Coronavirus New Variants: पिछले साल जब कोरोना वायरस की पहली लहर देश में आई थी तो भारत में इससे बच्चे और युवा काफी कम संक्रमित हुए थे और जिन्हें कोरोना हुआ भी था. उनमें ज्यादातर अस्पताल गए बिना ही सही हो गए थे, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है.
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नई दिल्ली: अब हम आपको कोरोना के नए खतरे से सावधान करते हैं और ये खतरा है, डबल म्यूटेंट वायरस का. आप सोच रहे होंगे कि लोग तो कोरोना वायरस से संक्रमित हो रहे हैं फिर ये डबल म्यूटेंट नाम का कौन सा वायरस है, तो अब हम आपको इसके बारे में बताते हैं.
किसी भी वायरस में बदलाव होते रहते हैं और ये एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. मान लीजिए जैसे कोरोना वायरस किसी एक गेंद की तरह गोल आकार का है और इस पर जो ये कांटे लगे हुए हैं. उन्हें स्पाइक्स कहते हैं, जिनमें जेनेटिक मैटेरियल होता है.
जेनेटिक मैटेरियल का मतलब है कि वायरस का DNA या RNA क्या है. कोरोना वायरस का जेनेटिक मैटेरियल RNA है. आपको ये सब बहुत जटिल लग रहा होगा, लेकिन इसे आप ऐसे समझिए कि RNA इस वायरस के घर का पता है.
अब चुनौती ये है कि वायरस के घर का ये पता लगातार बदलता रहता है. यानी वायरस में लगातार बदलाव होते रहते हैं और इसे ही म्यूटेशन कहा जाता है. वायरस जब अपने घर का पता बदलता है यानी म्यूटेट होता है तो वो कई बार नए स्ट्रेन का रूप ले लेता है और अपनी एक अलग पहचान बना लेता है. इसे हम नया वेरिएंट या नया स्ट्रेन कहते हैं और डबल म्यूटेंट वायरस इसी से बनता है.
आसान भाषा में कहें तो डबल म्यूटेंट का मतलब है किसी वायरस के दो स्ट्रेन आपस में मिल जाएं और ये मिलकर एक नया अवतार ले लें. मतलब एक नया वेरिएंट बन जाए. अभी भारत में जो डबल वेरिएंट डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बन गया है, वो दो स्ट्रेन से बना है. एक स्ट्रेन अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य का है और दूसरा स्ट्रेन भारत का ही है.
भारत के National Centre For Disease Control ने मार्च के अंत में ही इस डबल म्यूटेंट वायरस की जानकारी दी थी और बाद में ये तेजी से फैलता चला गया और आप कह सकते हैं कि कोरोना मामलों में आई रिकॉर्ड वृद्धि की एक सबसे बड़ी वजह यही डबल म्यूटेंट वायरस है.
वायरस से दो बड़े खतरे
अब तक महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, गुजरात, कर्नाटक और मध्य प्रदेश समेत 10 राज्यों में इस वायरस को डिटेक्ट किया जा चुका है. इस डबल म्यूटेंट वायरस से दो बड़े खतरे अब तक देखने को मिले हैं.
-पहला खतरा है, इसका इंफेक्शन ज़्यादा है. यानी ये ज़्यादा लोगों को संक्रमित करता है.
-और दूसरा ख़तरा है. ये एक स्वस्थ शरीर में प्रवेश करके उसके मजबूत इम्युनिटी सिस्टम को भी हरा सकता है. यानी वायरस और इम्युनिटी सिस्टम के बीच जो लड़ाई है, उस लड़ाई में ये वायरस एक खतरनाक राक्षस की भूमिका में है, जिसके पास बहुत सारी शक्तियां हैं. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं. इसे आप कुछ आंकड़ों से समझिए.
-पिछले कुछ दिनों में देश में कोरोना मरीजों का पॉजिटिविटी रेट बढ़ गया है. 25 मार्च को जहां देश में पॉजिटिविटी रेट Rate 4.96 प्रतिशत था, तो ये आज 5.42 प्रतिशत हो गया है.
-Double Mutant के अलावा हमारे देश में कोरोना के कई और नए वेरिएंट्स मिले हैं. 15 अप्रैल तक देश में 13 हज़ार 614 नूमनों की Genome Sequencing की गई, जिनमें वायरस के 1 हज़ार 189 वेरिएंट डिटेक्ट हुए.
