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DNA Analysis on VAT on Petrol Diesel Price: पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों के पीछे की बड़ी वजह देश के कई राज्यों का लालच है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुधवार को राज्यों से इसे कम करने की अपील करनी पड़ी. उन्हें कहना पड़ा कि ये राज्य तेल पर लगने वाला VAT घटा दें ताकि महंगे पेट्रोल और डीजल की कीमतें कम हो सकें और लोगों को राहत मिल सके.
ये वो सरकारें हैं जहां अक्सर ही महंगे तेल की कीमतों पर धरने प्रदर्शन होते हैं और केंद्र सरकार के खिलाफ नारे लगाए जाते हैं. हालांकि शायद आप नहीं जानते कि महंगे तेल के लिए काफी हद तक ये राज्य खुद जिम्मेदार हैं. ज्यादा टैक्स लगाकर सरकारी खजाना भरने का उनका लालच जिम्मेदार है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के मुद्दे पर बुधवार को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की. इस वर्चुअल बैठक में उन्होंने पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर चर्चा की और कई राज्यों का नाम लेकर उनसे प्रार्थना की ताकि वो पेट्रोल-डीजल पर अपनी VAT की कमाई थोड़ा घटा दें ताकि कीमतें कम हो सकें और जनता को राहत मिले. प्रधानमंत्री मोदी ने इन राज्यों को संघीय ढांचे की भी याद दिलाई और देशहित के लिए एकजुट होकर काम करने की अपील की.
केंद्र सरकार ने पिछले साल 4 नवंबर को पेट्रोल की एक्साइज ड्यूटी में 5 रुपये और डीजल की एक्साइज ड्यूटी में 10 रुपये प्रति लीटर की कटौती की थी. यानी केंद्र सरकार ने अपने हिस्से का बड़ा राज्स्व आम जनता को फायदा पहुंचाने के लिए छोड़ दिया था.
प्रधानमंत्री ने उस समय राज्य सरकारों से भी वैट कम करने की अपील की थी. उसके बाद उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा जैसे कई राज्यों ने वैट कम भी किया था. लेकिन महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश जैसे कई राज्यों ने पीएम की अपील ठुकरा दी और वैट में कोई कटौती नहीं की. इन राज्यों में पेट्रोल और डीजल के दाम, दूसरे राज्यों की तुलना में काफी ज्यादा है.
#DNA : जनता को महंगा तेल बेचने के क्या लाभ ?@aditi_tyagi
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यहां आपको ये भी जान लेना चाहिए कि वैट कम करने वाले अधिकतर राज्यों में बीजेपी की सरकार है, जबकि जिन राज्यों ने अब तक वैट कम नहीं किया है. वहां बीजेपी की सरकारें नहीं हैं बल्कि क्षेत्रीय पार्टियों की सरकारें हैं. कई राज्यों में कांग्रेस भी सरकार में शामिल है.
महाराष्ट्र में कांग्रेस-NCP-शिवसेना के गठबंधन की सरकार है. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सत्ता में है और ममता बनर्जी वहां की मुख्यमंत्री हैं. तेलंगाना में TRS यानी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति की सरकार है. इसी तरह आंध्र प्रदेश में YSR कांग्रेस पार्टी, जबकि केरल में लेफ्ट गठबंधन सत्ता में हैं. झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार है. जबकि तमिलनाडु में भी DMK और कांग्रेस सरकार चला रही हैं.
पहली वजह ये है कि अलग-अलग राज्यों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में काफी अंतर आ गया है. जैसे मुम्बई में इस समय एक लीटर पेट्रोल की कीमत करीब 120 रुपये है, जबकि मुंबई के ही पास दमन और दीव में पेट्रोल का रेट 102 रुपये प्रति लीटर है. चेन्नई में एक लीटर पेट्रोल करीब 111 रुपये का मिल रहा है. इसी तरह जयपुर में पेट्रोल का दाम 118 रुपये प्रति लीटर है. कोलकाता में पेट्रोल करीब 115 रुपये प्रति लीटर और हैदराबाद में इसकी कीमत 119 रुपये प्रति लीटर है. जबकि उत्तराखंड के देहरादून में एक लीटर पेट्रोल 103 रुपये में मिल जाता है.
