न्यायपालिका और सरकार के बीच तनाव, दोनों पक्षों ने लक्ष्मण रेखा लांघने के खिलाफ एक दूसरे को किया सचेत
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न्यायपालिका और सरकार के बीच तनाव, दोनों पक्षों ने लक्ष्मण रेखा लांघने के खिलाफ एक दूसरे को किया सचेत

न्यायपालिका और सरकार के बीच तनाव शनिवार को एक बार फिर से उभर कर सामने आया क्योंकि दोनों पक्षों ने लक्ष्मण रेखा लांघने के खिलाफ एक दूसरे को सचेत किया। कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने याद दिलाया कि आपातकाल के दौरान उच्चतम न्यायालय नाकाम रहा है जबकि उच्च न्यायालयों ने काफी साहस दिखाया था।

न्यायपालिका और सरकार के बीच तनाव, दोनों पक्षों ने लक्ष्मण रेखा लांघने के खिलाफ एक दूसरे को किया सचेत

नई दिल्ली : न्यायपालिका और सरकार के बीच तनाव शनिवार को एक बार फिर से उभर कर सामने आया क्योंकि दोनों पक्षों ने लक्ष्मण रेखा लांघने के खिलाफ एक दूसरे को सचेत किया। कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने याद दिलाया कि आपातकाल के दौरान उच्चतम न्यायालय नाकाम रहा है जबकि उच्च न्यायालयों ने काफी साहस दिखाया था। दोनों पक्षों के बीच मतभेद पहली बार तब दिखा जब प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) टीएस ठाकुर ने आज सुबह एक कार्यक्रम में कहा कि उच्च न्यायालयों और अधिकरणों में न्यायाधीशों की कमी है। इस विचार से प्रसाद ने सख्त असहमति जताई।

बाद में उच्चतम न्यायालय के लॉन में एक अन्य कार्यक्रम में सीजेआई ने सचेत किया कि सरकार के किसी भी अंग को लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि न्यायपालिका को यह देखने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है कि सभी अंग अपनी सीमा में रहें।

वह अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी को जवाब दे रहे थे जिन्होंने आपातकाल और अन्य राजनीतिक परिदृश्यों का जिक्र करते हुए कहा, ‘1970 के दशक में संविधान के इस नाजुक संतुलन को बिगाड़ दिया गया था। उस संतुलन को बहाल किए जाने की जरूरत है।’ कुछ घंटों बाद रोहतगी ने एक अन्य विधि दिवस कार्यक्रम में सीजेआई और उनके संभावित उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की मौजूदगी में कहा कि न्यायपालिका सहित सभी को यह अवश्य मानना चाहिए कि एक लक्ष्मण रेखा है और आत्मावलोकन के लिए तैयार रहना चाहिए।

सीजेआई ने इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी, जबकि न्यायमूर्ति खेहड़ ने कहा, ‘न्यायपालिका ने संविधान को कायम रख हमेशा लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखा है।’ उन्होंने अटार्नी जनरल की टिप्पणी का जवाब देते हुए कहा कि आपातकाल संविधान की मजबूतियों और कमजोरियों को सामने लाया।

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद न्यायपालिका पर प्रहार करने में काफी मुखर रहे। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने आपातकाल के दौरान हम सभी को नाकाम किया और सभी उच्च न्यायालयों ने काफी साहस दिखाया। उन्होंने कहा, ‘अदालतें सरकार के आदेश को रद्द कर सकती हैं। अदालतें किसी कानून का निरस्त कर सकती है लेकिन शासन को अवश्य ही उन लोगों के साथ बना रहना चाहिए जो शासन के लिए चुने गए हैं।’ उन्होंने मौजूदा शासन द्वारा स्वतंत्रता पर पाबंदी लगाए जाने की आशंकाओं को दूर करते हुए कहा कि आपातकाल के दौरान न सिर्फ वह नहीं बल्कि प्रधानमंत्री प्रभावित हुए तथा यह राज्य (स्टेट) के सभी अंगों की स्वतंत्रता संरक्षित रखेगा।

न्यायमूर्ति खेहड़ ने कहा, ‘न्यायपालिका को भेदभाव और सरकार की शक्ति के दुरूपयोग के खिलाफ सभी लोगों, नागरिकों और गैर नागरिकों की हिफाजत का अधिकार प्राप्त है।’ उन्होंने कहा, ‘देश में न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका के चलते स्वतंत्रता, समानता और नागरिक की गरिमा भारत में फूली फली है।’ उन्होंने कहा कि एक प्रगतिशील नागरिक समाज और एक सतर्क मीडिया ने संवैधानिक मूल्यों को पटरी पर बनाए रखने में योगदान दिया है।

इससे पहले केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के एक अखिल भारतीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने उच्च न्यायालयों और अधिकरणों में न्यायाधीशों की कमी से निपटने के लिए सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की।

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