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नई दिल्ली: साल 1978 में एक फिल्म आई थी, जिसका नाम था 'गमन' और इस फिल्म का एक मशहूर गाना था, 'सीने में जलन, आंखों में तूफान में सा क्यों है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है.' आज कल जब आप सड़क पर निकलते हैं तो तीन चीजें आपको सबसे पहले नजर आती हैं- नाराजगी, क्रोध और जल्दबाजी.
और ये नाराज, क्रोधित और जल्दबाजी में रहने वाले लोग इस मनोस्थिति में कुछ भी कर सकते हैं. इनके रास्ते में जो भी आएगा ये उनसे झगड़ा करेंगे. मारपीट करेंगे और यहां तक कि उनकी हत्या भी कर सकते हैं. इसीलिए जब आप अपने घर से निकलते हैं तो आपके बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि सड़क पर अगर गाड़ी कहीं लड़ जाए तो झगड़ा मत (Road Rage) करना और चुपचाप घर चले आना.
वो ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि सड़क पर चल रहे ज्यादातर भारतीय हिंदी फिल्मों के Angry Young Man जैसे बन गए हैं. इन लोगों में तनाव का स्तर बहुत ज्यादा है. ऐसे लोगों का गुस्सा एक एटम बम की तरह होता है. और हमें लगता है कि ये एक तरह की सामाजिक बीमारी है.
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देश की राजधानी दिल्ली से एक ऐसी खबर आई जो अब लोगों के बीच बहस का विषय बन गई है. दिल्ली में 16 मार्च को Road Rage की एक घटना के दौरान दो लोगों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई. हत्या का कारण सिर्फ इतना था कि एक Scooty और बाइक के बीच मामूली टक्कर हो गई थी.
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हैरानी की बात ये है कि इस टक्कर में ना तो स्कूटी को कोई नुकसान पहुंचा और ना ही बाइक को कोई खरोंच आई. लेकिन इन लड़कों के मन में खरोंच आ गई थी और इसी वजह से उन्होंने दो लोगों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी.
आज इस गुस्से को समझने के लिए आपको ये CCTV वीडियो बहुत ध्यान से देखना होगा. जिसमें साफ दिख रहा है कि बाइक और स्कूटी के बीच टक्कर होने के बाद इन लड़कों के बीच झगड़ा हुआ. इसके बाद जिन दो लड़कों की हत्या हुई, उन्हीं में से एक लड़के ने दूसरे लड़कों को थप्पड़ जड़ दिया था.
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फिर जो लड़के बाइक पर थे, उनमें से एक लड़के ने अपनी जेब से चाकू निकाला और फिर उसने चाकू से कई बार वार किए. सोचिए ये लड़के शराब के नशे में थे और जिस लड़के ने चाकू से वार किया उसकी उम्र सिर्फ 17 साल है यानी वो नाबालिग है. इन लड़कों ने Scooty से जा रहे दो लोगों की हत्या कर दी.
आज बहुत से लोग सोशल मीडिया पर ये लिख रहे हैं कि अगर एक मामूली सी दुर्घटना में दो लोगों की हत्या हो जाती है और हत्या करने वाला एक लड़का नाबालिग है तो फिर हमारे देश में सड़कों पर निकलना कितना सुरक्षित है. सोचिए इन लड़कों ने अगर इस मामले को शांति से सुलझाया होता तो क्या ये दो लोग मारे जाते. और जिन दो लोगों की हत्या हुई अगर वो पहले मारपीट नहीं करते तो क्या ये घटना होती.
इस सवाल का जवाब बहुत सीधा सा है और वो ये है कि आज सड़क पर हर आदमी नाराज है, क्रोध में हैं और उसे हर चीज की जल्दबाजी है. जब इस मनोस्थिति के साथ वो सड़क पर निकलता है तो उसे लगता है कि वो युद्ध करने निकला है और इस युद्ध में वही व्यक्ति जीतता है, जो शक्तिशाली है और जिसका गुस्सा सारी सीमाओं को लांघने के लिए पागलपन में बदल गया है.
इसके लिए वो किसी की भी जान ले सकता है, घायल कर सकता है और ऐसे लोगों का दिमाग हर समय गाड़ी के इंजन की तरह गर्म रहता है. ये लोग क्रोध की भट्टी में तपते रहते हैं. ये मनोस्थिति स्वास्थ्य के लिए तो हानिकारक है ही साथ ही अब ये समाज के लिए भी हानिकारक बनती जा रही हैं. इसे आप कुछ आंकड़ों से भी समझ सकते हैं.
एक सर्वे के मुताबिक, महानगरों में रहने वाले लोगों में गुस्से की सबसे बड़ी वजह ट्रैफिक जाम है. औसतन एक भारतीय को प्रतिदिन ऑफिस आने-जाने में 2 घंटे का वक्त लगता है. यानी इतना समय वो ट्रैफिक के बीच बिताते हैं.
