मिस डेफ एशिया 2018 निष्ठा डुडेजा बोलीं, सहानुभूति नहीं, बराबरी चाहिए
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मिस डेफ एशिया 2018 निष्ठा डुडेजा बोलीं, सहानुभूति नहीं, बराबरी चाहिए

दिल्ली में पली-बढ़ीं निष्ठा डुडेजा ने 24 देशों के प्रतियोगियों को पीछे छोड़ते हुए मिस डेफ एशिया 2018 का खिताब अपने नाम किया.

मिस डेफ एशिया 2018 निष्ठा डुडेजा बोलीं, सहानुभूति नहीं, बराबरी चाहिए

यशस्विका मल्होत्रा.नई दिल्ली: दिल्ली में पली-बढ़ीं निष्ठा डुडेजा ने 24 देशों के प्रतियोगियों को पीछे छोड़ते हुए मिस डेफ एशिया 2018 का खिताब अपने नाम किया. सितम्बर 2018 में ये प्रतियोगिता प्राग में हुई, जहां पहली बार भारत से किसी सुंदरी ने ये ख़िताब को अपने नाम किया. निष्ठा की उम्र 23 साल है और मुम्बई के मीठी बाई कॉलेज में इकोनॉमिक्स में एमए की पढ़ाई कर रही हैं.

निष्ठा बचपन से ही सुन नहीं सकती. उसकी उम्र सिर्फ 3 साल की थी जब उसके मां बाप को इस बारे में पता चला. किसी भी मां बाप की तरह वो भी घबरा गए कि अब उसका जीवन कैसा होगा. उसे बहुत से डॉक्टरों के पास लेकर गए लेकिन अंत में उन्हें पता चल गया कि अब उन्हें अपनी बच्ची को सुनना-बोलना सीखाना है. ये ज़िम्मेदारी ईश्वर ने उन्हें सौंपी है और वे बखूबी उन्हें ही निभानी है. 

निष्ठा की मां पूनम डुडेजा बताती हैं कि वो बचपन से ही काफी होशियार थी. उसकी स्पीच पर उसने खुद भी काफी मेहनत की. वो बताती हैं कि निष्ठा बचपन से ही काफी नटखट थी, हमेशा शरारतें करती रहती थी. निष्ठा की हमेशा से खेल में काफी रुचि रही है. निष्ठा ने 12 साल की उम्र तक जुडो सीखा है और उसके बाद सानिया मिर्ज़ा से प्रेरित होकर टेनिस खेलना शुरू कर दिया. वे अंतरार्ष्ट्रीय स्तर तक भी टेनिस खेल चुकी हैं. टेनिस खेलने के लिए निष्ठा ने अपना स्कूल भी बदल लिया, ताकि वो ज़्यादा से ज़्यादा समय अपने खेल को दे सके. हालांकि बाद में मेडिकल कारणों की वजह से उन्हें टेनिस खेलना छोड़ना पड़ा जिसके बाद उसने मॉडलिंग की दुनिया में कदम रखा. 

सात साल में स्पीच थेरेपी सीखी  
निष्ठा के पिता वेदप्रकाश बताते हैं, निष्ठा ने सात साल तक स्पीच थेरेपी के जरिये बोलना सीखा. अब वह अपनी बात सही तरीके से रख लेती है. अंग्रेजी और हिंदी भाषा में अच्छी पकड़ है. कभी इंटरनेट तो कभी स्पेशल ट्रेनर के जरिये हमने उसे सिखाया. इसके लिए खुद भी बहुत सीखा। अगर निष्ठा के सामने बैठकर आराम से कोई बात कही जाये तो वो आसानी से सबकी बात समझ लेती है. अब मैं कह सकता हूं कि ऐसे बच्चों को अगर बेहतर ढंग से पाला जाए तो वे बहुत प्रतिभावान साबित होते हैं. 

सहानुभूति नहीं, बराबरी चाहिए : निष्ठा  
मैंने इस प्रतियोगिता के लिए दो साल तैयारी की. मेरे माता-पिता बचपन से ही मुझे प्रशिक्षण दे रहे थे. ऐसी प्रतियोगिताओं के लिए जिस तरह का ज्ञान और व्यक्तित्व चाहिए, वह मुझे परिवार से मिला. इसके अलावा मिस डेफ एशिया बनने के लिए मैंने डांस, मेकअप और रैंप पर चलना भी सीखा. 2018 में ही निष्ठा ने मिस डेफ इंडिया का खिताफ जीता था. मैं जब भी देश के बाहर गई हूं, तो देखा कि वहां हमारे जैसे बच्चों को सम्मान और बराबरी से देखा जाता है. वहां सहानुभूति के बजाय हमारे जैसे बच्चों को ज्यादा मौके दिए जाते हैं. अपने देश में भी सोच के स्तर पर बदलाव होना चाहिए. 

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