गंवानी पड़ी थी अपनी जान

Knowledge: आपने कई भयंकर युद्धों के बारे में सुना होगा. ज्यादातर युद्ध अपने देश या राज्य के सीमा विस्तार के लिए हुआ करते थे. लेकिन इतिहास में एक ऐसे युद्ध का भी नाम दर्ज है, जो एक तरबूज के पीछे हुआ. इस युद्ध में हजारों लोगों की जान चली गई.

 

बीकानेर और नागौर रियासत के बीच हुआ था युद्ध

नई दिल्ली. दुनिया में कई भीषण जंग हुई हैं. कहीं दो देशों के बीच, कहीं दो राज्यों के बीच हुए युद्ध दिनों, महीनों तक चले. इस दौरान दोनों तरफ से सैनिक मारे जाते थे. अक्सर ये लड़ाइयां राज्य की सीमा बढ़ाने को लेकर हुआ करती थीं. लेकिन एक ऐसी भी लड़ाई है, जो तरबूज के लिए लड़ी गई. बीकानेर (Bikaner) और नागौर (Nagaur) की सीमा पर उगे एक तरबूज के लिए दो खेत मालिकों की लड़ाई दो रियासतों तक पहुंच गई.

  1. राजस्थान के बीकानेर और नागौर रियासत के बीच हुआ था युद्ध
  2. 644 ईस्वी में तरबूज के पीछे छिड़ी थी जंग
  3. 'मतीरे की राड़' नाम से इतिहास में दर्ज है

'मतीरे की राड़' नाम से मशहूर है जंग

आपको जानकर हैरानी होगी कि राजस्थान के बीकानेर रियासत में आज से करीब 400 साल पहले एक तरबूज के फल को लेकर भीषण युद्ध हुआ था. तरबूज को लेकर हुए इस युद्ध में हजारों सैनिकों की जान गई थीं. इतिहास में हुए इस अजीबो-गरीब युद्ध को 'मतीरे की राड़' के नाम से जाना जाता है. राजस्थान के कई हिस्सों में तरबूज को 'मतीरा' कहते हैं. वहीं राड़ का मतलब लड़ाई है.

ये भी पढ़ें: ज्यादातर देशों के नेशनल फ्लैग में नहीं होता बैंगनी रंग का इस्तेमाल! बेहद रोचक है वजह

तरबूज के पीछे हुआ था युद्ध

ये युद्ध 1644 ईस्वी में हुआ था. कहा जाता है कि बीकानेर रियासत का सीलवा गांव और नागौर रियासत का जाखणियां गांव एक-दूसरे से सटे हुए थे. ये दोनों गांव नागौर और बीकानेर रियासत की अंतिम सीमा में थे. वहां एक तरबूज की फसल बीकानेर रियासत की सीमा में उगी लेकिन वो नागौर की सीमा तक फैल गई. दोनों ही गांव दावा कर रहे थे कि फसल उनकी तरफ लगी है. 

हजारों सैनिकों की चली गई जान

इस बात पर झगड़ा इतना बढ़ा कि दोनों तरफ के गांव के लोग रात-रातभर जागकर पहरा देने लगे कि दूसरे गांव के लोग तरबूज न उखाड़ लें. फैसला न हो पाने पर आखिरकार बात दोनों रियासतों तक पहुंच गई और फल पर शुरू ये झगड़ा युद्ध में बदल गया. इसमें दोनों रियासतों के हजारों सैनिकों की जानें गईं. अंत में इस युद्ध को बीकानेर की रियासत ने जीता. 

राजस्थान में चर्चा में रहता है ये युद्ध 

हालांकि इतिहास में इस लड़ाई का खुलकर जिक्र नहीं मिलता है. लेकिन आज भी राजस्थान के लोगों के बीच मतीरे की राड़ का किस्सा खूब कहा जाता है. कहा जाता है कि लड़ाई में बीकानेर की सेना का नेतृत्व रामचंद्र मुखिया ने किया था जबकि नागौर की सेना का नेतृत्व सिंघवी सुखमल ने किया. 

ये भी पढ़ें: जज ने कहा- 'पति हर बार नहीं होता गलत', तलाक केस में कोर्ट ने शख्स को दी बड़ी राहत

राजाओं को नहीं थी युद्ध की भनक

कुछ लोग बताते हैं कि दोनों रियासतों के राजाओं को इस युद्ध की जानकारी तक नहीं थी. जब यह लड़ाई चल रही थी, तब बीकानेर के शासक राजा करणसिंह एक अभियान पर थे, तो वहीं नागौर के शासक राव अमरसिंह मुगल साम्राज्य की सेवा में तैनात थे. जब इस लड़ाई के बारे में दोनों राजाओं को जानकारी मिली, तो उन्होंने मुगल राजा से इसमें हस्तक्षेप करने की अपील की. लेकिन जब यह बात मुगल शासकों तक पहुंची तब तक युद्ध छिड़ चुका था. 

LIVE TV

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news