मिशन कश्‍मीर: PM मोदी, शाह, डोभाल के अलावा इन अधिकारियों की रही अहम भूमिका
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मिशन कश्‍मीर: PM मोदी, शाह, डोभाल के अलावा इन अधिकारियों की रही अहम भूमिका

सुब्रमण्यम ने पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) में संयुक्त सचिव के रूप में प्रधानमंत्री के साथ पहले भी काम किया था. वे मोदी के मिशन कश्मीर के मुख्य अधिकारियों में से एक थे. 

पीएम मोदी, अमित शाह और अजित डोभाल मिलकर मिशन कश्मीर की पूरी प्लानिंग की जिम्मेदारी  1987 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के एक आईएएएस अधिकारी को दी थी.

नई दिल्ली: जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य के टुकड़े करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के मिशन की शुरुआत दरअसल जून के तीसरे हफ्ते में ही हो गई थी, जब उन्होंने 1987 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएएस अधिकारी बीवीआर सुब्रमण्यम (BVR Subrahmanyam) को जम्मू एवं कश्मीर का नया मुख्य सचिव नियुक्त किया. सुब्रमण्यम ने पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) में संयुक्त सचिव के रूप में प्रधानमंत्री के साथ पहले भी काम किया था. वे मोदी के मिशन कश्मीर के मुख्य अधिकारियों में से एक थे. मिशन कश्मीर का समूचा काम केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) को दिया गया था, जो कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद के साथ मिलकर अपनी कोर टीम के साथ कानून निहितार्थ की समीक्षा कर रहे थे, जिसमें कानून और न्याय सचिव आलोक श्रीवास्तव, अतिरिक्त सचिव कानून (गृह मंत्रालय) आर. एस. वर्मा, अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल, केंद्रीय गृह सचिव राजीव गौबा और कश्मीर खंड की उनकी चुनी हुई टीम शामिल थी.

डोभाल और पीएम मोदी की कई दौर की बैठक हुई
शाह ने बजट सत्र की शुरुआत से पहले ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत और उनके सहयोगी (महासचिव) भैयाजी जोशी को अनुच्छेद 370 को हटाने और जम्मू और कश्मीर को दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के केंद्र सरकार के विचार से अवगत करा दिया था.

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कानूनी सलाह-मशविरे के बाद शाह का ध्यान अनुच्छेद 370 हटाने के बाद घाटी में कानून और व्यवस्था की स्थिति संभालने पर था. शाह से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि प्रधानमंत्री की सलाह पर शाह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए)  अजित डोभाल (Ajit Doval) के साथ कई दौर की बैठक की.

डोभाल ने खुद श्रीनगर जाकर संभाला मोर्चा
सूत्रों ने बताया कि शाह ने जब एक बार कश्मीर की स्थिति की खुद समीक्षा कर ली, उसके बाद डोभाल को सुरक्षा की दृष्टि से स्थिति की समीक्षा करने के लिए श्रीनगर भेजा गया.

एनएसए ने वहां तीन दिनों तक डेरा डाला. उसके बाद 26 जुलाई को अमरनाथ यात्रा रोकने का फैसला किया गया. उसके बाद घाटी से सभी पर्यटकों को निकालने की सलाह भी डोभाल ने ही दी थी. इसके बाद केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की 100 अतिरिक्त कंपनियों की तैनाती सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर की गई.

सुब्रमण्यम ने की पूरी प्लानिंग
जम्मू और कश्मीर के मुख्य सचिव सुब्रमण्यम जो प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्रालय के साथ संपर्क में थे, उन्होंने ग्राउंड जीरो पर कई सुरक्षा कदम उठाने का खाका तैयार किया, जिसमें पुलिस, अर्धसैनिक बलों और प्रशासन के प्रमुख अधिकारियों द्वारा सैटेलाइट फोन का प्रयोग करने, संवेदनशील शहरी और ग्रामीण इलाकों में क्यूआरटी (क्विक रेस्पांस टीम) की तैनाती करने, तथा सेना द्वारा नियंत्रण रेखा पर चौकसी बढ़ाने जैसे कदम शामिल थे.

