भूपेन हजारिका को भारत रत्न देने की हुई घोषणा, असम में दौड़ी खुशी की लहर
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भूपेन हजारिका को भारत रत्न देने की हुई घोषणा, असम में दौड़ी खुशी की लहर

डॉ. भूपेन हजारिका को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा से असम में 70वां गणतंत्र दिवस दोगुनी खुशी के साथ धूमधाम से मनाया गया.

डॉ. भूपेन हज़ारिका को असम और पूरे उत्तर पूर्व में महान संगीतकार के तौर पर लोगों ने हमेशा प्यार और सम्मान से नवाजा है.
डॉ. भूपेन हज़ारिका को असम और पूरे उत्तर पूर्व में महान संगीतकार के तौर पर लोगों ने हमेशा प्यार और सम्मान से नवाजा है.

गुवाहाटी: असम के गीत, संगीत, साहित्य, संस्कृति, फिल्म और कला जगत को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाने वाले डॉ. भूपेन हजारिका को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा से असम में 70वां गणतंत्र दिवस दोगुनी खुशी के साथ धूमधाम से मनाया गया. इस अवसर पर गुवाहाटी के खानापाड़ा मैदान में असम के राज्यपाल प्रोफेसर जगदीश मुखी ने भारत का तिरंगा फहराया.

राज्यपाल ने अपने अभिभाषण में असम की प्रगति, शांति, अवैध घुसपैठ और एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर भारत सरकार द्वारा लिए जा रहे क़दमों के बारे में राज्यवासियों को अवगत कराया. अपने भाषण के अंत में भारत सरकार द्वारा असम के प्रसिद्ध संगीतकार, गीतकार, फिल्मकार और गीतकार डॉ. भूपेन हज़ारिका को भारत रत्न नवाजे जाने पर ख़ुशी जाहिर की और असम के लिए गौरवशाली पल बताया.

10 भाई-बहनों में सबसे बड़े
डॉ. भूपेन हज़ारिका का जन्म 8 सितंबर 1926 में असम के सदिया में नीलकंठ और शांतिप्रिये के घर हुआ था. 10 भाई-बहनों में सबसे बड़े भूपेन हज़ारिका थे. उनकी मां की संगीत में रुचि की वजह से भूपेन दा और उनके 9 भाई-बहनों को असमिया  लोक संगीत के प्रति लगाव पैदा हो गया था.

गुवाहाटी आ गए थे
4 साल की उम्र में भूपेन दा अपने माता-पिता के संग 1929 में गुवाहाटी आ गए थे. पिता नीलकंठ हज़ारिका गुवाहाटी के भरलुमुख में रोजगार के कारण बस गए थे. 10 वर्ष की उम्र में भूपेन दा को अपने पिता के नौकरी के तबादले के चलते असम के तेज़पुर में जाकर रहना पड़ा था.

जब मिला पहला ब्रेक
कहा जाता है कि तेज़पुर में किसी कार्यक्रम में कलागुरू के नाम से विख्यात ज्योति प्रसाद अगरवाला की नजर असमिया लोकगीत बोरगीत गाते 10 साल के भूपेन हज़ारिका पर पड़ी थी और वे उनके गीत से बहुत प्रभावित हुए थे. 12 वर्ष की आयु में भूपेन हज़ारिका को ज्योति प्रसाद अगरवाला ने दो गाने उनकी 1939 में बनी असमिया फिल्म इन्द्रामालोटि में गवाए और तभी से भूपेन दा की संगीत यात्रा शुरू हुई थी.

ऐसे मिली पहचान
इसके बाद तेज़पुर में भूपेन हज़ारिका को असमिया कला और साहित्य जगत के दो महान बिभूति ज्योति प्रसाद अगरवाला और असमिया साहित्य कला के विख्यात विष्णु राभा से काफी कुछ सिखने को मिला. भूपेन दा ने केवल 13 वर्ष की उम्र में पहली बार गीत 'अगनीजुगर फ़िरोंगोटी मोई' रचा था और इस गीत ने उन्हें काफी प्रसद्धि दिलाई थी, जिसके बाद गीतकार के रूप में भी उनको पहचान मिली.

