निर्भया केस: अलग-अलग फांसी देने से HC ने किया इनकार, केंद्र सरकार ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
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निर्भया केस: अलग-अलग फांसी देने से HC ने किया इनकार, केंद्र सरकार ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

निर्भया केस: अलग-अलग फांसी देने से HC ने किया इनकार, केंद्र सरकार ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

नई दिल्ली: निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में मृत्युदंड का सामना कर रहे चार दोषियों को एक साथ फांसी पर लटकाया जाएगा, न कि अलग-अलग. यह बात बुधवार को अदालत ने साफ कर दी है. अब केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

दरअसल, निर्भया केस (Nirbhaya Case) के दोषियों को जल्द और अलग-अलग फांसी देने की केंद्र सरकार की मांग दिल्ली हाईकोर्ट ने ठुकरा दी है. हाई कोर्ट ने दोषियों को कहा कि अगर किसी दोषी को कोई अर्जी दाखिल करनी है तो एक हफ्ते के भीतर करे. दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया.

निर्भया गैंगरेप और मर्डर मामले के सभी चार दोषियों को कानूनी उपायों का उपयोग करने के लिए अदालत ने बुधवार को एक सप्ताह का समय दिया है.

जज सुरेश कैत ने जेल मैनुअल के रूल पढ़ते हुए कहा कि जेल मैनुअल के नियम 834 और 836 के अनुसार के एक ही मामले में एक से ज्यादा सजा पाए दोषियों की अगर याचिका लंबित रहती है तो फांसी टल जाती है, कुछ बातों पर स्पष्टता नहीं है.

आपको बता दें कि निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले के चार दोषियों की फांसी की सजा की तामील पर रोक को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाइकोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया. दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर रविवार को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.

दोषियों को एक फरवरी को सुबह छह बजे फांसी दी जाने वाली थी. मुकेश ने दिल्ली हाईकोर्ट में यह तर्क देते हुए एक आवेदन किया कि अन्य दोषियों ने अभी कानूनी उपाय नहीं अपनाए हैं और उन्हें अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती.

मुकेश और विनय के सभी कानूनी हथकंडे समाप्त हो चुके हैं. हालांकि अक्षय की दया याचिका अभी राष्ट्रपति के समक्ष लंबित है. पवन ने अभी तक दया याचिका दायर नहीं की है, जो उसका अंतिम संवैधानिक उपाय है.

फांसी की सजा पाए चारों दोषियों के खिलाफ हमला जारी रखते हुए मेहता ने कहा कि एक सहदोषी अपनी सिर्फ 'गणनात्मक निष्क्रियता' से कोर्ट के आदेश को रोक सकता है. उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने दोषी द्वारा दायर सामान्य अपील गलती से 'दया' याचिका समझ लिया.

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