सर्वे में शामिल 65 प्रतिशत लोगों ने बताया कि प्रतिदिन एक बार उनका गुस्सा बेकाबू हो जाता है और 60 प्रतिशत लोग ये मानते हैं कि अक्सर इस गुस्से का शिकार कोई अनजान व्यक्ति, उनका परिवार और उनके दोस्त होते हैं.
इसी सर्वे में ये आशंका भी जताई गई है कि भारत के महानगरों में रहने वाले आधे से ज्यादा लोग तनाव की वजह से, Road Rage जैसी घटना में कभी भी शामिल हो सकते हैं. यानी उनकी मनोस्थिति ऐसी है कि अगर किसी ने उनकी गाड़ी को हल्की सी टक्कर भी मार दी तो ये उनकी जान भी ले सकते हैं. NCRB के आंकड़े भी यही बताते हैं
NCRB के मुताबिक, 2016 में Road Rage की घटनाओं के दौरान 514 लोगों की हत्या कर दी गई थी. जबकि 2017 में ये आंकड़ा बढ़कर 540 हो गया था.
यानी बात सिर्फ दिल्ली की नहीं है. बात पूरे देश की है क्योंकि देशभर में Road Rage की ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और लोग मारे जा रहे हैं. इसलिए आज लोगों की इस नाराजगी, उनके क्रोध और जल्दबाजी का विश्लेषण करना भी जरूरी है. सबसे पहले आपको इस गुस्से की कुछ बड़ी वजह बताते हैं.
भारत में सड़कों पर जगह कम है और मोटर वाहन ज्यादा हैं. हमारे शहरों में वाहनों की कम होती Speed इसका सबसे बड़ा सबूत है. बेंगलुरु में वाहनों की औसत गति सबसे कम है. यहां वाहन ज्यादा से ज्यादा सिर्फ 17 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ही दौड़ पाते हैं. जबकि दिल्ली में वाहनों की औसत गति 25 किलोमीटर प्रति घंटा है. Peak Hours में ये Speed और भी कम हो जाती है.
भारत के शहरों में गाड़ियों की Speed साइकिल की औसत गति से थोड़ी ही ज्यादा है. एक साइकिल को औसतन 15 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलाया जा सकता है. ऐसे में जब लोगों को सड़कों पर ज्यादा समय बिताना पड़ता है और ट्रैफिक जाम से जूझना पड़ता है तो उनका गुस्सा काफी बढ़ जाता है.
इस गुस्से की एक और बड़ी वजह है कि हमारे देश में आर्थिक तरक्की इतनी तेजी से हुई है कि आज भारत में लगभग सभी बड़े शहरों में लोगों के पास गाड़ियां और दोपहिया वाहन हैं. इसे आप दिल्ली के एक उदाहरण से समझ सकते हैं, जहां एक हजार लोगों पर वाहनों की संख्या 643 है. यानी दिल्ली में हर एक किलोमीटर सड़क पर 369 वाहनों का बोझ है. जिन्हें अगर एक साथ खड़ा कर दिया जाए तो इनमें से करीब 100 वाहनों के लिए जगह ही नहीं बचेगी.
मुश्किल ये है कि वाहनों की संख्या तो तेजी से बढ़ रही हैं लेकिन सड़कें उस हिसाब से नहीं बनी हैं. इसी वजह से लोगों का गुस्सा बढ़ता है और ये गुस्सा अब खतरनाक हो चुका है.
सड़कों पर चलने वाले ज्यादातर लोग काफी नाराज भी रहते हैं. अक्सर आपने सड़कों पर होने वाले झगड़ों के दौरान लोगों को ये कहते हुए सुना होगा कि क्या वो आज सुबह किसी से लड़कर निकले हैं. असल में हमारे देश में हर व्यक्ति कुंठित है और कुंठित इसलिए है क्योंकि उसके पास नौकरी नहीं है, रहने के लिए जगह नहीं है और महत्वाकांक्षाएं ज्यादा है, जो पूरी नहीं हो पा रही हैं.
तो इस वजह से लोगों में एक नाराजगी रहती है. जब वो ये देखते हैं कि स्थितियां प्रतिकूल हैं और सबकुछ वैसा हो रहा है जैसे उन्होंने नहीं सोचा था तो ऐसी मनोस्थिति में लोग नाराज रहने लगते हैं और ये नाराजगी सड़कों पर निकलने वाले लोगों पर भारी पड़ती है.
और एक अहम बात ये भी है कि हमारे देश में अक्सर लोग जल्दबाजी में रहते हैं और इस दौरान वो नियम-कानून का पालन भी नहीं करते. भारत में बहुत से लोगों में आज कानून का डर नहीं है और इन लोगों को लगता है कि अगर वो नियम तोड़ते भी हैं तो उन्हें कुछ नहीं होगा.
