Chacha-Bhatija Jodi: जब सत्ता के बोझ तले दबे रिश्ते, भारतीय राजनीति के चाचा-भतीजों के टकराव की अजब कहानी
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Chacha-Bhatija Jodi: जब सत्ता के बोझ तले दबे रिश्ते, भारतीय राजनीति के चाचा-भतीजों के टकराव की अजब कहानी

Indian Politics Chacha-Bhatija Jodi: जब भी बागडोर अगली पीढ़ी को देने की आती है तो रिश्तों में कड़वाहट सी आ जाती है. इसके पीछे वजह भी वही होती है, भेदभाव के आरोप या फिर महत्वाकांक्षाओं का टकराना. शायद कुछ ऐसा अजित और शरद पवार के रिश्ते में भी हुआ होगा.

Chacha-Bhatija Jodi: जब सत्ता के बोझ तले दबे रिश्ते, भारतीय राजनीति के चाचा-भतीजों के टकराव की अजब कहानी

Sharad Pawar-Ajit Pawar: राजनीति में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता. वक्त और समीकरणों के हिसाब से चीजें बदलती रहती हैं. चाहे समर्थन हो या फिर रिश्ते. मौजूदा समय में भारतीय राजनीति में यूनिफॉर्म सिविल कोड के बाद सबसे गरम मुद्दा है महाराष्ट्र. चाचा शरद पवार भतीजे अजित पवार की जोड़ी टूट चुकी है.

जब भी बागडोर अगली पीढ़ी को देने की आती है तो रिश्तों में कड़वाहट सी आ जाती है. इसके पीछे वजह भी वही होती है, भेदभाव के आरोप या फिर महत्वाकांक्षाओं का टकराना. शायद कुछ ऐसा अजित और शरद पवार के रिश्ते में भी हुआ होगा. अब आपको बताते हैं भारतीय राजनीति के चाचा भतीजों की जोड़ी और उनकी टूट की कहानी.

बाल ठाकरे-राज ठाकरे

महाराष्ट्र बाल ठाकरे और राज ठाकरे की जोड़ी की ताकत और उनका ब्रेकअप भी देख चुका है. बाल ठाकरे के छोटे भाई श्रीकांत ठाकरे के बेटे हैं राज ठाकरे. बाल ठाकरे की पत्नी और राज ठाकरे की मां आपस में सगी बहन हैं. शिवसेना के छात्र संगठन भारतीय विद्यार्थी सेना के जरिए राज ठाकरे राजनीति में कूदे. 1990 के महाराष्ट्र विधानसभा में उनका जोरदार प्रचार देख हर कोई दंग रह गया. धीरे-धीरे उनका कद बाल ठाकरे के बाद पार्टी में नंबर 2 का हो गया. भाषण शैली, हिंदुत्व और मराठा अस्मिता पर उनके भाषण बाल ठाकरे की कार्बन कॉपी नजर आते थे. सब मानते थे कि वही बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी हैं. लेकिन फिर उद्धव ठाकरे को तवज्जो मिलने लगी. इसके बाद राज ठाकरे ने नवंबर 2005 को शिवसेना से अलग होने का ऐलान कर लिया. 2006 में उन्होंने एमएनएस का गठन किया. बाल ठाकरे के निधन के बाद अटकलें थीं कि राज और उद्धव साथ आएंगे लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं हुआ.

शिवपाल और अखिलेश यादव

सपा में अखिलेश और शिवपाल के झगड़े से कौन वाकिफ नहीं है. मुलायम ने सपा की नींव रखी और शिवपाल के साथ मेहनत से उसको आगे बढ़ाया. पार्टी में शिवपाल यादव का कद ही अलग था. लेकिन अखिलेश के राजनीति में आने के बाद से परिवार में गहमागहमी बढ़ने लगी. 2012 में सपा को पूर्ण बहुमत मिला. लेकिन मुलायम सिंह ने खुद की जगह अखिलेश को सीएम बनाकर सबको हैरान कर लिया. लेकिन मुलायम सिंह की गिरती सेहत और कम सक्रियता के कारण उत्तराधिकार की लड़ाई तेज हो गई. 2017 में जब सपा चुनाव हारी तो बात और बिगड़ गई. 2018 में शिवपाल बागी हो गए और अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली. लेकिन उनको कुछ फायदा नहीं हुआ और वह दोबारा सपा में शामिल हो गए. चाचा भतीजे की इस जंग में अखिलेश भारी पड़े.

चिराग पासवान-पशुपति पारस

जब लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के संस्थापक रामविलास पासवान का निधन हुआ तो पार्टी में दो फाड़ हो गई. रामविलास के बेटे चिराग और उनके भाई पशुपति पारस में उत्तराधिकार की लड़ाई हो गई. पार्टी के दो गुट बन गए. लोजपा (रामविलास) और राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी. लोजपा (रामविलास) की बागडोर चिराग पासवान के पास है. जबकि दूसरी पार्टी की पशुपति पारस के. बिहार 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने खुद को मोदी का हनुमान बताया था. लेकिन उनको झटका तब लगा, जब पशुपति पारस को मोदी कैबिनेट में मंत्री का पद मिला. लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं और अटकलें हैं कि चिराग मोदी कैबिनेट का हिस्सा बन सकते हैं और पशुपति पारस को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है. 

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