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नई दिल्ली: मुंबई पुलिस के उस नए आदेश में कहा गया है कि अब से मुंबई पुलिस में काम करने वाला कोई भी पुलिसकर्मी अपनी निजी Car या Two Wheeler पर ना तो मुंबई पुलिस का स्टीकर लगा सकता है और ना ही उस पर पुलिस लिखवा सकता है. अब सिर्फ मुंबई पुलिस की गाड़ियों पर ही पुलिस लिखने का अधिकार होगा. ये खबर देश के उन पुलिसवालों और उनके परिवारवालों के लिए है, जो बड़ी शान से अपनी निजी गाड़ियों पर पुलिस लिख कर हर कानून तोड़ते हैं और ये उम्मीद करते हैं कि पुलिस की गाड़ी समझ कर उनकी गाड़ी को ना तो रोका जाएगा, ना ही उनका चालान होगा.
हमारे देश में गाड़ियों पर पुलिस के अलावा प्रेस, वकील और जातियों को लिखने का भी फैशन है. आपने अक्सर अपने आसपास ऐसी कई गाड़ियां देखी होंगी, जिन पर जाति सूचक शब्द लिखे होते हैं, या बड़े-बड़े अक्षरों में प्रेस या पुलिस लिखा होता है. लोगों को ऐसा लगता है कि कार के शीशे पर जाति या उनका पेशा लिखा हो तो उन्हें सम्मान की नज़रों से देखा जाएगा और ऐसी गाड़ियों को ना तो रोका जाएगा और ना ही इनसे कोई सवाल पूछने की हिम्मत करेगा. लेकिन हमें लगता है कि ये एक मानसिक बीमारी है और इसका इलाज बहुत जरूरी है.
गाड़ियों पर पुलिस लिखने के पीछे क्या मानसिकता होती है. इसे आप तीन Points में समझ सकते हैं.
इनमें पहला है अपनी पहुंच और ताकत का प्रदर्शन करना. जब किसी गाड़ी पर पुलिस लिखा होता है तो उसे अलग नजरिए से देखा जाता है. लोगों को लगता है कि ये तो पुलिस की गाड़ी है, इसका कोई क्या बिगाड़ लेगा.
दूसरी बात, सिर्फ पुलिसकर्मी ही अपनी गाड़ी पर अपने विभाग का नाम नहीं लिखते. बल्कि उनके रिश्तेदार, दूर के रिश्तेदार और उनके दोस्त भी ये सोच कर अपनी गाड़ियों पर पुलिस का स्टीकर लगा लेते हैं कि ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन होने पर उन्हें इसकी वजह से कुछ डिस्काउंट मिल जाएगा. आपने ऐसे कई लोगों को देखा होगा, जो ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन होने पर जब पकड़े जाते हैं तो ये कहते हैं कि तुम जानते नहीं हो कि मेरी पुलिस में कितनी पहचान है.
तीसरी बात, जो बहुत कम लोगों को पता होती है कि ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन होने पर आम लोगों से जितना जुर्माना वसूला जाता है, अगर वही ट्रैफिक नियम कोई पुलिसवाला तोड़े तो उससे जुर्माने की दोगुनी राशि वसूली जाती है. यानी अगर एक आम आदमी ने हेलमेट नहीं पहनने के लिए एक हजार रुपये का जुर्माना भरा है तो पुलिस वाले को ऐसा करने के लिए दो हजार रुपये का जुर्माना देना होगा. इसी जुर्माने से बचने के लिए गाड़ियों पर पुलिस लिखा जाता है ताकि जब कोई दूसरा पुलिसकर्मी उस गाड़ी को रोके तो वो इस बात को समझे और उसका कोई चालान ना करे.
आइए आपको एक विशेष रिपोर्ट के माध्यम से समझाते हैं. यह रिपोर्ट आपको ये भी बताएगी कि भारत के लोग सड़कों पर अपने पेशे और जाति का बोझ उठा कर चलना, शान की बात क्यों समझते हैं. आपने अक्सर अपने आसपास ऐसी कई गाड़ियां देखी होंगी, जिन पर बड़े-बड़े अक्षरों में पुलिस लिखा होता है. लोगों का ऐसा लगता है कि गाड़ी के शीशे पर पुलिस लिखा हो तो उन्हें सम्मान की नजरों से देखा जाएगा. ऐसी गाड़ियों को ना तो रोका जाएगा और ना ही इनसे कोई सवाल पूछने की हिम्मत करेगा। और ऐसा होता भी है.
आपने भी ऐसी गाड़ियों को देख कर कभी ना कभी ये जरूर कहा होगा कि पुलिस भला पुलिस का चालान क्यों काटेगी? तो बस यही रूतबा, गाड़ियों पर पेशे की नुमाइश का रूप ले लेता है. लेकिन मुंबई पुलिस ने एक सर्कुलर जारी करके कहा है कि अब कोई भी पुलिसकर्मी अपनी निजी गाड़ी पर पुलिस का स्टीकर नहीं लगा सकेगा. अगर किसी ने इस नियम का उल्लंघन किया तो उस पर ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन का मामला तो दर्ज होगा ही, साथ ही विभागीय कार्रवाई भी की जाएगी.
हमारे देश में गाड़ियों पर पुलिस का स्टीकर लगाने वाले दो तरह के लोग हैं. पहले तो वो खुद, जो पुलिस में हैं और उन्हें लगता है कि अगर उनकी गाड़ी पर विभाग का नाम लिखा होगा तो उनका कोई चालान नहीं होगा और दूसरे लोग वो हैं, जो इन पुलिसकर्मियों के रिश्तेदार और दोस्त होते हैं. या फिर वो भी नहीं होते. लेकिन उन्हें लगता है कि सिर्फ पुलिस लिखा होने से उनका काम चल जाएगा और उनके कोई पूछताछ नहीं होगी. इसके अलावा एक समस्या ये भी है कि Motor Vehicle ऐक्ट में कहीं ये नहीं लिखा कि पुलिसकर्मी, पत्रकार या दूसरे पेशे के लोग अपनी गाड़ी पर अपने विभाग का स्टीकर नहीं लगा सकते.
हमारे देश में जिस तरह कार पर कास्ट लिख कर चलने का एक फैशन है. ठीक उसी तरह पुलिस, वकील और पत्रकार लिख कर चलना भी एक फैशन बन गया है और ऐसे लोगों को लगता है कि कानून तो उन्हीं की जेब में है, कानून उनका क्या बिगाड़ लेगा.
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