अभिषेक सिंघवी क्यों खत्म करना चाहते हैं राज्यपाल पद, जानें क्या है इसके पीछे तर्क
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अभिषेक सिंघवी क्यों खत्म करना चाहते हैं राज्यपाल पद, जानें क्या है इसके पीछे तर्क

Abhishek Manu Singhvi: कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य अभिषेक सिंघवी ने केंद्र सरकार पर राज्यपालों की भूमिका को दयनीय बना देने का आरोप लगाया और कहा कि या तो राज्यपाल का पद खत्म कर दिया जाए या फिर सबकी सहमति से चुना जाए.

अभिषेक सिंघवी क्यों खत्म करना चाहते हैं राज्यपाल पद, जानें क्या है इसके पीछे तर्क

Abhishek Manu Singhvi Interview: कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य अभिषेक सिंघवी ने राज्यपाल पद खत्म करने की मांग की है. अभिषेक मनु सिंघवी ने केंद्र सरकार पर राज्यपालों की भूमिका को दयनीय बना देने का आरोप लगाया और कहा कि या तो राज्यपाल का पद खत्म कर दिया जाए या फिर सबकी सहमति से ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति हो जो तुच्छ राजनीति में शामिल नहीं हो. इसके साथ ही उन्होंने संसदीय सुधारों की जरूरत पर जोर दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आसन दलगत भावना से ऊपर उठकर काम करे. तेलंगाना से हाल में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए सिंघवी ने संसद में आसन और विपक्ष के बीच टकराव को लेकर चिंता जताई. वह चौथी बार राज्यसभा सदस्य बने हैं.

आर्टिफिशियल पार्लियामेंट नहीं हो सकती: सिंघवी

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'यह बहुत दुखद है. इस कार्यकाल के पूरा होने तक मैं राज्यसभा में 20 साल की अवधि पूरी कर लूंगा. मैं संसदीय भावना को महत्व देता हूं. मैं वास्तव में इसमें विश्वास करता हूं. मेरा मानना है कि सेंट्रल हॉल मात्र एक जगह नहीं है, यह एक 'अवधारणा' (कॉन्सेप्ट) है.' उन्होंने कहा, 'मैं दलगत भावना से अलग विशाल हृदय वाली उदारता में विश्वास करता हूं.'

पिछली एनडीए सरकार के दौरान संसद के शीतकालीन सत्र में बड़े पैमाने पर सांसदों के निलंबन के संदर्भ में उन्होंने कहा, 'आप यह कहकर लोकतंत्र को नकार नहीं सकते कि असहमति के कारण मैं 142 लोगों को निलंबित कर दूंगा. विपक्ष को अपनी बात रखनी होगी और अंततः सरकार का अपना रास्ता होगा. लेकिन मुझे अपनी बात कहने की जरूरत है और आपको अपनी बात कहने की, उस प्रक्रिया को अपने आप चलने दीजिए. सिर्फ दिखावे के लिए संसद (आर्टिफिशियल पार्लियामेंट) नहीं हो सकती.' उन्होंने कहा कि अब यह राज्यों में भी हो रहा है और किसी एमएलसी को सिर्फ इस वजह से सदन से निष्कासित कर दिया जाता है कि उसने सरकार की आलोचना की.

अध्यक्ष के चुनाव पर उठाया सवाल

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'संसदीय लोकतंत्र का सार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विचार की स्वतंत्रता है. चाहे यह कितना ही आपत्तिजनक क्यों न हो, मैं अपनी बात कह रहा हूं.' उन्होंने इंग्लैंड की संसदीय व्यवस्था का हवाला देते हुए कहा, 'मैंने इसके लिए पैरवी की है और यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि यह पुराने दिनों में अस्तित्व में था और कुछ हद तक अब इंग्लैंड में है. आप पहले से तय कर लेते हैं कि कोई व्यक्ति अगली संसद में स्पीकर होंगे और चुनाव से पहले उनकी सीट से कोई दूसरा चुनाव नहीं लड़ेगा और संबंधित व्यक्ति निर्विरोध निर्वाचित हो जाएंगे.'

