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दयाशंकर मिश्र
इन दिनों यह फैशन है. जिससे भी बात करिए कि वह तनिक ठसक अधिक दिखाते हुए कहेगा, मैं हर समय काम पर रहता हूं. 24x7 प्रोफेशनल हूं, जिंदगी की यही मांग है. इन दिनों वह सभी जो अपने को युवा कहते हैं, चाहे 'करियर' में हों, बेरोजगार हों, 24x7 ही मिलेंगे. अब इससे हासिल क्या हुआ, यह अलग विमर्श है.
हम में से जो भी करियर में हैं, वह जितनी देर अपने प्रोफेशन को देते हैं, उतनी ही देर अक्सर उसके 'पोस्टमार्टम' में जुटे रहते हैं. इसका अर्थ यह कि उनके कॉन्शस, अंकॉन्शस मन दोनों में एक जैसे प्रश्न उमड़ते रहते हैं. इनकी दुनिया में वह सब घूमता रहता है, जो कामकाजी दुनिया से जुड़ा है. उसके बाद शुरू होता है, सोशल मीडिया और सेल्फी का सन्नाटा. यह सब मिलकर 24x7 की दुनिया रच देते हैं. यह दुनिया कुछ ऐसी है कि इसमें प्रवेश तो किया जा सकता है, लेकिन उसके बाद इससे निकलना कुछ वैसा ही है, जैसे वन-वे ट्रैफिक से विपरीत दिशा में निकलना.
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अब जबकि दुनिया में, बड़ी-बड़ी प्रोफेशनल कंपनियों में 'डिस्कनेट' जोन को बढ़ावा दिया जा रहा है. जिसमें आपको कुछ देर के लिए सभी तरह के ऑनलाइन टूल्स, मोबाइल, गैजेट से दूर रहना होता है. आपको किसी भी उस तरह के काम से दूर रहने को कहा जाता है, जिससे आप हर समय घिरे होते हैं. यह असल में खुद को तरोताजा रखने की कोशिश है.
भारत में 24x7 का बढ़ता रोग चिंताजनक है. यह अभी प्रारंभिक चरण में है, इसलिए कुछ बातों पर आपकी असहमति हो सकती है, लेकिन यह दीमक की तरह धीरे-धीरे जीवन को चट करने का काम करने वाला है. यह एक सामाजिक समस्या के रूप में उभर रहा है. मेरे बेहद खास दोस्त हैं, उनके साथ रहते हुए भी एकांत में दस मिनट बात करना असंभव है. वह हर दूसरे पल अपने फोन पर व्यस्त रहते हैं. कुछ न कुछ करते रहते हैं. कभी व्हाट्सएप, कभी फेसबुक और कभी कुछ नहीं तो यही कि कोई फोन तो नहीं आ रहा. हर समय उन्हें सूचना के बीच रहने और लोगों के रिस्पांस की चिंता सताती रहती है. उनके पोस्ट पर कितने 'लाइक' आए, क्यों नहीं आए, इससे उनका रक्त संचार प्रभावित होता रहता है.
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बड़ी मुश्किल और निवेदन के बाद उन्हें घर पर सोशल मीडिया से दूर रहने का वादा किया. जिसे वह कभी-कभी वादा खिलाफी के बाद भी बेहद सफलता से निभा रहे हैं. जबकि यह मित्र पेशे से चिंतक, प्रतिभाशाली, सजग लेखक हैं. दूसरों के लिए उनके पास अनूठी सलाह, संवाद है. इसलिए इस 24x7 के फेर में कौन फंस जाए, यह कहना बहुत मुश्किल है. काम करने, खूब करने और कड़ा परिश्रम करने से 24x7 का कोई विरोध नहीं है. लेकिन आखिरकार आप प्रकृति के नियमों से कम तक भाग सकते हैं. कभी तो आपको विश्राम चाहिए. इन जिन पलों में विश्राम चाहिए, वह कैसे हों, बस इसी बात का सारा संकट है. कई मित्रों की चैटिंग रात को सोते समय भी जारी रहती है.
इन छोटी-छोटी चीजों से हम अपनी सुबह रात जैसी कर लेते हैं और रातें सुबह जैसी. सड़कों, समाज में रतजगों से हैरान, परेशान, अनमने, ऊंघते लोग जरा-जरा सी बातों पर हिंसक हो रहे हैं. धैर्य खो रहे हैं. असल में उनके भीतर का यह गुस्सा अंदर की बेचैनी और बेसब्री का हिस्सा है. 24x7 रहने वालों किसी और से नहीं खुद से कट जाते हैं. अपने होने से कट जाते हैं. अपनों से कट रहे हैं. इसलिए यह तय करें कि हर दिन, सप्ताह में आपका एक समय होना बेहद जरूरी है. कुछ ही देर के लिए सही, लेकिन बाहरी दुनिया से डिस्कनेट होना अपने से जुड़ने की सबसे बुनियादी पहल है. कभी-कभी अपने लिए सोचना स्वार्थी होना नहीं है. इसलिए जीवन को थोड़ा सा समय देने की कोशिश तो होनी ही चाहिए.
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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