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नई दिल्ली: कल 24 दिसंबर को क्रिसमस से ठीक एक दिन पहले राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अपनी छुट्टियां खत्म करके अचानक बाहर निकलने का फैसला किया. राहुल बाहर आए और TV के कैमरों के सामने आकर किसानों के पक्ष में एक डिजाइनर बयान दिया.
कहानियों के मुताबिक, Santa Claus भी क्रिसमस से एक दिन पहले लोगों को डिजाइनर जुराबों में तोहफे भरकर देते हैं. लेकिन इन तोहफों में ज्यादातर सिर्फ मीठी गोलियां ही होती हैं. ठीक ऐसी ही एक मीठी गोली राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने किसानों को देने की कोशिश की है. लेकिन इस मीठी गोली में आग भरी हुई है और राहुल गांधी किसानों को इसी आग से भड़काना चाहते हैं. इसलिए आज हम क्रिसमस पर किसानों का साथ देकर अपनी किस्मत चमकाने की एक और कोशिश करने वाले राहुल गांधी की Part Time Politics का विश्लेषण करेंगे. लेकिन पहले किसान आंदोलन (Farmers Protest) पर अपडेट जान लीजिए.
तीन नए कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ किसान आंदोलन का कल 29 वां दिन था. अब साफ तौर पर किसान दो वर्गों में बंट चुके हैं. एक तरफ कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसान हैं तो दूसरी तरफ कृषि कानूनों का समर्थन करने वाले किसान हैं. अब तक 5 लाख से ज्यादा किसानों ने नए कृषि कानूनों का समर्थन किया है और कहा है कि अगर कानून वापस लिए गए तो ये किसान आंदोलन शुरू कर देंगे. इसलिए आज देश को ये फैसला करना है कि इनमें से कौन से किसान सही हैं ? कल 24 दिसंबर को बड़ी संख्या में कृषि कानूनों का समर्थन कर रहे किसान दिल्ली-नोएडा बॉर्डर पहुंचे.
इस बीच बागपत के किसानों का एक संगठन केंद्रीय कृषि मंत्री से मिला और कृषि कानूनों के समर्थन का पत्र उन्हें दिया. दो लाख किसानों के हस्ताक्षर के साथ किसानों का एक संगठन 23 दिसंबर को भी कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिला था.
किसान कानूनों के समर्थन में हज़ारों किसान नोएडा-दिल्ली बॉर्डर भी पहुंचे. किसान संघर्ष समिति से जुड़े ये किसान 3 लाख किसानों का समर्थन पत्र लेकर पहुंचे थे. ये किसान कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिलना चाहते थे. इस बीच देश के कृषि मंत्री ने भरोसा दिलाया है कि सरकार सभी फैसले छोटे किसानों के हितों को ध्यान में रखकर लेती है और आगे भी ऐसा ही होगा.
आंदोलनकारी किसानों के प्रति हमदर्दी दिखाने के लिए कांग्रेस पार्टी के नेता सड़क पर उतरे. उन्होंने कैमरों के सामने डिजाइनर बयान दिया.
राहुल गांधी पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं के साथ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिले. उन्होंने दावा किया कि उनके पास कृषि कानून के खिलाफ दो करोड़ किसानों के हस्ताक्षर हैं.
15 दिन पहले 9 दिसंबर को भी राहुल गांधी विपक्षी दलों के नेताओं के साथ राष्ट्रपति से मिले थे और तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की थी.
हालांकि उसके बाद राहुल गांधी ने अगले दो हफ्ते तक आंदोलन पर बैठे किसानों की कोई जानकारी नहीं ली. हमेशा की तरह वो ट्विटर पर सक्रिय थे. इस बात की पूरी संभावना है कि राहुल गांधी क्रिसमस की पूर्व संध्या पर किसान प्रेम दिखाने के बाद फिर छुट्टी पर चले जाएं.