-इनमें सबसे ज़्यादा 1 हज़ार 109 ब्रिटेन के है. दूसरे नंबर पर दक्षिण अफ्रीका है, जहां के 79 वेरिएंट मिले हैं और एक ब्राजील का भी इसमें मिला है.
यही अलग-अलग वेरिएंट्स अब बच्चों और युवाओं को भी निशाना बना रहे हैं. पिछले साल जब कोरोना वायरस की पहली लहर देश में आई थी तो भारत में इससे बच्चे और युवा काफी कम संक्रमित हुए थे और जिन्हें कोरोना हुआ भी था. उनमें ज्यादातर अस्पताल गए बिना ही सही हो गए थे, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है.
अब कोरोना वायरस का नया वेरिएंट बच्चों और युवाओं पर ज़्यादा हमला कर रहा है. एक अनुमान के मुताबिक, अभी हर पांच नए मामलों में से एक मामला बच्चों और युवाओं का है.
सोचिए जब ऐसे देश में बच्चे और युवा कोरोना वायरस से संक्रमित होने लगें तो उस देश का क्या होगा. अब स्थिति ये बनती दिख रही है, जहां माता पिता खुद से ज्यादा अपने बच्चों को लेकर चिंतित हैं.
यहां एक समझने वाली बात ये है कि वो दिन अब जा चुके हैं, जब कोरोना वायरस उम्रदराज़ लोगों को अपना शिकार बना रहा था. अब परिस्थितियां बदल गई हैं. इस समय देश मे जो कुल मरीज़ हैं, उनमें सबसे ज़्यादा 21 से 30 साल की उम्र वाले हैं. इनकी संख्या 25.99 प्रतिशत है.
जबकि 11 से 20 वर्ष की आयु वाले 9.79 प्रतिशत बच्चे कोरोना से संक्रमित हैं और 10 साल या उससे कम उम्र के 4.42 प्रतिशत बच्चे कोरोन से संघर्ष कर रहे हैं. ये आंकड़ा 70 वर्ष की उम्र वाली कैटेगरी के लोगों से भी ज़्यादा है.
ऐसे में अगर आपके परिवार में किसी बच्चे की तबीयत ठीक नहीं है. उसे बुख़ार है या ठंड लग रही है, जुखाम है, खांसी और सांस लेने में परेशानी आ रही है तो आपको बच्चे की कोरोना जांच कराने में ज़रा भी देर नहीं करना चाहिए.
बच्चों में कोरोना तेज़ी से फैलने का सबसे बड़ा कारण है लापरवाही. जो घर के बड़े हैं, वो नियमों का पालन नहीं करते जिसके कारण वायरस का ट्रांसमिशन बहुत तेजी से फैलता है. बच्चों को कोरोना होने का एक कारण है जो ये नया वायरस है वो बहुत तेज़ी से फैलता है.
-कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन बच्चों के लिए कितना खतरनाक है. इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि दिल्ली में 8 महीने से लेकर 12 साल तक के बच्चे गंभीर संक्रमण की वजह से एडमिट हो रहे हैं.
-हरियाणा में अबतक 8% बच्चों को कोरोना हो चुका है, 2020 में ये संख्या सिर्फ़ 1 प्रतिशत थी.
-कर्नाटक में कोरोना संक्रमण से 30 हज़ार से ज्यादा बच्चे संक्रमित हो चुके हैं.
-गुजरात के सूरत में पिछले 30 दिनों में, 10 वर्ष की आयु तक के 286 बच्चों को कोरोना संक्रमण हुआ जिसमें 14 दिन के बच्चे समेत तीन शिशुओं की मौत हो गई है
-छोटे बच्चों के कोरोना संक्रमित होने के बाद उनकी जिंदगी पर खतरा ज्यादा हो जाता है क्योंकि, छोटे बच्चे सांस में परेशानी नहीं बता पाते हैं. वो संक्रमण के बारे में नहीं बता सकते हैं.
-नवजात बच्चे अपनी मां से दूर भी नहीं रह पाते है. बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, खतरा इसलिए भी ज्यादा बड़ा है. बच्चों को रेडेसिविर जैसी जीवनरक्षक दवाएं नहीं दी जा सकतीं और बच्चों के लिए अभी कोई वैक्सीन भी नहीं है.
