ड्राइवर की होशियारी से बची 10 सैनिकों की जान, आतंकियों ने IED से किया था हमला
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमला सड़क के किनारे खड़ी कार के ज़रिए किया गया था. इस कार में पहले से ही विस्फोटक छिपाकर रखे गए थे.
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नई दिल्ली, श्रीनगर: दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में सोमवार को सेना के गश्ती दल की गाड़ी पर सोमवार को हुए IED हमले में ड्राइवर की होशियारी से करीब 10 सैनिकों की जान बच गई. हमले में घायल 2 सैनिकों ने बेस अस्पताल में दम तोड़ दिया, लेकिन गाड़ी में बैठे बाकी सैनिकों को बहुत कम चोट आईं. ये गाड़ी शोपियां में तैनात 44 वीं राष्ट्रीय राइफल्स की थी जो गश्त पर निकली थी.
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमला सड़क के किनारे खड़ी कार के ज़रिए किया गया था. इस कार में पहले से ही विस्फोटक छिपाकर रखे गए थे. 44 राष्ट्रीय राइफल्स की तीन गाड़ियां गश्त के लिए इसी सड़क से निकलीं. ये गाड़ियां बख्तरबंद या माइन प्रोटेक्टेड नहीं थीं लेकिन इनके चारों तरफ स्टील की प्लेटें लगाकर इन्हें कामचलाऊ बख्तरबंद बनाया गया था, जिस सड़क से ये गाड़ियां निकल रही थीं वो ज्यादा चौड़ी नहीं थी.
सड़क के एक किनारे पर एक लावारिस कार खड़ी थी. कार के पास से गुज़रते समय सबसे आगे चल रही गाड़ी के ड्राइवर को शक हुआ और उसने अपनी गाड़ी सड़क के दूसरे किनारे पर ले जाने की कोशिश की. उसी समय कार में विस्फोट कर दिया गया जो सूत्रों के मुताबिक रिमोट कंट्रोल या मोबाइल सिग्नल के ज़रिए किया गया. विस्फोट इतना ताक़तवर था कि उससे कार का ऊपरी हिस्सा ग़ायब हो गया. पास ही खेत में काम कर रहे कुछ नागरिकों को भी चोटें आईं, लेकिन गाड़ी दूर होने से पीछे बैठे जवानों को केवल मामूली चोटें आई. लेकिन ड्राइवर के केबिन में बैठे हवलदार अमरजीत सिंह और नायक अजित कुमार साहू को गंभीर चोटें आई जिनकी बाद में श्रीनगर के बेस अस्पताल में मौत हो गई.
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ड्राइवर के केबिन के चारों ओर स्टील प्लेट्स नहीं लगी थीं, इसलिए उस पर धमाके का ज्यादा असर हुआ. लेकिन गाड़ी के पीछे बैठे लगभग 10 जवान स्टील की प्लेटों और धमाके से दूरी की वजह से ही बच पाए. अगर ड्राइवर ने कुछ सेकंड पहले ही ख़तरा नहीं भांप लिया होता तो बड़ा नुकसान होना तय था. 44 वीं राष्ट्रीय राइफल्स दक्षिण कश्मीर के आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित शोपियां में तैनात है. इस बटालियन ने सबसे ज्यादा आतंकवादियों को मारा है और वीरता के सबसे ज्यादा पुरस्कार भी हासिल किए हैं. इसीलिए ये बटालियन आतंकवादियों के निशाने पर रहती है. पिछले साल जून में आतंकवादियों ने इसी बटालियन में तैनात राइफलमैन औरंगज़ेब को छुट्टी पर घर जाते समय अपहरण करके मार दिया था.
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