मंदिर-मस्जिद की सियासत ने पकड़ी रफ्तार, अब होगा 'एक शाम बाबरी मस्जिद के नाम' मुशायरा
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मंदिर-मस्जिद की सियासत ने पकड़ी रफ्तार, अब होगा 'एक शाम बाबरी मस्जिद के नाम' मुशायरा

दिल्ली में 'एक शाम बाबरी मस्जिद के नाम' से होने जा रहे मुशायरा में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर और शरद यादव मुख्य अथिति होंगे.

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) दिल्ली में "एक शाम बाबरी मस्जिद के नाम" से मुशायरा कराने जा रही है.

नई दिल्ली (शोएब रज़ा): अयोध्या में 5 लाख हिंदुओं के बदले 25 लाख मुसलमानों को इकठ्ठा करने की धमकी देने वाली सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) दिल्ली में "एक शाम बाबरी मस्जिद के नाम" से मुशायरा कराने जा रही है. मुशायरा 7 जनवरी की शाम एवाने ग़ालिब में होगा. एसडीपीआई ने इस मुशायरे में मुल्क के बड़े शायरों को बुलाने का दावा किया है.

एसडीपीआई की तरफ जारी किए गए मुशायरे के पोस्टर में मशहूर शायर जौहर कानपुरी, माजिद देवबंदी, अल्ताफ़ ज़िया मोइन शादाब समेत कई शायरों के नाम शामिल हैं. यही नहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस से निकाले गए नेता मणिशंकर अय्यर और शरद यादव इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होंगे.

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एसडीपीआई के नेशनल कंवीनर तस्लीम रहमानी का कहना है कि जब राम मंदिर के हक़ में आवाज़ बुलंद हो सकती है, तो बाबरी मस्जिद के हक़ में मुसलमान अपनी बात क्यों नहीं रख सकते. तस्लीम रहमानी ने कहा कि 7 जनवरी को दिल्ली में होने वाले मुशायरे से उनकी पार्टी अपनी मुहिम का आगाज़ करेगी, और 28 फरवरी तक देश के अलग अलग सूबों में अपने जागरूकता कार्यक्रम चलाएगी, ताकि मसलमानों को बाबरी मस्ज़िद के लिए एक मंच पर लाया जा सकें.

एसडीपीआई एक राजनीतिक पार्टी है जो केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु समेत कई राज्यों में चुनाव लड़ चुकी है, इस पार्टी को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की राजनीतिक इकाई कहा जाता है, जिसको बीजेपी और आरएसएस कट्टरपंथी संगठन कहता रहा है. एसडीपीआई कुछ दिनों पहले ही इस बात को लेकर निशाने पर थी क्योंकि उसने अयोध्या में भीड़ इकट्ठा करने को लेकर विवादास्पद बयान दिया था.

अयोध्या मामले में 4 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी और अब 10 जनवरी को अगली सुनवाई होगी. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले में साफ कहा है कि सरकार मंदिर को लेकर अभी कोई अध्यादेश नहीं ला रही लेकिन इस मुद्दे पर 2019 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीति जमकर हो रही है.

एसडीआईपी राजनैतिक तौर पर अब तक उत्तरभारत में बहुत ज्यादा कामयाब नहीं रही, ऐसे में कई जानकार मानते हैं कि जज़्बाती मुद्दों के सहारे वो अपनी रणनीति आगे बढ़ाना चाहती है, क्योंकि 90 के दशक में बाबरी ढांचे को गिराए जाने के बाद लंबे वक़्त तक मुसलमान अलग अलग मौकों पर बाबरी मस्जिद का समर्थन करते थे. लेकिन पिछले कुछ बरस में मस्जिद के हक़ में मुसलमानों ने कोई मांग नहीं रखी और कोर्ट के फैसले पर ही अपना विश्वास जताया, लेकिन एसडीपीआई जैसे सियासी दल इस मुद्दे को फिर से तूल दे रहे हैं.

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