नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने असम समझौते के क्रियावन्यन के लिए एक कमेटी गठित करने की स्वीकृति दी है. इस प्रस्ताव का असम की सर्बानंदा सोनोवाल सरकार ने स्वागत करते हुए असम के नागरिकों के लिए नव वर्ष का तोहफा करार दिया हैं. वहीं, बोडो समुदाय संगठनों और बोडो पीपुल्स प्रोग्रेसिव फ्रंट (बीपीपीएफ) राजनैतिक दल ने भी इस निर्णय का स्वागत किया है.
बोडोलैंड काउंसिल के नेता हग्रामा मोहिलारी ने कहा कि बोडो बहुल बीटीएडी क्षेत्र के विकास के लिए नई रेल गाड़ी अरण्य एक्सप्रेस, कोकराझार में दूरदर्शन और आकाशवाणी केंद्र का आधुनिकरण ओर बोडो साहित्य सह संस्कृति केंद्र और संग्राहलय की स्थापना की स्वीकृति से न केवल बोडो जनजाति बल्कि असम के हर समाज की भलाई होगी. मोहिलारी ने रोष जताया कि बोडो प्लेन्स जनजाति लोगों के हिल्स जनजातिकरण की मांग के अलावा असम के कारबी, दिमासा जनजाति लोगों की दीर्घकालिक मांगों पर भी केंद्र सरकार को ध्यान देना चाहिए.
अखिल असम छात्र संगठन (आसु) के सलाहकार डॉ. समुज्जल कुमार भट्टाचार्य ने केंद्रीय कैबिनेट के उच्चस्तरीय कमेटी गठन करने के निर्णय को ऊंट के मुंह में जीरा करार दिया. उन्होंने कहा कि असम आंदोलन के 6 वर्ष बाद 19 अगस्त, 1985 के दिन भारत सरकार और आसु के बीच हुए असम समझौते के करार की धारा 6 के अनुसार सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई अस्मिता और विरासत को संवैधानिक रूप से विधायी और प्रशासनिक अधिकारों के आलोक में संरक्षित करने के लिए संरक्षण कवच हैं. इसके लिए किसी भी तरह का उच्च स्तरीय कमेटी गठन की जरुरत ही नहीं हैं. इस कमेटी के गठन केंद्र सरकार का केवल राजनैतिक हथकंडा हैं.
वहीं, बोडो छात्र संगठन आब्सू (ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन) ने कैबिनेट के फैसले में बोडो जनजाति की दीर्घकालीन मांग असम से अलग बोडोलैंड राज्य का उल्लेख नहीं होने पर रोष जताया. गौरतलब है कि बीजेपी ने 2014 के लोक सभा चुनाव के प्रचार के दौरान असम के 6 अन्य समुदायों- कोच राजवंशी, मोरान, मटक, ताई-आहोम समेत अन्य आदिवासियों को जनजातिकरण (शेडूल ट्राइब्स) की मान्यता देने का वादा किया था. इस स्वीकृत कमेटी में इन समुदायों को जनजातिकरण मान्यता देने की मांग का उल्लेख नहीं है. बता दें कि असम के इन समुदायों को अन्य पिछड़े जाति (ओबीसी) की श्रेणी में रखा जाता हैं.