DNA Analysis: क्या श्रीलंका की तरह हो सकता है भारत का हाल? देश की आर्थिक ताकत जानकर गर्व कर उठेंगे आप, अमेरिका भी भरता है पानी
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DNA Analysis: क्या श्रीलंका की तरह हो सकता है भारत का हाल? देश की आर्थिक ताकत जानकर गर्व कर उठेंगे आप, अमेरिका भी भरता है पानी

Impact of Sri Lanka's economic crisis on India: कई लोग श्रीलंका का हाल देखकर भारत सरकार को भी नसीहत दे रहे हैैं कि अपनी आर्थिक नीतियां सुधार लें वर्ना उसका हाल भी पड़ोसी देश जैसा हो सकता है. क्या यह बात वाकई सच है? आज आपको इसके बारे में जरूर जानना चाहिए.

DNA Analysis: क्या श्रीलंका की तरह हो सकता है भारत का हाल? देश की आर्थिक ताकत जानकर गर्व कर उठेंगे आप, अमेरिका भी भरता है पानी

Impact of Sri Lanka's economic crisis on India: श्रीलंका का हालत देखकर कई लोग कह रहे हैं कि अगर भारत ने अपनी आर्थिक नीतियों में बड़े बदलाव नहीं किए तो उसका हाल भी एक दिन श्रीलंका जैसा हो सकता है. लेकिन क्या आपको पता है कि आज श्रीलंका जिस स्थिति में है, एक ज़माने में भारत ने ऐसे ही आर्थिक संकट का सामना किया था. ये बात वर्ष 1991 की है. उस समय भारत के Foreign Reserves में एक Billion Dollar की विदेशी मुद्रा ही बची थी. यानी उस समय भारत की आर्थित स्थिति श्रीलंका से भी ज्यादा कमज़ोर थी. श्रीलंका के Foreign Reserves में अभी दो Billion Dollar की विदेश मुद्रा बची है. जबकि उस समय भारत का Foreign Reserve एक बिलियन डॉलर हो गया था. 

भारत में 1991 में आया था आर्थिक संकट

इतनी कम विदेशी मुद्रा में भारत 15 दिन का ही आयात कर सकता था. इसके बावजूद तब हमारे देश के लोगों ने श्रीलंका के आम लोगों की तरह राष्ट्रपति भवन पर कब्जा नहीं किया. सड़कों पर दंगे नहीं हुए और ना ही प्रधानमंत्री कार्यालय को श्रीलंका के आम लोगों की तरह तहस नहस किया. ये भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि हमारे देश के लोगों ने संकट की स्थिति में भी देश का और अपनी सरकारों का पूरा साथ दिया है और अपना विश्वास टूटने नहीं दिया है. इसी विश्वास का नतीजा है कि आज भारत श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों से कहीं ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं. आप ये भी कह सकते हैं कि भारत में वो कभी हो ही नहीं सकता, जो आज श्रीलंका में हो रहा है. 

इस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 46 लाख 50 हज़ार करोड़ रुपये का है. जबकि श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ़ साढ़े 15 हज़ार करोड़ रुपये का है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 77 हजार 420 करोड़ रुपये का है. विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में चीन, जापान और Switzerland के बाद भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है.

अब आर्थिक रूप से मजबूत हुआ देश

आज अगर किसी वजह से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अस्थिर हो जाता है तो भी भारत  इतने Foreign Reserves से अगले 10 महीने तक दूसरे देशों से आयात को जारी रख सकता है. जबकि श्रीलंका के पास सिर्फ इतना विदेशी मुद्रा भंडार है कि वो कुछ ही हफ्तों का आयात कर सकता है और पाकिस्तान सिर्फ दो महीने का आयात ही कर सकता है.

डॉलर के मुकाबले भारत का रुपया कमज़ोर ज़रूर हुआ है. लेकिन दूसरे देशों की तुलना में हमारी Currency अब भी काफ़ी मजबूत है. आज एक डॉलर भारत के 79 रुपये 60 पैसे के बराबर है. वहीं एक डॉलर श्रीलंका के 357 रुपये 55 पैसे और पाकिस्तान के 210 रुपये 87 पैसे के बराबर है. 

देश के पास 760 टन गोल्ड रिजर्व

इसके अलावा Gold Reserve के मामले में भी भारत की स्थिति बहुत मजबूत है. भारत के पास 760 टन Gold Reserve है. जबकि श्रीलंका के पास सिर्फ डेढ़ टन Gold Reserve ही बचा है. 2018 में श्रीलंका के पास 20 टन Gold Reserve था. लेकिन 2021 में श्रीलंका की राजपक्षे सरकार ने इसे बेचकर लोन लिया. जिससे श्रीलंका के Gold Reserve में ये ऐतिहासिक गिरावट आई. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि भारत के लिए कोई चुनौती नहीं है. भारत में बढ़ती महंगाई, डॉलर की तुलना में रुपये का कमज़ोर होना और आर्थिक क्षेत्र में सुस्ती.. ये वो मुद्दे हैं, जो भारत की मुश्किल बढ़ा रहे हैं. अच्छी बात ये है कि सरकार और RBI इस पर पहले से अलर्ट हैं.

