DNA ANALYSIS: अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वालों की अब खैर नहीं
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DNA ANALYSIS: अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वालों की अब खैर नहीं

जो लोग सोचते हैं कि क्रिएटिव फ्रीडम पर कुछ भी करके आसानी से बच सकते हैं तो ये खबर उनके लिए बड़ा झटका है. अब अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना भारी पड़ेगा. इन तीन खबरों से समझें पूरी कहानी.

DNA ANALYSIS: अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वालों की अब खैर नहीं

नई दिल्ली: अब पद्म श्री का जमाना निकल चुका है और FIR का जमाना आ गया है. इसलिए हम उस बदलाव के बारे में बताना चाहते हैं जिसने अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर हमारे देश में मौजूद गलत धारणाओं को तोड़ा है. और सीमाओं की एक ऐसी रेखा खींची है जो हमारे अधिकारों के प्रति हमारी जिम्मेदारी को स्पष्ट करती है. ये बदलाव एक संदेश भी देता है कि हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी बोलने, लिखने और दिखाने वालों के दिन अब जा चुके हैं. लेकिन इस बदलाव को समझने के लिए आपको ये तीन खबरें समझनी होंगी.

वेब सीरीज Tandav से जुड़ी है पहली खबर

पहली खबर 15 जनवरी को रिलीज हुई वेब सीरीज तांडव (Tandav) से जुड़ी है. इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग राज्यों में दर्ज की गईं 7 FIR रद्द करने से इनकार कर दिया. तांडव की टीम की तरफ से गिरफ्तारी पर रोक लगाने की अपील भी की गई थी, जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया. ये उन लोगों के लिए एक बड़ा झटका है, जो ये सोचते हैं कि वो क्रिएटिव फ्रीडम के नाम पर कुछ भी करके आसानी से बच सकते हैं.

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धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना एक प्रयोग

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दो अहम बातें कहीं हैं. पहली ये कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी दिखाने की छूट नहीं दी जा सकती. और दूसरी बात सुप्रीम कोर्ट ने ऐक्टर मोहम्मद जीशान अयूब से कहा कि उन्होंने ऐसी स्क्रिप्ट पर काम करने की समहति दी जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती है और अब वो अपनी जिम्मेदारी से छिप नहीं सकते. यानी सुप्रीम कोर्ट भी ये समझ चुका है कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना संयोग नहीं असल में एक प्रयोग है, जिसके दिन अब पूरे हो चुके हैं. 

अगर 10 साल पहले आई होती 'तांडव' तो क्या होता?

जीशान अयूब (Mohammed Zeeshan Ayyub) ने ही इस वेब सीरीज में हिंदू देवी देवताओं को अपमानित करने वाला रोल निभाया है और अब उन्हें गिरफ्तारी का डर है. और सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें झटका दे दिया है. लेकिन अगर ये वेब सीरीज आज से 10 साल पहले आई होती तो क्या होता? तब शायद जीशान अयूब के खिलाफ आवाज ही नहीं उठती. सरकार उनके समर्थन में खड़ी हो जाती और बात को वहीं दबा दिया जाता और धार्मिक अपमान को क्रिएटिव फ्रीडम के नाम पर सही ठहराया जाता. लेकिन समय बदला है और साथ ही परिस्थितियां भी बदल चुकी हैं. इसे अब आप दूसरी खबर से समझिए.

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कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी से जुड़ी है दूसरी खबर

ये खबर स्टैंड अप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी (Munawar Faruqui) से जुड़ी है, जिसे मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने ये कहते हुए जमानत देने से इनकार दिया कि अभिव्यक्ति की आजादी कुछ सीमाओं के साथ मिलती है. और इन सीमाओं का मुनव्वर फारुकी ने सम्मान नहीं किया. उसे एक जनवरी को गिरफ्तार किया गया था और उस पर अपने एक कार्यक्रम में हिंदू देवी देवताओं का अपमान करने का आरोप है. यानी यहां भी ये बात साबित होती है कि अब ये लोग अभिव्यक्ति की आड़ लेकर बच नहीं सकते.

डिजाइनर पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह का मामला

तीसरी खबर हमारे देश के उन डिजायनर पत्रकारों के बारे में हैं जिन्होंने 26 जनवरी को फ्रीडम ऑफ स्पीच (Freedom of Speech) के नाम पर फेक न्यूज (Fake News) फैलाई और लोगों को भड़काने की कोशिश की. इन 6 पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया है. इनमें देश एक बड़ा पत्रकार भी शामिल है जो पहले भी इस तरह की फेक न्यूज फैला चुका है. लेकिन तब उस पर FIR नहीं होती थी. उस पर राजद्रोह का मुकदमा नहीं होता था. तब ऐसे पत्रकारों को बड़े-बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता था. लेकिन आज समय बदल चुका है और असली गोदी मीडिया भी एक्सपोज हुआ है.

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इन धाराओं में दर्ज हुई एफआईआर

इन पत्रकारों के खिलाफ आईपीसी (IPC) की अलग-अलग धाराओं में FIR दर्ज हुई हैं. इनमें पहली धारा है 124-A यानी राजद्रोह, 153-B यानी राष्ट्रीय अखंडता के खिलाफ प्रतिकूल माहौल तैयार करना और लोगों को उकसाना, 295-A यानी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, 504 यानी हिंसा के लिए भड़काना, 50 (2)- भड़काऊ बयान देना, और IPC की धारा 120-B यानी आपराधिक षड्यंत्र रचना है.

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