DNA Analysis: इल्तुतमिश ने शिव मंदिरों को तोड़कर दिल्ली में बनवाया था भारत का पहला मकबरा, दबी हैं दमन की कई अनसुनी कहानियां
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DNA Analysis: इल्तुतमिश ने शिव मंदिरों को तोड़कर दिल्ली में बनवाया था भारत का पहला मकबरा, दबी हैं दमन की कई अनसुनी कहानियां

DNA on History of India and Delhi Sultanate: क्या आपने कभी दिल्ली के सुल्तान गढ़ी में बना इल्तुतमिश का मकबरा देखा है. यह मकबरा भी हिंदू मंदिरों का ध्वंस करके उसके अवशेषों से बनाया गया था. 

DNA Analysis: इल्तुतमिश ने शिव मंदिरों को तोड़कर दिल्ली में बनवाया था भारत का पहला मकबरा, दबी हैं दमन की कई अनसुनी कहानियां

DNA on History of India and Delhi Sultanate: DNA में हम आपको इतिहास से जुड़े ऐसे तथ्यों के बारे में बताते रहते हैं, जिन्हें हमेशा से छिपाने की कोशिश की गई. आज भी हम इतिहास से जुड़ा एक और अनसुना सच आपको बताएंगे. आपको याद होगा पिछले दिनों हमने दिल्ली के कुतुब मीनार का सच आपको बताया था. आपको ये जानकारी दी थी कि कुतुब परिसर में मस्जिद और मकबरों का निर्माण 27 हिन्दू और जैन मन्दिरों को तोड़ कर किया गया था. आज DNA में हम आपको देश के पहले मकबरे की कहानी बताएंगे, जिसके नीचे ध्वस्त किए गए मन्दिरों के दमन की कहानियां दबी हैं. ये मकबरा सुल्तान गढ़ी के नाम से मशहूर है और कुतुब मीनार से इसकी दूरी मात्र 6.4 किलोमीटर है. यानी ये कुतुब परिसर से कुछ ही दूरी पर स्थित है. 

इल्तुत-मिश ने करवाया था मकबरे का निर्माण

इस मकबरे का निर्माण वर्ष 1231 में दिल्ली सल्तनत के तीसरे शासक इल्तुत-मिश ने करवाया था. वर्ष 1192 में जब तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया, उसके बाद दिल्ली में इस्लामिक ढांचों, मस्जिदों और मकबरों का निर्माण शुरू हुआ. इल्तुत-मिश के शासन काल में कुतुब मीनार का भी विस्तार हुआ और फिर वर्ष 1231 में इल्तुत-मिश ने अपने बड़े बेटे नसीरुद्दीन महमूद की याद में इस मकबरे का निर्माण कराया. इसके बाद इल्तुत-मिश के दो और बेटों को इस मकबरे में दफनाया गया.

आज यहां इल्तुत-मिश के तीनों बेटों की कब्र मौजूद है. ये वो तमाम बातें हैं, जो इतिहास में बताई जाती हैं. लेकिन इस सच को हमारे देश के इतिहास में उतनी प्रमुखता से पेश नहीं किया गया कि भारत का पहला मकबरा भी मन्दिर तोड़कर बनाया गया था. ये बात हम नहीं कह रहे बल्कि Archaeological Survey of India की आजादी से पहले की सर्वे रिपोर्ट में इसका जिक्र किया गया है. ये रिपोर्ट Ancient India के नाम से वर्ष 1947 में प्रकाशित हुई थी और इसमें तीन बड़ी बातें लिखी हैं.

हिंदू मंदिरों के ध्वस्त अवशेषों पर बनाया मकबरा

पहली बात, इसमें ये लिखी है कि इस मकबरे का निर्माण ध्वस्त किए गए हिन्दू मन्दिरों के अवशेषों से किया गया था. दूसरी बात, इस मकबरे के निर्माण के समय हिन्दू कलाकृतियों को इस्लामिक रंग रूप दिया गया. तीसरी बात इस मकबरे के अन्दर का जो ढांचा है और जो गुम्बद और स्तम्भ हैं, उन पर भी हिन्दू कलाकृतियों के सबूत मिल जाते हैं. सबसे बड़ी बात, इस मकबरे के परिसर में गौरी पट्टा भी मौजूद है, जिस पर शिवलिंग को स्थापित किया जाता है. ये सबसे बड़ा सबूत है जो ये बताता है कि जिस जगह ये मकबरा है, वहां पहले मन्दिर हुआ करता था. 

