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नई दिल्ली: इस सप्ताह देश में पद्म पुरस्कारों का विषय काफी चर्चा का केंद्र रहा है. पद्म पुरस्कार (Padma Awards) देश के सर्वोच्च सम्मानों में से एक है. हाल ही में भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद (Ram Nath Kovind) ने कई लोगों को पद्म पुरस्कार प्रदान किए. जिन्होंने अपने व्यक्तिगत कारणों से या पेशे के माध्यम से देश के हित में उल्लेखनीय और विशिष्ट योगदान दिया है. पद्म पुरस्कार पाने वालों की खूब सराहना हुई.
वैसे तो कई लोगों को इस पुरस्कार से नवाजा गया लेकिन एक नाम सबके जहन में अटक गया. वो थे लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) काजी सज्जाद अली जहीर. वे एक पूर्व पाकिस्तानी सैनिक हैं जिन्हें कि इस बार पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. इस पाकिस्तानी सैनिक की कहानी आकर्षक और बहादुरी से भरपूर है. उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालते हुए बांग्लादेश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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1971 में भारत और पाकिस्तान की लड़ाई से पहले पाकिस्तान के सैनिक बांग्लादेश (तब का पाकिस्तान) में भीषण उपद्रव मचा रहे थे और वहां हजारों लोगों की हत्या कर चुके थे, उस वक्त बांग्लादेश में पाकिस्तान के खिलाफ भारी गुस्सा पनप उठा था. उस वक्त कर्नल जहीर ने भारतीय सैनिकों के साथ मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन चलाया था. बांग्लादेश की आजादी से पहले कर्नल जहीर पाकिस्तानी सेना के बड़े अधिकारी थे, लेकिन पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश के लोगों पर इतने जुल्म किए, कि कर्नल जहीर जैसे लोग उसे बर्दाश्त नहीं कर पाए.
लेफ्टिनेंट कर्नल जहीर का नाम काफी हद तक किसी के ध्यान में नहीं था, लेकिन उन्होंने इस सप्ताह तब सुर्खियां बटोरीं जब उन्होंने पद्म श्री प्राप्त करने के लिए पोडियम पर कदम रखा था. बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान भूलने योग्य नहीं है. वे कई बांग्लादेशियों के प्रिय हैं और भारत के लिए भी महत्वपूर्ण हैं.
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लेफ्टिनेंट कर्नल जहीर की बहादुरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह साहस के साथ कहते हैं कि पाकिस्तान में उनके नाम पर पिछले 50 सालों से लंबित (Pending) मौत की सजा (Death Warrant) सम्मान के रूप में है.
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