इसे आप दिल्ली की इस घटना से भी समझ सकते हैं. जिसमें हत्या करने वाले लड़के की उम्र 17 साल है यानी वो नाबालिग है. वो इस दौरान शराब के नशे में था और उसने Helmet भी नहीं पहना हुआ था. यानी भारत में एक नाबालिग लड़का गाड़ी चला सकता है लेकिन उसे रोकने वाला कोई नहीं है.
किसी का भी लाइसेंस बन सकता है. उसे भी कोई रोकने वाला नहीं है. नाबालिग लड़का शराब भी पी सकता है, उसे भी कोई रोकने वाला नहीं है. ऐसे में आज अगर नाबालिग बच्चे शराब पी सकते है तो समझ लीजिए आम लोगों को सड़कों पर उनकी किस्मत के भरोसे छोड़ दिया गया है.
लोगों के गुस्से की वजह वायु और ध्वनि प्रदूषण भी है. स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट (State of Global Air Report) के मुताबिक, केवल 2017 में भारत में 12 लाख लोग प्रदूषण की वजह से मारे गए थे. भारत में आज पैदा होने वाले किसी भी बच्चे की औसत उम्र प्रदूषण की वजह से करीब ढाई साल कम हो जाती है.
प्रदूषण से कैंसर, फेफड़ों और दिल की बीमारियां होने का डर बढ़ जाता है. ऐसे में आप खुद सोचिए जब लोग 24 घंटे प्रदूषण में रहेंगे तो उनकी मनोस्थिति कैसी रहेगी. वो बेवजह गुस्सा करेंगे और ये गुस्सा फिर इस तरह की घटनाओं की वजह बनेगा.
करोड़ लोगों को किसी न किसी मानसिक समस्या की वजह से तत्काल इलाज की जरूरत है. लेकिन एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 10 जरूरतमंद लोगों में से सिर्फ एक व्यक्ति को ही इलाज मिल पाता है.
यानी बाकी लोग किसी ना किसी मानसिक बीमारी या डिप्रेशन से जूझते रहते हैं. फिर धीरे-धीरे उनका स्वभाव पूरी तरह बदल जाता है. क्रोध प्रेम की जगह ले लेता है. नाराजगी करुणा की जगह ले लेती है और जल्दबाजी Positive विचारों पर हावी हो जाती है. अब आप खुद तय करिए कि जिस देश में करोड़ों लोग डिप्रेशन के शिकार हों उस देश में मामूली विवाद पर हत्याएं नहीं होंगी तो फिर क्या होगा?
भारत महात्मा बुद्ध का देश है, भारत महात्मा गांधी का देश है और भारत अहिंसा के सिद्धांतों पर चलने वाला का देश है. हमारे संस्कारों में हमें शिष्टाचार सिखाया जाता है. आदर और सत्कार सिखाया जाता है. लेकिन इस सबके बावजूद अगर ऐसे देश में हिंसा हो रही है तो ये चिंता का एक बड़ा विषय है.
इस गुस्से को आप दिल्ली की एक और घटना से समझ सकते हैं. जहां 42 साल एक व्यक्ति ने अपनी मां की थप्पड़ मार कर जान ले ली. सोचिए लोगों का गुस्सा कितना खतरनाक हो चुका है. पुलिस का कहना है कि रणबीर सिंह नाम के शख्स का गाड़ी की Parking को लेकर अपने किराएदार के साथ झगड़ा हो गया था और इस झगड़े के दौरान जब उसकी मां ने उसे समझाने की कोशिश की और दोनों के बीच बहस हुई तो उसने अपनी मां को एक थप्पड़ मार दिया और बूढ़ी मां की वहीं मौत हो गई. इस मामले में पुलिस ने अब उसे गिरफ्तार कर लिया है.
जब हड्डी टूट जाती है तो आप डॉक्टर के पास चले जाते हैं लेकिन जब मन टूट जाता है तब आप किसके पास जाते हैं. हड्डी टूटने पर तो Plaster लगा लेते हैं, परहेज करते हैं और आराम भी कर लेते हैं लेकिन मन टूटने के बाद Plaster कहां लगता है, परहेज कहां करते हैं. आराम कैसे करते हैं और मरहम पट्टी कहां करवाते हैं.
जैसे टूटी हुई हड्डी को इलाज की जरूरत होती है ठीक उसी तरह टूट हुए मन को भी इलाज की जरूरत होती है. इसलिए मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज ना करें क्योंकि मनोस्थिति ही वो अकेली शक्ति है. जो आपकी पारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति को ऊर्जा देती हैं और आपके मन को स्वस्थ रखती है.