हरियाणा के गुरुग्राम और यूपी के लखनऊ मे पेट्रोल की कीमत 105 रुपये प्रति लीटर है. इन तीनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं और उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की अपील के बाद ही तेल पर अपनी कमाई कम करते हुए वैट घटा दिया था, जिसके बाद तेल के दाम भी घट गए. अब आप खुद समझ सकते हैं कि मुम्बई में रहने वाले किसी व्यक्ति को लखनऊ में रहने वाले व्यक्ति की तुलना में एक लीटर पेट्रोल के लिए 15 रुपये अधिक खर्च करने पड़ते हैं.
ये अंतर इसलिए है क्योंकि महाराष्ट्र की सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले वैट में कटौती नहीं की. हालांकि यही राज्य तेल की महंगाई के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराने में कमी नहीं छोड़ते हैं. अब प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों के निवासियों को भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के लोगों की तरह थोड़ा सस्ता पेट्रोल और डीजल मिल सके.
इसके अलावा इस समय की जियोपॉलिटिक्स भी इसका एक बड़ा कारण हैं. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध होने की वजह से तेल की सप्लाई चेन पर असर पड़ा है. इंटरनेशल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ी हैं और उसका सीधा असर भारत में भी दिख रहा है. यहां आपके लिए ये जानना जरूरी है कि भारत अपनी जरूरत का लगभग 80 प्रतिशत तेल इम्पोर्ट करता है, इसलिए हमें विदेश से महंगा तेल खरीदना पड़ रहा है.
उसका दाम कम करने का यही रास्ता है कि तेल पर TAX और VAT घटा दिया जाए. लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे कुछ राज्यों के पास इसके लिए जरूरी इच्छाशक्ति का अभाव है. कुछ राज्य तेल के नाम पर कैसे जनता का तेल निकाल कर अपना खजाना भर रहे हैं ये समझने के लिए आपको तेल का खेल समझना होगा. आखिर पेट्रोल औऱ डीजल पर लगने वाले टैक्स में केंद्र सरकार का क्या हिस्सा होता है और राज्य सरकार को क्या मिलता है?
विदेश से जो कच्चा तेल इम्पोर्ट होकर भारत आता है, इस समय उसकी कीमत करीब 49.33 रुपये प्रति लीटर पड़ रही है. अब इस कच्चे तेल को रिफाइनरी में प्रोसेस करने और रिफाइनरी का मुनाफा जोड़ लेते हैं तो ये लागत करीब 7.25 रुपये प्रति लीटर बढ़ जाती है. रिफाइनरी से निकलने वाले पेट्रोल पर केंद्र सरकार 27.90 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी लगाती है. फिर इसमें 3.80 रुपये डीलर कमीशन जोड़ा जाता है.
इसके बाद अब राज्य सरकारें अपनी कमाई का इंतजाम करते हुए तेल पर VAT लगाती हैं. उदाहरण के लिए इस समय महाराष्ट्र में एक लीटर पेट्रोल पर 32.19 रुपये वैट लिया जा रहा है. इस तरह मुम्बई में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 120.47 रुपये हो जाती है. अगर दिल्ली की बात करें तो यहां वैट 17.13 रुपये प्रति लीटर लगाया जाता है, जिसके बाद दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 105.41 रुपये हो जाती है.
