Analysis: लोकतंत्र में कोई भी चीज़ छीन कर नहीं ली जा सकती...आज़ादी भी नहीं
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Analysis: लोकतंत्र में कोई भी चीज़ छीन कर नहीं ली जा सकती...आज़ादी भी नहीं

पिछले तीन दिनों से नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हो रही हिंसा की तस्वीरें इस बात का प्रमाण हैं कि हमारे देश में कुछ लोग संविधान की रक्षा के नाम पर संविधान की ही धज्जियां उड़ा रहे हैं.

Analysis: लोकतंत्र में कोई भी चीज़ छीन कर नहीं ली जा सकती...आज़ादी भी नहीं

एक बहुत मशहूर कहावत है कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती. पिछले तीन दिनों से नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) के विरोध में हो रही हिंसा की तस्वीरें इस बात का प्रमाण हैं कि हमारे देश में कुछ लोग संविधान की रक्षा के नाम पर संविधान की ही धज्जियां उड़ा रहे हैं. लेकिन इन सारे प्रमाणों के बावजूद हमारे देश के कुछ लोग हैं जो इन तस्वीरों को सच मानने के लिए तैयार ही नहीं है. ऐसे ही लोगों की पैरवी करने वालों को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है.

शनिवार को जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में विरोध प्रदर्शनों के नाम पर हिंसा हुई थी. इस हिंसा के खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई की, कुछ प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया और कुछ के खिलाफ FIR दर्ज की गई. मंगलवार को पुलिस की इस कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. याचिकाकर्ताओं ने उपद्रवी छात्रों की गिरफ्तारी का विरोध किया और दलील दी कि छात्रों को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों की गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों की तरफ से पेश हुए याचिका-कर्ताओं से ये भी पूछा कि अगर कोई कानून तोड़ता है तो पुलिस को क्या करना चाहिए? पुलिस को हिंसा करने वालों के खिलाफ FIR दर्ज करने से कैसे रोका जा सकता है?

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जैसे ही इस मामले पर सुनवाई खत्म हुई, उसके थोड़ी देर बाद ही दिल्ली के जाफराबाद इलाके में हिंसा भड़क गई. हज़ारों की भीड़ ने प्रदर्शन के नाम पर पत्थरबाज़ी की और दिल्ली पुलिस पर हमला भी किया.

वहीं दूसरी तरफ देश के बुद्धिजीवी, अंग्रेज़ी बोलने वाले सेलिब्रिटिज़ और कई फिल्‍म स्‍टार छात्रों की हिंसा को अभिव्यक्ति की आज़ादी कह रहे हैं. दावा कर रहे हैं कि छात्र संविधान को बचाने के लिए ये सब कर रहे हैं...लेकिन आप ज़रा सोचिए कि क्या संविधान बचाने के नाम पर संविधान को तोड़ने की जो कोशिश हो रही है..उसे जायज़ कह सकते हैं?

बसों को तोड़ना..रेल की पटरियां उखाड़ना..यात्रियों को डराना और पुलिस पर हमला करना..क्या ये हरकतें संविधान बचाने के लिए की जा रही हैं?

इस वक्त हमारा देश एक दो-राहे पर खड़ा है. एक तरफ वो लोग हैं जो देश को हिंसा की आग में झोंक देना चाहते हैं और दूसरी तरफ वो लोग हैं जो देश को इस आग से बचाना चाहते हैं . फैसला आपको करना है कि आप किस तरफ खड़े होना चाहते हैं.

भारतीय राजनीति की विडंबना ये है कि यहां के नेता, सुप्रीम कोर्ट की बात भी सुनने को तैयार नहीं हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून को लेकर, बिना वजह खौफ का माहौल बनाया जा रहा है ताकि मुसलमानों को डराया जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने उपद्रवी छात्रों पर कार्रवाई को सही बताया है लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों के नेता इस मामले पर राष्ट्रपति से मिलने पहुंच गए. कांग्रेस समेत 13 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की और उनसे नागरिकता कानून मामले में दखल देने की अपील की. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तो यहां तक कहा कि केंद्र सरकार लोगों की आवाज़ दबा रही है.

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यानी इन नेताओं को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से भी संतुष्टि नहीं मिलती है और ये लोग देश के राष्ट्रपति से लोकतंत्र बचाने की अपील करने लगते हैं..हो सकता है कि ये लोग राष्ट्रपति की बातों से भी असंतुष्ट होकर किसी दिन संयुक्त राष्ट्र चले जाएं.

छीन कर आज़ादी मांगने वालों पर हमारा विश्‍लेषण पढ़कर आप समझ गए होंगे कि कैसे हमारे देश में संविधान बचाने के नाम पर संविधान तोड़ने वालों को शाबाशी दी जाती है. हमें याद रखना रखना चाहिए कि लोकतंत्र में कोई भी चीज़ छीन कर नहीं ली जा सकती...यहां तक कि आज़ादी भी नहीं.

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