CG NEWS: भगवान राम ने वनवास काल का लंबा समय दंडकारण्य के जंगलों में बिताया था. बस्तर के जंगलों में आज भी वो मंदिर मौजूद है, जहां भगवान श्री राम ने खुद पूजा की थी. कुछ लोगों ने मंदिर का रहस्य जानने के लिए खुदाई की, लेकिन वो लोग भी शिवलिंग का छोड़ नहीं ढूंढ पाए.
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Chhattisgarh News: भगवान राम अपने वनवास के दौरान दंडकारण्य के जंगलों से गुजरे थे. भगवान राम से जुड़ी हुई प्राचीन निशानियां आज भी बस्तर में मिल जाती हैं. जगदलपुर से 10 किलोमीटर दूर स्थित रामपाल गांव लोगों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है. यहां स्थित लिंगेश्वर शिव मंदिर का त्रेता युग और राम से गहरा नाता है. गांव वालों का मानना है कि वनवास के दौरान भगवान राम ने यहां भगवान शिव की पूजा की थी. यही कारण है कि गांव का नाम भी रामपाल रखा गया.
रामपाल लिंगेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी कैलाश ठाकुर बताते हैं कि कई पीढ़ियों से उनका परिवार मंदिर की सेवा में लगा हुआ है. सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां ग्रामीणों ने लिंगेश्वर शिवलिंग के छोर की तलाश के लिए खुदाई भी की थी. लोग बताते हैं कि यह लिंगेश्वर शिवलिंग स्वयंभू है. इसका मतलब यह खुद से प्रकट हुआ है. ये वही शिवलिंग है, जिसकी पूजा भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान की थी.
श्री राम ने विताया था यहां समय
भगवान राम ने वनवास काल का लंबा समय दंडकारण्य के जंगलों में बिताया था. इसके प्रमाण रामायण और अन्य ग्रंथों में मिलते हैं. ऐसी मान्यता है कि भगवान राम रामपाल, ओडिशा के गुप्तेश्वर, सुकमा के रामाराम से होते हुए भद्राचलम गए थे. इसलिए भी इन जगहों पर मान्यताओं से जुड़े हुए भगवान शिव के मंदिर मिलते हैं. स्थानीय पत्रकार आकाश मिश्रा ने बताया कि दिल्ली के श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान के विशेषज्ञों ने श्री राम के वनवास पर शोध किया था और संस्थान ने यह बताया कि रामपाल के लिंगेश्वर शिवलिंग स्वयं भू शिवलिंग है और भगवान राम ने लिंगेश्वर शिवलिंग की पूजा की थी.
यहां दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालू
जगदलपुर से दर्शन करने आईं वकील सविता सतपति ने बताया कि रामपाल के लिंगेश्वर शिव मंदिर बहुत प्राचीन मंदिर है. यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का आना-जाना बना रहता है. खास बात यह है कि यहां खुद भगवान श्री राम ने भगवान शिव की पूजा की थी. बता दें कि रामायण और रामचरित मानस में भगवान राम द्वारा भगवान शिव की पूजा का कई जगह उल्लेख मिलता है. भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई से पहले भी. समुद्र तट के किनारे शिवलिंग बनाकर पूजा की थी, जिसे आज रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है.