कच्चे तेल की कीमत करीब 49.33 रुपये प्रति लीटर है. इसके बाद कच्चे तेल को रिफाइनरी में प्रोसेस करने और रिफायनरी का मुनाफा करीब 8.86 रुपये प्रति लीटर होता है. अब इस पर केंद्र सरकार 21.80 रुपये की एक्साइज ड्यूटी लगाती है. फिर इसमें डीलर का 2.60 रुपये प्रति लीटर का कमीशन जोड़ा जाता है. इसके बाद इसमें राज्य अपना वैट भी लगाते हैं. उदाहरण के लिए दिल्ली में डीजल पर वैट 14.08 रुपये प्रति लीटर है, इस तरह दिल्ली में डीजल की कीमत 96.67 रुपये प्रति लीटर हो जाती है.
अगर महाराष्ट्र का उदाहरण देखें, तो यहां डीजल पर 22.13 Rs/Ltr की दर से वैट लगाया जाता है. ये सारे टैक्स और डीलर कमीशन जोड़ने के बाद मुम्बई में एक लीटर डीजल की कीमत 104.72 रुपये प्रति लीटर हो जाती है.
अब आप आसानी से समझ सकते हैं कि किस तरह महाराष्ट्र सरकार एक लीटर पेट्रोल पर 32 रुपये से भी ज्यादा वैट वसूल रही है, जबकि केंद्र सरकार का टैक्स 28 रुपये ही है. यानी महाराष्ट्र सरकार ने पेट्रोल पर केंद्र सरकार से ज्यादा टैक्स लगाया है. इसके बाद वहां के मुख्यमंत्री महंगे पेट्रोल के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार भी ठहराते हैं.
यहां आपके लिए ये जानना भी जरूरी है कि पेट्रोल पर कौन सा राज्य कितना वैट वसूलता है. इसके लिए हम कुछ राज्यों में पेट्रोल पर लगने वाले वैट की तुलना आंकड़ों के जरिए समझाएंगे.
इस समय पेट्रोल पर सबसे ज्यादा वैट महाराष्ट्र में ही लगाया जा रहा है. महाराष्ट्र में ग्राहकों को एक लीटर पेट्रोल पर 32.19 रुपये वैट देना पड़ रहा है. इसके बाद आंध्र प्रदेश का नंबर आता है. आंध्र प्रदेश में पेट्रोल पर 31.59 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से वैट देना पड़ता है. राजस्थान में लोगों को एक लीटर पेट्रोल पर 29.10 रुपये और केरल में 27.24 रुपये वैट देना पड़ता है. जबकि पश्चिम बंगाल में भी एक लीटर पेट्रोल पर 26.24 रुपये का वैट लगता है. ये सभी गैर बीजेपी शासित राज्य हैं, यानी यहां बीजेपी की सरकार नहीं है.
अब हम इसकी तुलना कुछ दूसरे राज्यों से करते हैं. उत्तराखंड में पेट्रोल पर वैट की दर 14.51 रुपये प्रति लीटर, उत्तर प्रदेश में 16.50 रुपये प्रति लीटर और गुजरात में 16.56 रुपये प्रति लीटर है. इसी तरह हिमाचल प्रदेश में 16.60 रुपये प्रतिलीटर जबकि असम में एक लीटर पेट्रोल पर 17.38 रुपये वैट देना पड़ता है.
इन सभी राज्यों में बीजेपी की सरकार हैं और इन्होने प्रधानमंत्री मोदी की अपील पर 6 महीने पहले ही वैट में कटौती कर दी थी. इसकी वजह से इन राज्यों को काफी नुकसान भी उठाना पड़ा. आंकड़ों के अनुसार इन राज्यों ने डीजल पर 5 रुपये प्रति लीटर और पेट्रोल पर 6 रुपये प्रति लीटर की कटौती की थी.