किसान आंदोलन में राहुल गांधी की एंट्री से सबसे ज्यादा नुकसान किसानों का ही होगा क्योंकि, राहुल गांधी जिस भी मुद्दे को हाथ लगाते हैं. वो मुद्दा अपना प्रभाव खो देता है क्योंकि, देश की नब्ज़ पहचानने की उनकी समझ बहुत कमज़ोर है.
इस बीच आंदोलन कर रहे किसान लगातार कह रहे हैं कि उन्हें किसी राजनीतिक दल के सहयोग की जरूरत नहीं है. बावजूद इसके राहुल गांधी खुद को किसानों का सबसे बड़ा हितैषी बता रहे हैं.
राहुल गांधी पहले भी कई मुद्दों के Expert यानी विशेषज्ञ बन चुके हैं. उसके बारे में आपको आगे बताएंगे.
राहुल गांधी देश में लोकतंत्र ख़त्म होने की बात करते हैं. लेकिन जब लोकतंत्र ख़त्म होता है तब देश के हालात कैसे हो जाते हैं, इसे समझने के लिए आपको 45 वर्ष पीछे ले चलते हैं.
25 जून 1975 को राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी. तब विपक्ष के किसी नेता को बोलने की आज़ादी नहीं थी. ज़्यादातर नेताओं को जेल में डाल दिया गया था.
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आज राहुल गांधी राष्ट्रपति से मिलते हैं. अपनी पार्टी का ज्ञापन उन्हें सौंपते हैं. बाहर निकलकर मीडिया से बात करते हैं. देश भर के News Channels इसका सीधा प्रसारण करते हैं. ये सब लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत ही होता है. ऐसे में राहुल गांधी पता नहीं देश से कौन से लोकतंत्र के ख़त्म होने का झूठा डर लोगों को दिखा रहे हैं.
अब किसान आंदोलन की बात पर वापस लौटते हैं क्योंकि, राहुल गांधी के इस डिज़ाइनर प्रदर्शन का केंद्र बिंदु किसान ही थे.
आंदोलन कर रहे किसान राजनीतिक दलों से दूरी बनाए हुए हैं. बावजूद इसके कांग्रेस, लेफ्ट पार्टियां और टुकड़े टुकड़े गैंग किसान आंदोलन का क्रेडिट लेना चाहते हैं.
ये अपनी खोई हुई राजनीतिक ज़मीन को पाने के लिए किसान आंदोलन की ज़मीन पर कब्ज़ा करना चाहते है.
ऐसे में सवाल है कि क्या राहुल गांधी ने किसान आंदोलन को नुकसान पहुंचाने वाला कदम उठाया है?
29 दिन से दिल्ली के बॉर्डर पर जमे किसानों पर क्या कांग्रेसी पंजे की छाप पड़ गई है?
ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि नए कानूनों के ज़रिए जो कृषि सुधार किए गए हैं, इन्हें पूरा करने का वादा राहुल गांधी की पार्टी भी करती आई है. घोषणा पत्र से लेकर संसद में उनकी पार्टी के नेताओं ने बयान दिए हैं. यूपीए सरकार में कृषि मंत्री रहे शरद पवार ने APMC मंडियों में सुधार के लिए मुख्यमंत्रियों को चिट्ठियां तक लिखी थीं.
अब भले राहुल गांधी और उनकी पार्टी कृषि कानून का विरोध कर रही है पर जब यूपीए की सरकार थी और उनकी पार्टी के प्रधानमंत्री थे तो वो इन्हीं सुधारों के लिए किसानों को तैयार कर रहे थे. इन्हीं कानूनों को किसानों के लिए अच्छा बता रहे थे.
राहुल गांधी और उनकी पार्टी किसानों के आंदोलन को हाईजैक करना चाहती है. लेकिन हाथ में सिर्फ़ एक बीज पकड़कर पूरी फसल का भविष्य बताने में सक्षम किसान, जानते हैं कि राहुल गांधी उनके आंदोलन की ज़मीन पर अपनी पार्टी के लिए वोटों की फसल बोना चाहते हैं. इसलिए राहुल गांधी के इस राजनीतिक स्टंट के बाद किसानों ने साफ़ किया है कि उन्हें किसी राजनीतिक पार्टी की ज़रूरत नहीं है.
