DNA: जानें कौन थीं रानी कमलापति, जिनके नाम पर बने रेलवे स्टेशन का PM Modi ने किया उद्घाटन
Advertisement
trendingNow11028428

DNA: जानें कौन थीं रानी कमलापति, जिनके नाम पर बने रेलवे स्टेशन का PM Modi ने किया उद्घाटन

Rani Kamlapati railway Station: मध्यप्रदेश के भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रानी कमलापति रेलवे स्टेशन के नए स्वरूप का उद्घाटन किया. पहले इस स्टेशन को हबीबगंज स्टेशन के नाम से जाना जाता था. इसके अलावा पीएम ने रांची में बने बिरसा मुंडा को समर्पित म्यूजियम का भी उद्घाटन किया.

जानिए कौन थीं रानी कमलापति

नई दिल्ली. मध्यप्रदेश के भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को एक रेलवे स्टेशन के नए आधुनिक रूप का उद्घाटन किया. इस स्टेशन को अब तक हबीबगंज स्टेशन के नाम से जानते थे. लेकिन अब इसका नाम रानी कमलापति रेलवे स्टेशन हो गया है. आज हम आपको रानी कमलापति के बारे में बताने जा रहे हैं. 

  1. हबीबुल्लाह के नाम पर पड़ गया हबीबगंज स्टेशन
  2. रानी कमलापति भोपाल की आखिरी हिंदू रानी थीं 
  3. भारत की आबादी में आदिवासियों की हिस्सेदारी साढ़े आठ प्रतिशत है

भोपाल की आखिरी हिंदू रानी थीं रानी कमलापति

रानी कमलापति भोपाल की आखिरी हिंदू रानी थीं, जिनका संबध गोंड राजघराने से था. उनके पिता का नाम राजा कृपाल सिंह सरउतिया था. रानी कमलापति को घुड़ सवारी और तलवार बाजी में महारथ हासिल थी. उन्होंने अपने पिता के साथ कई लड़ाइयों में हिस्सा लिया था और आक्रमणकारियों से अपने राज्य की रक्षा की थी. उनका विवाह निजाम शाह से हुआ था, जो गिन्नौर गढ़ के शासक सूरज सिंह शाह के बेटे थे.

रानी कमलापति की मौत के बाद हो गया मुसलमान नवाबों का शासन

17वीं शताब्दी में निजाम शाह ने भोपाल में एक सात मंजिला महल का निर्माण कराया था. ये महल उनकी और रानी कमलापति के प्रेम की निशानी था. सन 1723 में रानी कमलापति की मृत्यु हो गई थी और इसी के साथ भोपाल पर मुसलमान नवाबों का शासन शुरु हो गया था, जिनमें सबसे पहला नाम दोस्त मोहम्मद खान का था. बता दें, भोपाल पर जो मुसलमान महिलाएं शासन करती थीं उन्हें बेगम कहा जाता था.

ये भी पढ़ें: DNA: महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के एनकाउंटर में Urban Naxal के Footprints

ऐसे पड़ा हबीबगंज स्टेशन का नाम

साल 1901 से 1923 तक भोपाल पर जहान बेगम का शासन था, जिन्होंने अपने पोते हबीबुल्लाह के नाम पर भोपाल के एक इलाके का नाम हबीबगंज रखा था. यहां आगे चलकर हबीबगंज स्टेशन का निर्माण हुआ. इस स्टेशन का नाम बदलकर अब रानी कमलापति रेलवे स्टेशन कर दिया गया है.

गोंड राजघराने की थीं रानी कमलापति

कमलापति गोंड राजघराने की रानी थीं, जिसकी उतपत्ति गोंडवाना शब्द से हुई है. गोंड साम्राज्य महाराष्ट्र के विदर्भ से लेकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और ओडिशा तक फैला हुआ था. इन इलाकों में जो लोग रहते थे उन्हें गोंड कहा जाता था, जो मूल रूप से आदिवासी थे. इसलिए रानी कमलापति भारत की एक आदिवासी रानी थीं.

60 करोड़ साल पुराना है गोंडवाना का इतिहास

आपको जानकर हैरानी होगी कि 60 करोड़ साल पहले दुनिया में एक Super Continent यानी एक बहुत बड़ा महाद्वीप हुआ करता था, जिसका नाम था गोंडवाना. जो उस समय पूरी पृथ्वी के 20 प्रतिशत हिस्से के बराबर था. आज का पूरा भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, अंटार्टिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अरेबियन पेनिनसुला इसी गोंडवाना लैंड का हिस्सा हुआ करते थे. करीब 20 करोड़ साल पहले पृथ्वी के नीचे मौजूद Tectonic प्लेटों के टकराने की वजह से गोंडवाना लैंड टूटना शुरू हुआ और इस दौरान ये सारे देश, महाद्वीप और उपमहाद्वीप अस्तित्व में आने लगे. इस Super Continent का नाम गोंडवाना, गोंड आदिवासी लोगों के नाम पर ही रखा गया था, जिनकी पहचान मध्य भारत से जुड़ी हुई है.

आदिवासी हैं भारत की मुख्यधारा का हिस्सा

भारत के आदिवासी आदिकाल से ही भारत और भारतीय इतिहास का हिस्सा रहे हैं. लेकिन आजादी के बाद से सरकारों ने आदिवासियों को मुख्य धारा में लाने के लिए कुछ खास नहीं किया. अगर कभी किसी ने प्रयास भी किया तो आदिवासियों को लगा कि सरकारें उनके जंगल और जमीन पर कब्जा कर लेंगी, क्योंकि आदिवासी जंगल को अपना असली घर मानते हैं और ये बात सही है कि इन जंगलों पर सरकारों और उद्योगपतियों की भी नजर रही है. लेकिन एक आदिवासी रानी को सम्मान देकर सरकार ने ये बताने की कोशिश की है कि देश के आदिवासी भी भारत की मुख्यधारा का हिस्सा हैं.

आदिवासियों की 705 जनजातियां  हैं अनुसूचित

भारत की आबादी में आदिवासियों की हिस्सेदारी साढ़े आठ प्रतिशत है. भारत में आदिवासियों की 705 जनजातियां अनुसूचित हैं. इन जातियों को अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribes) कहते हैं.  लेकिन इनके जंगलों और जमीनों पर कब्जे की वजह से पिछले कुछ साल में करीब 50 प्रतिशत आदिवासी अपने मूल स्थानों को छोड़कर कहीं और जाने पर मजबूर हो चुके हैं. लेकिन अब सरकार की कोशिश है कि आदिवासियों को उनके मूल स्थानों पर ही उनका हक दिया जाए.

ये भी पढ़ें: DNA: मणिपुर में हुए आतंकवादी हमले और उसमें चीन की भूमिका का संपूर्ण विश्लेषण

बिरसा मुंडा को समर्पित म्यूजियम का भी हुआ उद्घाटन

इसके अलावा पीएम मोदी ने सोमवार को ही रांची में एक म्यूजियम का उद्घाटन एक Video कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया. ये म्यूजियम महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा को समर्पित है. बिरसा मुंडा का जन्म 1875 में आज के ही दिन हुआ था. उन्होंने अंग्रेजों के शासन के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी थी. 3 मार्च 1900 को अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को पकड़कर रांची की जेल में डाल दिया था, जहां कुछ महीने बाद सिर्फ 25 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई. जिस जेल में बिरसा मुंडा की मृत्यु हुई थी, अब उसे बिरसा मुंडा को समर्पित म्यूजियम में बदल दिया गया है. इसके अलावा पीएस मोदी ने बिरसा मुंडा की जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने की भी शुरुआत की है.

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news