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नई दिल्ली: त्रेतायुग में श्रीराम ने दुराचारी रावण के खिलाफ युद्ध लड़ा था और इसमें वो विजयी हुए. इसी तरह कलियुग में भी श्रीराम को एक युद्ध लड़ना पड़ा था. ये युद्ध था उनके अपने अस्तित्व का, ये युद्ध था जन्मभूमि (Janmabhoomi) के अधिकार का और श्रीराम इस युद्ध में भी विजयी हुए. लेकिन इस विजय के लिए उन्हें 500 वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा.
500 वर्ष पहले बाबर (Babur) ने अयोध्या (Ayodhya) में राम जन्मभूमि (Ram Janmabhoomi) पर बने रामलला के मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना दी थी. जब श्रीराम के भक्तों ने उनके न्याय की लड़ाई लड़ी तो मामला न्यायालय में पहुंचा. रामलला को तारीख पर तारीख मिलते 134 वर्ष बीत गए. इस बीच ऐसा भी समय आया जब श्रीराम के अस्तित्व को मिटाने की कोशिश की गई. लेकिन 9 नवंबर 2019 को देश की सबसे बड़ी अदा लत ने रामलला के पक्ष में फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है और हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है.
ये फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के शासनकाल के दौरान ही आया. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद तय समय में प्रधानमंत्री मोदी ने राम मंदिर निर्माण के लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया और फैसले के बाद एक साल से भी कम समय में उन्होंने खुद अयोध्या में रामलला के भव्य मंदिर का शिलान्यास किया. और अब राम मंदिर की नींव भी तैयार हो चुकी है.
रामलला के भव्य मंदिर निर्माण का भूमि पूजन ये वो क्षण था जिसकी प्रतीक्षा करोड़ों रामभक्त 500 वर्षों से कर रहे थे. वर्ष 1528 में जिस जगह पर मंदिर गिराकर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी. 500 वर्ष बाद वहां फिर से भव्य राम मंदिर की नींव रख दी गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में सदी के सबसे शुभ कार्य के आरंभ के साथ सदियों का इंतजार भी खत्म हुआ और 25 पीढ़ियों की प्रतीक्षा भी खत्म हुई.
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वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी जब पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने तो संत समाज और राम भक्तों की उम्मीदें बढ़ गईं. केंद्र में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार थी और पार्टी के संकल्प पत्र में भी राम मंदिर निर्माण का संकल्प था. देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अपने शासनकाल के दौरान श्रीराम के अस्तित्व को ही खारिज कर चुकी थी. इसलिए नई सरकार खासकर राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संत समाज को विशेष अपेक्षा थी और जब 2019 में नरेंद्र मोदी जब दोबारा प्रधानमंत्री बने तब मंदिर निर्माण के लिए उनपर दबाव बढ़ने लगा.
लेकिन उन्होंने शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया. बल्कि मंदिर निर्माण के लिए भारत के संविधान पर उनकी आस्था बनी रही और संत समाज को भी वो कहते रहे श्रीराम की तरह भारत के संविधान पर भरोसा रखिए.
वो बराबर कहते थे कि जो होगा वो कोर्ट से होगा. कोर्ट से हो गया. राम मंदिर की समस्या बहुत जटिल थी. कितने लोग आए चले गए. बहुत सारे कारसेवकों को गोलियों से मार दिया गया. जब 9 नवंबर को कोर्ट ने रामलला के पक्ष में आदेश दे दिया तब लगा कि हमारे प्रधानमंत्री जो कह रहे थे कि कोर्ट से होगा कि इसमें कोई चिंता ना करें, राम मंदिर के पक्ष में आदेश होगा. भगवान राम जो वर्षों से त्रिपाल में पड़े थे अब वो समय आ गया कि मंदिर में वो विराजमान होंगे.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ठीक पहले देश में डर का माहौल बनाया जा रहा था. अल्पसंख्यकों को उकसाने की कोशिश हो रही थी. कुछ पार्टियां चाहती थीं कि देश में दंगे भड़कें और मंदिर निर्माण को फिर से लटकाने-भटकाने का खेल शुरू हो जाए. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सूझ-बूझ से ऐसी हर कोशिश नाकाम हो गई. मंदिर निर्माण के फैसले से लेकर मंदिर निर्माण की नींव तैयार होने तक ना तो एक गोली चली ना देश में दंगे हुए.
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नरेंद्र मोदी का राम मंदिर आंदोलन से जुड़ाव प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनने से पहले से रहा है. 1990 में जब लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकली थी तो उस रथ के सारथी नरेंद्र मोदी ही थे. वर्ष 1991 में नरेंद्र मोदी ने अंतिम बार रामलला के दर्शन किए थे और तब उन्होंने प्रण लिया था कि जब तक राम मंदिर नहीं बन जाता तब तक वो रामलला के दर्शन नहीं करेंगे.
अयोध्या के मुस्लिम कारसेवक बबलू खान अपने बचपन के उस दिन को याद करते हैं जब सरयू किनारे कारसेवकों का खून बह रहा था. उन्होंने कहा कि जब से मंदिर निर्माण का काम शुरू हुआ है, देश के लोगों को भी अहसास हो गया है कि वास्तव में देश तरक्की के पथ पर आगे बढ़ रहा है. मैं जब बचपन में बहुत छोटा था तब समाजवादी शासन में हजारों कारसेवकों पर गोली चलाई गई थी तो मैं भी यहां टहलने आया था. तो मैंने देखा कि यहां खून की नदियां बह रही थीं. लेकिन अब श्रीरामजन्मभूमि की तस्वीर बदल रही है और श्रीराम की सरयू बदल चुकी है.
सरयू आरती के आयोजनकर्ता महेंद्र शशिकांत दास ने कहा कि निश्चित रूप से अयोध्या का जो दृश्य दिख रहा है वो पहले से ज्यादा बदला हुआ है. राम मंदिर के फैसले के बाद तो क्रांति आ गई है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के सिर्फ 3 महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया और अपने सबसे करीबी अधिकारी नृपेन्द्र मिश्र को भवन निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाया. मंदिर निर्माण कार्य की गति इतनी तेज है कि कोरोना महामारी के बावजूद भूमि पूजन से अब तक 14 महीने में श्रीराम मंदिर की नींव बनकर तैयार हो चुकी है.
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय का दावा है कि ऐसा भव्य मंदिर बन रहा है जिसका भूकंप या सूनामी भी बाल बांका नहीं कर सकती. रामजन्मभूमि की नींव का पहला चरण पूरा हुआ है. जमीन के अंदर 11,000 घन मीटर की कृत्रिम चट्टान डाली गई है. गर्भगृह पर चट्टान की मोटाई 14 मीटर है. इसके अलावा अन्य स्थानों पर इसकी मोटाई 12 मीटर है. इसके अंदर 6-6 मीटर तक बालू भरी जा रही है. भूकंप में किसी भी प्रकार की नदी के आक्रमण में ये चट्टान अटल रहेगी. इसे पूरा करने में 6 महीने लगे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मंदिर निर्माण कार्यों का अपडेट लेते रहते हैं. उम्मीद है कि दिसंबर 2023 से श्रीराम भक्त गर्भगृह में जाकर रामलला के दर्शन कर सकेंगे.
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