रायपुर में समुद्र के किनारे नहीं बल्कि घरों में तैयार किए जा रहे हैं मोती, यह है विधि
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रायपुर में समुद्र के किनारे नहीं बल्कि घरों में तैयार किए जा रहे हैं मोती, यह है विधि

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय का छात्र शुभम राव अपने घर की छत और हॉस्टल में ऊतक जीवों से मोती तैयार कर रहे शुभम एंटोमोलॉजी के छात्र हैं. जीव-जंतुओं से तो उनका रोजाना सामना होता है.

फाइल फोटो (फोटो साभारः twitter)

रजनी ठाकुर, नई दिल्लीः गहरे समुंद्र में जाकर मोती निकालने की बात तो सभी जानते हैं, पर अगर ये कहा जाए कि मोती खेतों में उगाए जा सकते हैं, तो ये जानकर आपको थोड़ा ताज्जुब जरूर होगा. ये कमाल कर दिखाया है छत्तीसगढ़ के रहने वाले शुभम राव ने. घर बैठे-बैठे भी आप मोती उगा सकते हैं. बस आधा टंकी पाने लें और घर की छत पर ऊतक जीवों की खेती करना शुरू कर दें. घर के आंगन में ही गड्ढा खोदकर उसमे पानी भरकर खेती करने से 9 महीनों में ही ताकि आपको मोतियों की माला मिल सकती है. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय का छात्र शुभम राव अपने घर की छत और हॉस्टल में ऊतक जीवों से मोती तैयार कर रहे शुभम एंटोमोलॉजी के छात्र हैं. जीव-जंतुओं से तो उनका रोजाना सामना होता है.

ऐसे में शुभम ने सोचा क्यों न बस्तर की इंद्रावती नदी के किनारे पाए जाने वाले ऊतकों से मोती की खेती की जाए. इंद्रवती नदी के किनारे रहने वाले आदिवासियों से संपर्क किया और बड़ी तादात में ऊतक मिलने लगे. चुनौती सामने आई की हर ऊतक से मोती तैयार नहीं किया जा सकता. ऐसे में उनका ऑपरेशन कर आसानी से डिजाइनर मोती तैयार किया जा सकता है. ऑपरेशन सफल हुआ और ऊतक डिजाइनर मोती देने लगे. इस पूरी प्रक्रिया को करने में करीब 1000 रुपए का खर्च आया. वहीं प्राप्त मोती की जांच सूरत की भी करवाई जा चुकी है.

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शुभम ने जब एमएससी एंटोमोलॉजी की पढ़ाई की तो पता जला की कैल्शियम कार्बोनेट से मोती का क्रिस्टल तैयार होता है. वहीं ऊतक का ऊपरी हिस्सा भी (कवच) कैल्शियम कार्बोनेट का होता है.उसने तत्काल आदिवासियों से मरे हुए ऊतक लिए, उसके ऊपरी हिस्से को अलग कर मिक्सर में पीसा. जब वह आटे की तरह तैयार हो गया तो उसकी गोली बना कर सांचों में एयरोटाइट से चिपका दिया. अब चुनौती आई की आखिर इसे जिंदा ऊतक के अंदर डाला कैसे जाए. इसके उसने लिए ऑपरेशन विधि का इस्तेमाल किया. ऊतक के मुंह को थोड़ा सा खोल कर उसके अंदर सांचे को डाल दिया और 9 महीने बाद मोती सांचे के अनुसार तैयार मिला.

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यह ऊतक सुरक्षा कवच में बंद रहता है. ऐसे में ऑपरेशन के बाद जब कवच के आटे से तैयार सांचा अंदर डाला गया तो ऊतर कवच की सुगंध आने के कारण उसे स्वीकार कर लेता है. वहीं जब सांचा अंदर हो जाता है तो ऊतर को उसके कठोर होने से परेशानी होने लगती है. ऊतक धीरे-धीरे उसे चिकना करने के लिए अपने शरीर का तत्व उसमें लगाने लगता है. करीब नौ महीने के बाद सांचे के ऊपर तत्व मोती के स्वरूप में बदल जाता है. शुभम का कहना है कि ऊतक से मोती घर पर तैयार करना है तो उसे जिस टंकी में रखें, या इस तरह गड्ढे में रखें, वहां का पानी कभी न बदलें. लोगों को यह जानकारी मिलेगी तो मशरुम उत्पादन कि तरह ही मोती उत्पादन भी छोटे स्तर पर भी लोग घर पर ही मोती का उत्पादन कर पाएंगे. खास बात यह है कि शुभम अलग अलग डिजाइन के मोती उगाते है जिनमे हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी शामिल है.

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