उन्होंने इस बात पर जोर दिया, 'अब कल्पना कीजिए कि स्पीकर की कुर्सी के लिए इस तरह से चुने जाने से आपको (संसदीय प्रणाली) कितनी ताकत मिलेगी.' वरिष्ठ अधिवक्ता सिंघवी का कहना था, 'मैं दृढ़ता से इसके पक्ष में हूं कि सभी पार्टियां इस बात पर सहमत हों कि हम एक सीट किसी व्यक्ति को देंगे, चाहे वह कोई भी हो और उस व्यक्ति को निर्विरोध चुना जाए. या फिर वह व्यक्ति पार्टी से अलग हो जाए. आप राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति बन जाते हैं तो क्या आप कभी चुनावी राजनीति में वापस आते हैं? यही बात लोकसभा अध्यक्ष के लिए भी हो सकती है.' उन्होंने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष के पास इतनी अपार शक्तियां होती हैं कि वह दल-बदल को लेकर फैसला करता है. यदि वह भी पक्षपातपूर्ण हो जाए, तो क्या बचता है. संसद के दोनों सदनों में आसन और विपक्षी सांसदों के बीच बार-बार गतिरोध की पृष्ठभूमि में सिंघवी ने यह टिप्पणी की है.

राज्यपालों की भूमिका बहुत दयनीय: अभिषेक मनु सिंघवी

पिछले मॉनसून सत्र में ऐसी खबरें आई थीं कि विपक्ष राज्यसभा के सभापति एवं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को उनके ‘पक्षपातपूर्ण रवैये’ का हवाला देते हुए उन्हें पद से हटाने के लिए एक प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहा है. कांग्रेस नेता सिंघवी ने कुछ राज्यों का हवाला देते हुए आरोप लगाया, 'मौजूदा सरकार ने राज्यपालों की भूमिका बहुत दयनीय कर दी है... इस सरकार ने हर संस्था को नीचा दिखाया है, उसका अवमूल्यन किया है. यह देखकर मुझे बहुत दुखद होता है.' उन्होंने कहा, 'कर्नाटक (न्यायालय के विचाराधीन मामला) को लेकर बात नहीं करूंगा. लेकिन तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल में क्या हुआ? बाबा साहेब आंबेडकर ने यह व्यवस्था बनाई थी कि एक म्यान में दो तलवार नहीं हो सकती... लेकिन यहां तो राज्यपाल दूसरे मुख्य कार्यकारी के रूप में कार्य कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, "राज्यपाल शासन को अवरुद्ध करते हैं। (विधेयकों को मंजूरी देने में) विलंब होता है. तमिलनाडु में 10 विधेयकों को रोककर रखा था और जैसे ही मैंने उच्चतम न्यायालय का रुख किया तो इससे एक दिन पहले ही दो तीन विधेयकों को मंजूरी दे दी गई और शेष को राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया।" यह पूछे जाने पर कि क्या राज्यपाल के पद को लेकर पुनर्विचार होना चहिए तो कांग्रेस नेता ने कहा कि राज्यपाल का पद खत्म होना चाहिए या फिर ऐसे व्यक्ति को बनाया जाना चाहिए जिस पर सबकी सहमति हो तथा जो तुच्छ राजनीति में शामिल नहीं हो. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा गोपाल कृष्ण गांधी सरीखे व्यक्ति को राज्यपाल होना चाहिए.

विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करेगी कांग्रेस: अभिषेक मनु सिंघवी

अभिषेक मनु सिंघवी ने दावा किया कि कांग्रेस हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करेगी तथा भाजपा भयभीत है. उन्होंने कहा, "आप भाजपा के किसी व्यक्ति से बात करिए तो पता चलेगा कि चारों राज्यों को लेकर सब घबराए हुए हैं. हरियाणा के बारे में बात करिए... तानाशाही है तो कोई खुलकर बोल नहीं सकता. इसी तरह महाराष्ट्र और झारखंड में भी स्थिति है.' उन्होंने हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं कराए जाने को लेकर भी सवाल खड़े किए.

सिंघवी ने कहा, टमहाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव अलग अलग क्यों हो रहे हैं? अब तक ‘लाडली बहना’ की याद नहीं आई थी? क्या यह नैतिक है, सही है? क्या आपने समान अवसर की स्थिति पैदा की. आपने (सरकार) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को आघात पहुंचाया है.' उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीसरे कार्यकाल को लेकर कहा कि गठबंधन की राजनीति इस सरकार के लिए एक दर्दनाक सबक होगा, क्योंकि यह उनके मानस या स्वभाव में नहीं है और आज भी वे अनिच्छा, झिझक या मजबूरी से ऐसा कर रहे होंगे, इसलिए नहीं कि वे इसमें विश्वास करते हैं. उन्होंने दावा किया कि लोकसभा चुनाव में जनता ने अहंकार की चरम सीमा और सदा अचूक रहने की धारणा को ध्वस्त किया है.
(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)

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