ऐसा माना जाता है कि 7वीं से 11वीं शताब्दी तक जब उत्तर पश्चिम भारत में गुर्जर-प्रतिहार राजवंश का शासन था, उस समय सुल्तान गढ़ी स्थित जगह पर हिन्दू मन्दिरों का निर्माण हुआ था. लेकिन दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद इन मन्दिरों को नुकसान पहुंचाया गया. भारत के पहले मकबरे की नींव भी हिन्दू मन्दिरों को ध्वस्त करके रखी गई. लेकिन ये तथ्य एक बेईमानी के तहत इतिहास से हमेशा दूर रखे गए. हमारी टीम ने सुल्तान गढ़ी में जाकर इस विषय पर काफी अध्ययन किया और इस दौरान हमें कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं. 

कुतुब मीनार बनाने के लिए तोड़े गए 27 मंदिर

हमें रिपोर्टिंग के दौरान वो गौरी पट्टा भी दिखा, जिस पर कभी शिवलिंग स्थापित रहा होगा. ये रिपोर्ट आपको ये बताती है कि कैसे भारत का मध्य कालीन इतिहास मुस्लिम शासकों के नजरिए से पेश किया गया और अब तक आप इस पर विश्वास करते रहे. लेकिन आज सच देखने का और सही इतिहास को जानने का दिन है. हमारे इतिहास की किताबों में मुस्लिम शासकों द्वारा बनाए गए महलों, किलों, मकबरों और यहां तक की बगीचों की भी तारीफ में की गई, लेकिन किसी ने आपको ये नहीं बताया कि इन्होंने कितने हिंदू मंदिरों को तोड़ दिया था.

हमें ये तो बताया जाता है कि देश की राजधानी दिल्ली में मौजूद कुतुब मीनार कितनी शानदार कलाकृति है और कैसे इसका निर्माण..बाहर से आए आक्रमणकारियों की दूरदर्शी सोच का नतीजा था. लेकिन ये नहीं बताया जाता कि जिस जगह पर कुतुब मीनार है. वहां कभी 27 हिंदू और जैन मंदिर हुआ करते थे. फिर मंदिरों की इस जमीन पर कुतुब मीनार खड़ी कर दी गई.

वामपंथी और अंग्रेज इतिहासकारों ने पढ़ाया झूठ

अंग्रेज और वामपंथी इतिहासकार ने तो ये भी साबित करने की कोशिश की कि संस्कृत भाषा और वैदिक संस्कृति को विदेशी भारत में लेकर आए थे, जिन्हें आर्यन कहा जाता है. हालांकि कई Studies में ये साबित हो चुका है कि भारत में आर्यों के आने की कहानी मनगढ़ंत है और इसके कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं.  

वामपंथी इतिहासकारों ने बताया कि सरस्वती नदी सिर्फ पौराणिक कल्पना है और इसका असल में कोई अस्तित्व नहीं है. जबकि इसका जिक्र ऋगवेद में कई जगह आता है और हाल ही में हुई कई Studies भी ये दावा करती है कि हिमालय से निकलकर सरस्वती नदी अरब सागर तक बहती थी. दरबारी इतिहासकारों ने तो अयोध्या में राम मंदिर के इतिहास को भी नकार दिया था.

सबसे बड़ा झूठ तो ये बोला गया कि भारत को एक करने वाले मुगल थे. जबकि सच ये है कि गुप्त, मौर्य, और मराठा राजाओं का साम्राज्य भारत के बाहर तक भी फैला हुआ था. इन राजाओं ने सही मायनों में भारत को उसकी संस्कृति के दम पर एक किया था.

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