कारगिल विजय दिवस 2020: जब अपने सैनिकों के शव स्वीकार करने से मुकर गया था पाकिस्तान
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कारगिल विजय दिवस 2020: जब अपने सैनिकों के शव स्वीकार करने से मुकर गया था पाकिस्तान

भारतीय सेना ने इस्लामिक रीति रिवाजों के साथ कारगिल की चोटियों पर उन शवों का सैन्य सम्मान के साथ सुपुर्दे खाक किया. यह दुनिया के लिए अपार आश्चर्य की बात थी कि जिन दुश्मन सैनिकों के साथ कुछ घंटे पहले तक भीषण लड़ाई हो रही थी. 

कारगिल विजय दिवस 2020: जब अपने सैनिकों के शव स्वीकार करने से मुकर गया था पाकिस्तान

देवेंदर कुमार. नई दिल्ली: कारगिल युद्ध (Kargil War) भारतीय सेना और वायु सेना के अपार शौर्य के लिए तो यादगार है ही. इस युद्ध में दुनिया में भारतीय सेना (India Force) की मानव मूल्यों के प्रति निष्ठा भी देखी. इस युद्ध में भारत से हार के बाद पाकिस्तान (Pakistan) ने अपने सैनिकों के शवों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था. इसके बाद भारतीय सेना ने इस्लामिक रीति रिवाजों के साथ कारगिल की चोटियों पर उन शवों का सैन्य सम्मान के साथ सुपुर्दे खाक किया. यह दुनिया के लिए अपार आश्चर्य की बात थी कि जिन दुश्मन सैनिकों के साथ कुछ घंटे पहले तक भीषण लड़ाई हो रही थी. उन सैनिकों के शवों को कोई सेना कैसे इतना सम्मान दे सकती है.

  1. पाकिस्तान ने अपने सैनिकों के शव लेने से कर दिया था इनकार
  2. भारतीय सेना ने किया था पाकिस्तानी सैनिकों को सुपुर्दे खाक
  3. दुश्मन सैनिकों को सम्मान के साथ दफनाने पर दुनिया ने जताया था अचरज

इस युद्ध में भाग ले चुके सैनिकों के मुताबिक भारतीय सेना और वायु सेना ने मिलकर जब कारगिल की ऊंची चोटियों पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों पर हमला बोला तो उनके पैर उखड़ने लगे. बोफोर्स तोपों से लगातार हो रही गोलाबारी और ऊपर आसमान से बरस रहे गोलों ने उनकी हिम्मत बुरी तरह पस्त कर दी थी. लगातार हो रहे हमलों से उनकी सप्लाई लाइन भी पूरी तरह बर्बाद हो गई थी. उनके बहुत सारे सैनिक भारत के हमले में मारे गए थे. हथियार और खाने पीने की कमी की वजह से उनमें भगदड़ मचने लगी.

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26 जुलाई 1999 को युद्ध समाप्त होने के बाद भारत ने सर्च अभियान चलाया तो कारगिल की चोटियों पर कई जगह पाकिस्तानी सैनिकों के शव बिखरे पड़े थे. भारत ने इन सैनिकों के शव वापस लेने के लिए पाकिस्तान से संपर्क किया. लेकिन युद्ध में हार की शर्मिंदगी और  देश में असंतोष भड़क उठने की आशंका को देखते हुए पाकिस्तान ने अपने मृतक सैनिकों के शव स्वीकार करने से इंकार कर दिया. इसके बाद भारतीय सेना ने अपनी सैन्य परंपराओं के तहत मृतक पाकिस्तानी सैनिकों के शव दफनाने का फैसला किया. जिन चोटियों पर पाकिस्तानी सैनिकों के शव मिले थे. उन्हीं चोटियों पर कब्रें खोदी गई. इसके बाद भारतीय सेना के मुस्लिम सैनिकों ने कुरान की आयतें पढ़ी और अल्लाह-हू-अकबर का घोष किया. चोटी पर मौजूद हिंदू सैनिकों ने भी पूरी शिद्दत के साथ अल्लाह-हू अकबर का नारा लगाया.

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पाकिस्तान सैनिकों को दफनाने वक्त छोटी- छोटी इस्लामिक रिवायतों का ध्यान रखा गया. उन शवों के सिर मक्का की ओर रखे गए थे और उन्हें बहुत धीरे धीरे कब्र में उतारा गया. शवों को कब्र में उतारने के बाद भारतीय सैनिकों ने उन्हें सैल्यूट किया. इसके बाद धीरे धीरे शवों पर मिट्टी डालकर कब्र ढक दी गई. ये वही मृतक पाकिस्तानी सैनिक थे. जिन्होंने मरने से पहले धोखे से हमला कर भारत के कई बहादुर सैनिकों को शहीद कर दिया था. जब मृतक पाकिस्तानी सैनिकों के भारतीय सैनिकों के हाथों  सुपुर्दे खाक की खबरें दुनिया के सामने आई तो बहुत हैरानी जताई गई. दुनिया के लिए यह बड़े आश्चर्य की बात थी कि जिन दुश्मन सैनिकों ने भारत की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की और कई सैनिकों को मार डाला. उनके शवों को ऐसा सम्मान कैसे मिल सकता है. 

इस पर सेना से रिटायर हो चुके अधिकारी कहते हैं कि दुश्मन तब तक दुश्मन है. जब तक वह जीवित है. उसके मरते ही दुश्मनी अपने आप खत्म हो जाती है. यही हमारी भारतीय संस्कृति की सीख है. हमें बचपन से ही शवों का सम्मान रखने की सीख दी जाती है. चाहे वह शव हमारे किसी करीबी का हो या दुश्मन सैनिक का.

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