अमेरिका में पढ़ाई
1940 में तेज़पुर से मैट्रिक पास करने के बाद भूपेन हज़ारिका गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से 1942 में आइए और 1944 में बीए की पढ़ाई करने के बाद 1946 में वनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से राजनीती विज्ञान से एमए की पढ़ाई पूरी की. एक स्कॉलरशिप मिलने के बाद 1949 में अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय में पीएचडी करने गए और भारत की प्रौढ़ शिक्षा में तकनीक आवाज और चित्र माध्यम से योगदान के विषय पर 1952 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी, अमेरिका से पीएचडी की पढ़ाई पूरी की.

प्रियवंदा से शादी
कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में गुजरात की प्रियंवदा पटेल से उनकी पढ़ाई के दौरान परिचय हुआ और 1950 में शादी हुई. 1952 में उनका एकमात्र पुत्र तेज़ हज़ारिका का जन्म हुआ जो कि मां प्रियंवदा पटेल के साथ ही अमेरिका में ही बड़े हुए और उनके निधन के बाद से अमेरिका में ही बस गए. कहा जाता है कि वैवाहिक जीवन में मनमुटाव के कारण 1953 में डॉ. भूपेन हज़ारिका भारत लौट आए और असमिया और बांग्ला फिल्मों में गीत संगीत में योगदान देने लगे. डॉ. भूपेन हज़ारिका ने असमिया फिल्म सकुंतला और प्रतिध्वनि का भी निर्माण और निर्देशन किया.

हिंदी फिल्मों में संगीत
हिंदी फिल्मों में भी भूपेन हज़ारिका ने संगीत दिया जिनमें आरोप, एक पल, मेरा धरम मेरी मां, रुदाली, दो राहें, दर्मिया, साज, गजगामिनी, क्यों, चिंगारी, गांधी तू हिटलर प्रमुख फिल्में थीं. भूपेन हज़ारिका के कई गीतों का अनुवाद भी हिंदी में प्रख्यात गीतकार गुलजार ने किया था, जिनमें- ओ गंगा बहती हो क्यों, मैं और मेरा साया बेहद लोकप्रिय हुआ था. उनके कई गीतों का अनुवाद  बांग्ला में भी हुआ था और सबसे बड़ी उपलब्धि भूपेन दा को बंगलादेश के राष्ट्रीय गान को संगीतबद्ध करके हासिल हुई थी.

राजनीति में आजमाई किस्मत
डॉ. भूपेन हज़ारिका ने असम की राजनीति में भी किस्मत आजमाई. निर्दलीय विधायक के तौर पर 1967 में असम के नौगौसिया से निर्वाचित भी हुए थे और कहा जाता है कि भाजपा के सांसद और पत्रकार चंदन मित्रा, फिल्मकार कल्पना लाजमी के जोर देने पर और अटल बिहारी वाजपेयी के इच्छा अनुरूप भाजपा के टिकट से गुवाहाटी लोक सभा सीट से 2004 में चुनाव भी लड़े पर कांग्रेस के उम्मीदवार के हाथों पराजय मिली थी.

पद्म पुरस्कार भी मिले
देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान मरणोपरांत भारत रत्न मिलने से पूर्व डॉ. भूपेन हज़ारिका को 1992 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, 1997 में पद्मश्री, 2008 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2001 में पद्म भूषण और पद्मा विभूषण 2012 में भारत सरकार प्रदान कर चुकी है. डॉ. भूपेन हज़ारिका ने अंतिम सांस 84 साल की उम्र में मुंबई में 5 नवंबर 2011 को ली.

सीएम ने जताई खुशी  
वहीं, असम के मुख्यमंत्री सर्बानंदा सोनोवाल ने मीडिया से बात करते हुए डॉ. भूपेन हज़ारिका को भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा को ऐतिहासिक और गौरवांवित पल बताया और कहा कि असमिया संस्कृति, कला, संगीत को पहचान प्रदान करने वाले डॉ. भूपेन हज़ारिका याद करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित किए.

असमिया और बोड़ो साहित्य की चर्चित लेखिका - सुनीति सोनोवाल ने भारत सरकार द्वारा डॉ. भूपेन हज़ारिका को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ. भूपेन हज़ारिका जैसे महान संगीतकार, गीतकार को देर से ही सही पर मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा से प्रत्येक असमिया का सिर फक्र से ऊंचा हो गया है.   

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