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नई दिल्ली: आपने रविवार को भारत-पाकिस्तान का मैच तो देखा ही होगा और अब तक क्रिकेट की भाषा में उसके कई विश्लेषण भी सुन लिए होंगे, टीम सिलेक्शन से लेकर, पिच की कंडीशन, दुबई का मौसम और खिलाड़ियों के प्रदर्शन तक. सबका विश्लेषण आप देख चुके होंगे लेकिन इस मैच का सामाजिक विश्लेषण जानना भी जरूरी है. सच ये है कि ये दो टीमों के बीच खेला गया एक ऐसा मैच था, जिसमें पाकिस्तान की टीम जीत गई और भारत की टीम हार गई.
भारत के लोगों को जो बात ज्यादा बुरी लगी वो ये कि टीम बिना लड़े ही बुरी तरह से हारी, यानी 10 विकेट से हार. ये मैच तो 40 ओवर्स के बाद समाप्त हो गया लेकिन उसके बाद से अब भारत और पाकिस्तान के बीच एक नया मैच खेला जा रहा है. ये मैच है दोनों देशों के समाज के बीच, ये मैच है दो धर्मों के बीच, ये मैच है दोनों देशों के नेताओं के बीच. इस बीच सवाल ये भी है कि अपने देश की टीम की हार पर खुश होने वाले कौन लोग हैं?
रविवार के मैच में पाकिस्तान की जीत के बाद हमारे ही देश के कुछ लोगों ने पटाखे फोड़ कर जश्न मनाया और पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे भी लगाए. श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के गर्ल्स होस्टल में पाकिस्तान की जीत पर 100 से ज्यादा लड़कियों ने देश विरोधी नारे लगाए और एक दूसरे का मुंह मीठा भी कराया. जम्मू कश्मीर पुलिस अब इस वीडियो की जांच कर सकती है. श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस का भी एक वीडियो सामने आया, जिसमें 50 से ज्यादा लड़के पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाते हुए दिख रहे हैं. जम्मू कश्मीर के सांबा सेक्टर में भी पाकिस्तान की जीत पर पटाखे फोड़ गए, जिसके बाद पुलिस ने वहां 6 लोगों को हिरासत में ले लिया.
इसके अलावा पंजाब के संगरुर में स्थित एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में भी कश्मीरी छात्रों के एक गुट ने पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाया. जिसके बाद दूसरे गुट के छात्रों से उनकी झड़प हो गई. कॉलेज की डायरेक्टर ने खुद इस घटना की पुष्टि की है. इन तस्वीरों के जरिए 135 करोड़ के भारत में उन मुट्ठीभर लोगों की पहचान हो गई जो रहते तो इसी देश में हैं और खाते भी इसी देश का हैं लेकिन जश्न मनाते हैं पाकिस्तान की जीत का. अगर ये लोग भारत में इतने ही दुखी हैं तो फिर ये पाकिस्तान क्यों नहीं चले जाते? इन्हें हमारा ये सुझाव बुरा लगेगा और फिर इनके पक्ष में कुछ लोग हमारी आलोचना भी करेंगे लेकिन ये लोग पाकिस्तान की जीत में खुशियां नहीं मना रहे, अगर ये लोग सिर्फ पाकिस्तान की जीत पर खुश होते तो भी ठीक था लेकिन ये भारत का विरोध कर रहे हैं.
वैसे तो एक देश के तौर पर हमें इस तरह की घटनाओं का मिलकर विरोध करना चाहिए था लेकिन हमारे देश में ठीक इसके विपरीत हो रहा है और विपक्षी नेताओं के बीच पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाने वाले इन लोगों को समर्थन देने की होड़ लगी हुई है. इनमें सबसे पहला नाम जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का है, जिन्होंने आज ऐसे सभी लोगों का समर्थन किया, जिन्होंने पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाया. उन्होंने लिखा कि 'पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाने वाले कश्मीरियों के खिलाफ इतना गुस्सा क्यों? कोई ये नहीं भूल सकता कि जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छिनने के बाद मिठाइयां बांटकर कितने लोगों ने जश्न मनाया था. उन्होंने कहा कि विराट कोहली की तरह इसे सही भावना से लें, जिन्होंने सबसे पहले पाकिस्तानी टीम को बधाई दी.'