सेना, सुरक्षा एजेंसियों और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के प्रमुख केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य के मुख्य सचिव के साथ चौबीसों घंटे संपर्क में थे.

पूरी प्लानिंग के तहत जम्मू कश्मीर में लागू की गई धारा 144
4 अगस्त की महत्वपूर्ण रात को मुख्य सचिव ने पुलिस महानिदेशक (जम्मू एवं कश्मीर) दिलबाग सिंह को कई निवारक कदम उठाने के निर्देश दिए, जिनमें प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी, मोबाइल और लैंडलाइन सेवाएं बंद करने, धारा 144 लागू करने तथा घाटी में कर्फ्यू के दौरान सुरक्षा बलों की गश्ती बढ़ाना शामिल है.

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'मिशन कश्मीर' के मास्टरमाइंड आईएएएस अधिकारी बीवीआर सुब्रमण्यम (BVR Subrahmanyam).

भूपेंद्र यादव और अनिल बलूनी ने भी निभाया अहम रोल
इससे पहले, दिल्ली में शाह ने अपने एक और प्रमुख टीम को काम पर लगाया, जिसमें राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी और भूपेंद्र यादव शामिल थे. इस दल को उच्च सदन के सदस्यों का समर्थन जुटाने का काम सौंपा गया, जहां बीजेपी को बहुमत नहीं है.

इस टीम ने टीडीपी के राज्यसभा सदस्यों को तोड़ा और समाजवादी पार्टी के सांसद नीरज शेखर, सुरेंद्र नागर, संजय सेठ और कांग्रेस सांसद सजय सिंह को राज्यसभा से इस्तीफा दिलवाने का प्रबंध किया. इसके बाद बीजेपी को उच्च सदन में काफी बल मिला. वहीं, 12वें घंटे में टीम बसपा (बहुजन समाज पार्टी) के नेता सतीश मिश्रा का समर्थन हासिल करने में कामयाबी हासिल की.

पत्रकारों को भी शाह ने की थी ताकीद
इस दौरान अमित शाह (Amit Shah) ने प्रमुख पत्रकारों (जिनकी गृह मंत्रालय तक पहुंच थी) के साथ भी बंद कमरों में बैठक की और इस उच्च संवेदनशील मुद्दों पर संतुलित रिपोर्टिग करने की ताकीद की. शाह का मुख्य जोर शीर्ष स्तर की गुप्तता बरकरार रखने पर था, जब तक कि वे इस विधेयक को राज्यसभा में 5 अगस्त को संसद के पटल पर पेश नहीं करते.

सूत्रों ने बताया कि 2 अगस्त को शाह को भरोसा था कि उनकी पार्टी को राज्यसभा में पर्याप्त समर्थन हासिल हो गया है और सोमवार को उच्च सदन में इस ऐतिहासिक विधेयक (जम्मू एवं कश्मीर के टुकड़े करने) को पेश किया गया. इस दौरान बीजेपी सांसदों को व्हिप जारी किया गया था कि वे संसद में उपस्थित रहें, जहां महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए जाने हैं.

राष्ट्रपति को भी भरोसे में लिया गया था
उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि आखिरकार सप्ताहांत में मोदी और शाह ने सोमवार को मंत्रिमंडल की बैठक बुलाने और मंत्रियों को मिशन कश्मीर की जानकारी देने का फैसला किया और सदन से पहले इस संबंध में प्रस्ताव पारित किया गया. इसी तरह, कानून और न्याय मंत्रालय को अनुच्छेद 370 निरस्त करने की अधिसूचना राष्ट्रपति से जल्द जारी करवाने का काम सौंपा गया.

राज्यसभा में शोर-शराबे के बीच सोमवार को अमित शाह (Amit Shah) ने जब विधेयक पेश किया, तो बीजेपी के एक सांसद ने प्रतिक्रिया दी, 'शाह का मिशन कभी नाकामयाब नहीं होता. वे नए सरदार (वल्लभ भाई पटेल) हैं.'

इनपुट: IANS

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