नए नागरिकता कानून और लॉकडाउन के दौरान मजदूरों के पलायन के मुद्दे पर भी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने राजनीति करने की कोशिश की थी. लेकिन जैसा कि हम आपको बता चुके हैं. जैसे ही राहुल गांधी किसी मुद्दे को अपने हाथ में लेते हैं, वैसे ही वो मुद्दा अपना प्रभाव खो देता है. ऐसा ही मज़दूरों को पलायन और नागरिकता कानून के मुद्दे पर हुआ था.
राहुल गांधी का अचानक किसी भी मुद्दे पर Expert बन जाने का इतिहास बहुत पुराना है. वो नोटबंदी और GST पर अर्थशास्त्री बन जाते हैं.
रफाल और भारत चीन सीमा विवाद पर रक्षा विशेषज्ञ की तरह बातें करने लगते हैं.
कोरोना पर उनकी बातें सुनकर लगता है कि अब वो Medical Expert भी बन चुके हैं.
विपक्ष का नेता होने के नाते सरकार की नीति और निर्णयों पर सवाल करना उनका अधिकार है. लेकिन सवाल करने के दौरान अक्सर वो सीमा पार कर जाते हैं.
Surgical Strike और बालाकोट Air Strike के सबूत मांगकर राहुल गांधी ने एक तरह से सेना पर ही सवाल उठाए थे.
चीन से मौजूदा सीमा विवाद पर राहुल गांधी लगातार बोलते रहे हैं. एक बार तो उन्होंने ये दावा कर दिया था कि यदि उनकी सरकार होती तो 15 मिनट में चीन की सेना को 100 किलोमीटर पीछे फेंक देते.
आप सभी जानते हैं कि कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी बहुत बड़ी हैसियत रखते हैं. वो जो निर्णय करते हैं, उस पर सवाल उठाने की हिम्मत कांग्रेस के बहुत कम नेताओं में होती है और जो ये हिम्मत दिखाते भी हैं, वो नेता कुछ दिनों के बाद किसी और पार्टी में दिखाई देते हैं.
ऐसा लगता है कि राहुल गांधी देश के मुद्दों पर भी इसी मानसिकता के साथ सोचते हैं और वो चाहते हैं कि जो बात उन्होंने कही, उसे ही सही माना जाए.
भले ही किसी मामले की उन्हें पूरी जानकारी न हो लेकिन वो ऐसा ज़ाहिर करते हैं कि उन्हें हर मुद्दे का बहुत ज्ञान है.
राहुल गांधी के बारे में कुछ ऐसी बात अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी नई किताब A Promised Land में भी लिखी है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को राजनीति का एक नर्वस और अनफॉर्म्ड यानी अपरिपक्व छात्र बताया था.
इस किताब के पेज नंबर 602 पर बराक ओबामा राहुल गांधी के बारे में लिखते हैं कि राहुल गांधी में एक विशेष प्रकार की घबराहट और कच्चापन दिखाई देता है, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि वो एक ऐसे छात्र हैं जिसने अपने अध्यापक को प्रभावित करने के लिए पढ़ाई तो कर रखी है. लेकिन जब बात विषय पर पकड़ की आती है तो न तो उनमें उसके लिए योग्यता दिखाई देती है और न ही सीखने का जुनून.
इस तरह के व्यक्तित्व को आप Grass Hopper Mind भी कह सकते हैं. Grass Hopper को हिंदी में टिड्डा कहते हैं. Grass Hopper Mind का अर्थ है, एक ऐसा व्यक्ति जो लगातार असंगत निर्णय लेता है, मैदान पर टिकने की बजाय मैदान से भाग जाता है, और एक मुद्दे से दूसरे मुद्दे पर छलांग लगाता रहता है. लेकिन मुद्दों को लेकर सही समझ कभी विकसित नहीं कर पाता.