जैसे.. RBI ने International Trade Settlement के लिए भारतीय रुपये के इस्तेमाल को इजाजत दे दी है. सरल शब्दों में कहें तो भारत को अब उन देशों या कंपनियों से व्यापार करने में आसानी होगी, जो डॉलर में व्यापार करने के लिए इच्छुक नहीं थी. जैसे रशिया और यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका ने पूर्व के कई देशों पर डॉलर में रशिया के साथ व्यापार करने पर रोक लगा दी थी, ऐसे में रुपये में व्यापार करने का विकल्प आने से ऐसे देशों से व्यापार करना और आसान होगा. यानी ग्लोबल ट्रेडिंग में रुपये को बढ़ावा मिलने से रुपये की स्थिति और मजबूत हो जाएगी.

श्रीलंका में अशांति से भारत में चिंता

कहते हैं कि अगर पड़ोस में सब ठीक चल रहा हो तो अपने घर में भी शांति बनी रहती है और अगर पड़ोस में अशांति और अनिश्चितता का माहौल हो तो घर में भी चिंताएं बढ़ जाती हैं. इसलिए श्रीलंका के इस संकट में भारत के लिए चिंताएं भी छिपी हैं. श्रीलंका में अनिश्चितता का माहौल ज्यादा दिन रहता है तो वहां से लोगों का पलायन भी शुरू हो जाएगा. ये लोग शरण के लिए भारत आ सकते हैं. वर्ष 1983 से 2009 के बीच जब श्रीलंका में गृह युद्ध की स्थितियां थी, तब भी श्रीलंका के लाखों नागरिक भारत में शरणार्थी बनकर आए थे.

इसके अलावा भारत ने इस गृह युद्ध में अपने एक पूर्व प्रधानमंत्री को भी खो दिया था. वर्ष 1991 में LTTE के आतंकवादियों ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी थी. तब भारत ने श्रीलंका में अपनी Peace-keeping Force यानी शांति सेना भी भेजी थी. इसलिए श्रीलंका के हालात भारत के लिए मायने रखते हैं. दूसरा, श्रीलंका सरकार पर चीन का दबाव भी बढ़ रहा है. क्योंकि श्रीलंका ने सबसे ज्यादा 10 प्रतिशत कर्ज अकेले चीन से ही लिया हुआ है. इसलिए हो सकता है कि श्रीलंका को चीन पर और ज्यादा निर्भर होना पड़े. ये भारत के लिए अच्छी स्थिति नहीं होगी.

कहीं गृह युद्ध के न बन जाएं हालात

श्रीलंका की सरकार के खिलाफ वहां के नागरिकों में भी काफी असंतोष है, जिससे वहां हिंसक प्रदर्शन बढ़ रहे हैं. अगर श्रीलंका में फिर से गृह युद्ध जैसी स्थितियां बनती हैं तो इसका असर भारत पर भी पड़ेगा. श्रीलंका के अलग अलग क्षेत्रों में भारत ने भारी निवेश किया है और इस निवेश को लेकर भी भारत की चिंताएं हैं. इसके अलावा श्रीलंका में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ने से भारत पर भी दबाव बढ़ेगा. अकेले इस साल में भारत श्रीलंका को 24 हज़ार करोड़ रुपये दे चुका है और  श्रीलंका चाहता है कि भारत उसकी और आर्थिक मदद करे.

इस पूरे संकट में भारत के लिए एक और चिंता है. दरअसल, इस समय भारत के सभी पड़ोसी देशों में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता है. श्रीलंका में सरकार के ख़िलाफ़ हिंसक माहौल है और आर्थिक अनिश्चितता भी वहां काफ़ी बढ़ गई है. पाकिस्तान में भी आर्थिक अस्थिरता का माहौल है. और हाल ही में वहां शहबाज़ शरीफ की नई सरकार का गठन हुआ है. नेपाल का भी विदेशी मुद्रा भंडार पहले की तुलना में काफी कम हुआ है. जिससे नेपाल ने कई ज़रूरी चीज़ों के आयात पर रोक लगा दी है. अफगानिस्तान में भी तालिबान की सरकार आने के बाद से भूखमरी और गरीबी ऐतिहासिक रूप से बढ़ी है. 

चीन उठा रहा मौके का फायदा

चीन भारत के इन तमाम पड़ोसी देशों का फायदा उठाना चाहता है और उन्हें एक छोटी मछली की तरह कर्ज के जाल में फंसा कर निगल जाना चाहता है. आपके पड़ोस में जब कोई तनाव होता है तो उसका सीधा असर आप पर भी पड़ता है. और यही बात सभी देशों पर भी लागू होती है. भारत के पड़ोसी देशों में अगर राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ती है तो ये मुमकिन है कि इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा.

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