महबूबा मुफ्ती को ये याद रखना चाहिए कि बधाई देने और पाकिस्तान की जीत पर पटाखे फोड़ने में बहुत बड़ा अंतर है और ये अंतर ही स्पष्ट करता है कि कौन भारत की टीम में है और कौन भारत विरोधी टीम में है. आप इस बात को पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख रशीद की बातों से भी समझ सकते हैं, जिसमें उन्होंने कहा कि भारत के मुसलमान भी यही चाहते थे कि जीत पाकिस्तान की टीम की हो. उन्होंने इस जीत को इस्लाम की जीत भी बताया. यानी ये पूरा मैच हिन्दू Vs मुसलमान और ईद Vs दीवाली बन गया है.
पूर्व क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने भी सोमवार को ट्विटर पर एक ऐसा कड़वा सच लिख दिया, जो हमारे देश के टुकड़े टुकड़े गैंग को पसंद नहीं आया. उन्होंने लिखा कि 'दीपावली के दौरान पटाखों पर प्रतिबंध है लेकिन कल (रविवार) भारत के कुछ हिस्सों में पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाने के लिए पटाखे फोड़े गए. पाकिस्तान की जीत पर भारत में पटाखे फोड़ जा सकते हैं तो दीपावली पर पटाखे फोड़ने में क्या परेशानी है.' उन्होंने इसे पाखंड बताया और ये भी लिखा कि ये सारा ज्ञान दीपावली के समय ही याद आता है. भारत के जो खिलाड़ी देश के मुद्दे पर कभी खुलकर नहीं बोलते उन्हें सहवाग से सीखना चाहिए. हालांकि सहवाग ने भी ये बातें रिटायरमेंट के बाद कहीं हैं लेकिन कम से कम उन्होंने अपनी बात रखी तो सही लेकिन दुर्भाग्य ये है कि हमारे देश के ज्यादातर खिलाड़ी तो ऐसा कभी नहीं करते.
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ये भारत में ही हो सकता है, जहां विपक्षी नेता पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाने वाले लोगों का तो विरोध नहीं करते लेकिन अगर कुछ मुट्ठीभर लोग धर्म के आधार पर किसी खिलाड़ी की ट्रोलिंग करें तो वो इसे हाथों हाथ ले लेते हैं. भारतीय टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी के मामले में आज यही हुआ है. कल के मैच में हार के बाद सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने मोहम्मद शमी को उनके धर्म के लिए निशाना बनाया और उनके बारे में बुरा भला लिखना शुरू कर दिया. 135 करोड़ के भारत में मुश्किल से ऐसी 135 पोस्ट भी नहीं लिखी गई होंगी लेकिन मोहम्मद शमी की ट्रोलिंग एक बड़ा मुद्दा बन गई और हमारे देश के विपक्षी नेताओं ने इस पर अपनी राजनीति शुरू कर दी.
हम मानते हैं कि धर्म को खेल के बीच में नहीं लाना चाहिए. खराब प्रदर्शन के लिए किसी भी खिलाड़ी की आलोचना की जा सकती है. लेकिन इसके लिए उसके धर्म को आधार बनाना किसी भी रूप में सही नहीं हो सकता हालांकि यहां सवाल ये भी है कि रविवार की हार के बाद आलोचना तो भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली की भी हुई. पहली ही गेंद पर आउट होने वाले रोहित शर्मा की भी लोगों ने आलोचना की, उनके खिलाफ अपशब्द कहे. इन सभी खिलाड़ियों के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर भी कई तरह की बातें लिखी गईं. टीम के दूसरे खिलाड़ियों को भी ट्रोल किया गया. रविवार पूरी रात सोशल मीडिया पर रोहित शर्मा ट्रेंड कर रहा था लेकिन इन खिलाड़ियों की ट्रोलिंग में किसी को कोई दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि इसमें धर्म का कोई एंगल नहीं था.
मोहम्मद शमी के मामले ने हमारे देश के एक खास वर्ग को ऐसा मुद्दा जरूर दे दिया, जो उन्हें सूट करता हैं. राहुल गांधी ने Tweet करके लिखा कि 'हम सब उनके साथ हैं. ये लोग नफरत से भरे हुए हैं क्योंकि इन्हें कोई प्यार नहीं देता इसलिए इन्हें माफ कर दें.' उनके अलावा AIMIM पार्टी के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसे हिन्दू मुसलमान का एंगल दे दिया.