यानी नवंबर 2021 और मार्च 2022 के बीच जिन राज्यों ने पेट्रोल और डीजल पर अपने वैट को घटाया था. उन्हे कुल मिलाकर करीब 16 हजार करोड़ रुपये (15,969 ) का घाटा उठाना पड़ा. इसमें बीजेपी के शासन वाले राज्यों का हिस्सा 11,398 करोड़ रुपये है. यानी घाटे का ज्यादा बड़ा हिस्सा बीजेपी शासित राज्यों ने उठाया. इन राज्यों ने अपनी जनता को थोड़ी राहत देने के लिए करोड़ों की कमाई छोड़ने का निर्णय लिया.
लेकिन कुछ ऐसे भी राज्य हैं, जिन्होने अपनी कमाई को ज्यादा महत्व दिया और वैट के जरिए अपना खजाना भरते रहे. महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, केरल और झारखंड जैसे 7 राज्यों ने ने अभी भी वैट की दरों में कोई कटौती नहीं की है. इससे इन राज्यों को दूसरे राज्यों की तुलना में करीब 11,945 करोड़ रुपये की अतिरिक्त कमाई हुई है.
अब आप समझ गए होंगे कि महंगे पेट्रोल और डीजल के लिए सिर्फ़ केंद्र सरकार ही जिम्मेदार नहीं है. इसमें राज्यों का भी उतनी ही भूमिका है. राज्य भी चाहें तो अपने हिस्से का टैक्स कम करके जनता को कुछ राहत तो दे ही सकते हैं, लेकिन कई राज्य सरकारों ने ऐसा नहीं किया. इसकी वजह से उनकी जनता को दूसरे राज्यों की तुलना में महंगा पेट्रोल और डीजल खरीदना पड़ रहा है.
किसी भी मुद्दे पर सियासत करना हमारे देश में एक परंपरा बन चुकी है. चाहे बात देशहित की ही क्यों न हो उस पर पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीति होने ही लगती है. इस बार भी जब प्रधानमंत्री मोदी ने देश के संघीय ढांचे और देशहित के लिए राज्यों से वैट घटाने के लिए कहा तो इस पर राजनीति शुरू हो गई. कांग्रेस समेत विपक्ष की कई पार्टियों उल्टा केंद्र सरकार पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए.
पीएम ने जिन राज्यों से वैट घटाने की अपील की थी, उन्होने भी केंद्र को ही जिम्मेदार ठहराया. महाराष्ट्र सरकार ने बयान जारी किया और कहा कि महंगे पेट्रोल और डीजल के लिए सिर्फ राज्य सरकार का वैट ही जिम्मेदार नहीं हैं, महाराष्ट्र सरकार ने नैचुरल गैस पर वैट कम करने की दलील भी दी.
इसी तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी प्रधानमंत्री पर निशाना साधा. उन्होने कहा कि प्रधानमंत्री राज्यों पर बोझ नहीं डाल सकते हैं और उन्हे ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए. उन्होने दावा किया कि पश्चिम बंगाल का केंद्र सरकार पर करीब 97 हजार करोड़ रुपये बाकी है और पीएम को पहले ये राशि पश्चिम बंगाल को चुकानी चाहिए. शिवसेना ने भी यही दलील दी और वैट घटाने की जगह केंद्र सरकार से उनकी बकाया राशि चुकाने की मांग शुरू कर दी.
प्रधानमंत्री ने राज्यों से जनता को राहत पहुंचाने के लिए वैट घटाने की अपील की. लेकिन कांग्रेस ने उन्हे जवाब दिया और कहा कि पहले बीजेपी के शासन वाले राज्यों को वैट कम करना चाहिए. ये स्थिति तब है जबकि केंद्र सरकार पहले ही पेट्रोल पर पांच रुपये और डीजल पर 10 रुपये का टैक्स घटा चुकी है. इस कटौती के कारण केंद्र सरकार को औसतन हर महीने 8,700 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है, यानी सालाना एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान केंद्र सरकार उठाएगी.