-इसलिए बच्चों को संक्रमण से बचाना ही एकमात्र स्थिति है जिसमें वो सुरक्षित रह सकते हैं.
कोरोना की दूसरी लहर बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रही है. इसलिए आपसे गुजारिश है संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में हर जरूरी नियमों का पालन कीजिए. आप खुद कोरोना नियमों का पालन करेंगे तो आपको देखकर बच्चे भी इसे अपनाएंगे.
कोरोना वायरस की दूसरी लहर, पहली लहर से काफी अलग है. 2020 को कोरोना वायरस अलग था और 2021 का कोरोना वायरस काफ़ी बदल गया है और इसलिए ये बच्चों को भी संक्रमित कर रहा है और ये RT-PCR टेस्ट में भी नहीं पकड़ा जा रहा है.
कल हमने आपको ये बताया था कि देश में इस समय ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें मरीज़ पॉज़िटिव होता है लेकिन उसकी टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आती है। क्योंकि ये नया वेरिएंट नाक और मुंह से लिए गए नमूनों में पकड़ में नहीं आत. ये सीधे फेफड़ों पर हमला करता है.
एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि इस समय जो कोरोना वायरस फैल रहा है, वो 2 से 3 दिन में ही फेफड़ों को बर्बाद कर देता है और मरीज़ को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है. जबकि पहले ऐसा नहीं होता था. पहले कोरोना वायरस सीमित मामलों में ही फेफडों पर इस तरह का हमला करता था और इसमें भी उसे 7 से 10 दिन लगते थे, लेकिन अब लग रहे हैं सिर्फ 2 से 3 दिन.
डॉक्टरों का कहना है कि आज अगर कोई व्यक्ति औसतन हर दिन 3 सिगरेट पीता है तो इससे 20 साल में उसके फेफड़ों को जितना नुकसान होगा. उतना नुकसान इस वायरस से 2 से 3 दिन में ही हो जाता है. सोचिए ये नया वेरिएंट कितना खतरनाक है. सबसे बड़ी समस्या ये है कि ये वायरस टेस्ट में भी पकड़ में नहीं आता. ऐसा क्यों होता है, ये अब आप सरल भाषा में समझिए.
हमारे देश में भी अभी वायरस की जांच के लिए RT-PCR और Rapid Antigen test किए जा रहे हैं और ये दोनों ही पुराने तरीक़ों पर आधारित हैं. RT PCR टेस्ट में पहले वायरस के RNA को DNA में बदला जाता है और फिर नूमनों से उसको कॉपी किया जाता है. अगर कॉपीज बनती हैं तो इसका मतलब होता है. व्यक्ति कोरोना से संक्रमित हैं और कॉपीज नहीं बनती तो रिपोर्ट निगेटिव रहती है.
अब नए वाले वेरिएंट में ऐसा ही हो रहा है, जिसकी एक वजह ये है कि ये पुराने वाले वायरस की जीनोम सीक्वेसिंग से मेल नहीं खाता और जब ऐसा होता है तो रिपोर्ट नेगेटिव आती है, जबकि व्यक्ति पॉजिटिव ही होता है. हालांकि CT Scan में ये नया वेरिएंट पकड़ में आ जाता है, जिसकी वजह से अब कोरोना की जांच के लिए इस तकनीक का सहारा लिया जा रहा है.
दिल्ली की एक पैथोलॉजी लैब में एक अप्रैल से 14 अप्रैल के बीच 1069 लोगों का CT Scan हुआ, जिनमें से 557 लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई, लेकिन हैरानी की बात ये है कि जब इन लोगों ने कोरोना की जांच कराई थी तो इनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई थी. इस तरह के मामलों में दो बड़े खतरे रहते हैं. पहला ये कि मरीज़ को देर से पता चलता है कि उसे कोरोना हुआ है, जिसकी वजह से वो समय पर इलाज नहीं ले पाता और दूसरा ये कि ऐसा व्यक्ति खुद को निगेटिव मान कर कहीं भी आ जा सकता है, जिससे दूसरे लोगों के संक्रमित होने का डर रहता है.