ये बहुत बड़ी राशि है. इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि आज देश का शिक्षा बजट ही करीब एक लाख करोड़ रुपये है. इसी तरह असम, झारखंड और दिल्ली जैसे कई राज्यों का सालाना बजट भी एक लाख करोड़ रुपये से कम है. यानी टैक्स कम करने से केंद्र सरकार को जितना नुकसान हो रहा है, उतना तो कई राज्यों का बजट भी नहीं है. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी कहा कि जनता को राहत पहुंचाने के लिए राज्यों को वैट कम करना चाहिए.
अब हम आपको इसी मामले से जुड़ी कुछ और जरूरी जानकारियां भी बता रहे हैं. सिर्फ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में पेट्रोल और डीजल की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं. केंद्रीय पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राज्यसभा में जानकारी दी थी कि रशिया और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं और इसके बाद भी भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम उस अनुपात में नहीं बढाए गए. उन्होंने बताया कि अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा और स्पेन जैसे देशों मे ईंधन की कीमतें 50 से 55 प्रतिशत तक बढ़ी हैं, लेकिन भारत में कीमत सिर्फ 5 प्रतिशत ही बढ़ाई गई हैं.
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आपको ये भी जानना चाहिए कि भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत कच्चा तेल इम्पोर्ट करता है. यानी अगर विश्व में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो उसका सीधा असर भारत के इम्पोर्ट बिल पर भी पड़ता हैं. सरकार महंगा तेल खरीदने के लिए मजबूर हो जाती है.
अप्रैल 2021 में जो कच्चा तेल 63.4 डॉलर प्रति बैरल था, वो मार्च 2022 में 112.87 डॉलर प्रति बैरल हो गया. यानी एक साल में कच्चे तेल की कीमत में 78 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई. इसका सीधा मतलब ये है कि भारत को उतना ही तेल खरीदने के लिए 78 प्रतिशत ज्यादा भुगतान करना पड़ा. इसके बाद भी भारत में ईंधन की कीमतें दूसरे देशों की तुलना में काफी कम हैं.
अगर आप रुपये के हिसाब से देखें तो द नीदरलैंड्स में एक लीटर पेट्रोल की कीमत करीब 193 रुपये, जर्मनी में 171 रुपये, स्वीडन में करीब 178 रुपये, इटली में 151 रुपये, फ्रांस में करीब 146 रुपये और जापान में 104 रुपये से कुछ ज्यादा है. जबकि भारत में अगर देहरादून का रेट देखें तो यहां एक लीटर पेट्रोल की कीमत 103.81 रुपये ही है. ये वो देश हैं, जो अपनी जरूरत का ज्यादातर कच्चा तेल भारत की तरह विदेश से आयात करते हैं. फिर भी भारत में इन सभी देशों की तुलना में पेट्रोल और डीजल के रेट काफी कम हैं. सिर्फ टर्की ही इस लिस्ट में भारत से आगे है.
अब हम पड़ोसी देशों से भी भारत की तुलना कर लेते हैं. पड़ोसी देशों पाकिस्तान और श्रीलंका में पेट्रोल और डीजल की कीमतें भारत की तुलना में कम हैं. वहां ये कीमतें इसलिए कम हैं, क्योंकि वहां की सरकारों ने अपनी जनता को खुश रखने और वोटबैंक के लिए टैक्स में काफी कटौती की, लेकिन इससे उनकी अर्थव्यवस्था पर बहुत खराब असर पड़ा है. आज श्रीलंका दिवालिया होने की कगार पर है. पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली भी किसी से छिपी नहीं है.
यानी ये स्पष्ट है कि जनता को फायदा पहुंचाने के लिए सिर्फ एक सरकार की जिम्मेदारी नहीं है. संघीय ढांचे में केंद्र और राज्य की बराबर जिम्मेदारी है. जनता के दोनों से सरोकार है, इसलिये दोनों को मिलकर राहत देनी होगी. प्रधानमंत्री का इशारा इसी तरफ था. ताली एक हाथ से नहीं बजती.