मोदी और गनी की हुई मुलाकात, आतंकवाद पर पाकिस्तान को दिया कड़ा संदेश
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मोदी और गनी की हुई मुलाकात, आतंकवाद पर पाकिस्तान को दिया कड़ा संदेश

पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए भारत और अफगानिस्तान ने आज आतंकवादियों के लिए सभी तरह का समर्थन, प्रायोजन और सुरक्षित पनाहगाह को खत्म करने का आह्वान किया और सुरक्षा तथा रक्षा सहयोग को मजबूत करने का फैसला किया। बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने क्षेत्र में राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए निरंतर आतंकवाद के इस्तेमाल पर चिंता प्रकट की।

मोदी और गनी की हुई मुलाकात, आतंकवाद पर पाकिस्तान को दिया कड़ा संदेश

नई दिल्ली : पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए भारत और अफगानिस्तान ने आज आतंकवादियों के लिए सभी तरह का समर्थन, प्रायोजन और सुरक्षित पनाहगाह को खत्म करने का आह्वान किया और सुरक्षा तथा रक्षा सहयोग को मजबूत करने का फैसला किया। बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने क्षेत्र में राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए निरंतर आतंकवाद के इस्तेमाल पर चिंता प्रकट की।

दोनों नेताओं के बीच क्षेत्रीय और द्विपक्षीय मुद्दों पर व्यापक चर्चा हुई। एकीकृत, संप्रभु, लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण, स्थिर और समृद्ध अफगानिस्तान के लिए भारत के स्थायी समर्थन को दोहराते हुए मोदी ने शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, कौशल विकास, महिला सशक्तिकरण, ऊर्जा, आधारभूत संरचना जैसे क्षेत्रों में क्षमता निर्माण और लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने के लिए आगे जरूरतों पर देश के तैयार रहने के बारे में अवगत कराया।

एक संयुक्त बयान में कहा गया, ‘इसके अंत में, प्रधानमंत्री ने करीबी पड़ोसी और अफगानिस्तान तथा वहां के लोगों के मित्र के तौर पर पेशकश की कि भारत एक अरब डॉलर रकम आवंटित करेगा।’ वार्ता के बाद, दोनों पक्षों ने तीन समझौते - प्रत्यर्पण समझौता, नागरिक और वाणिज्यिक मामलों में सहयोग और बाह्य जगत के शांतिपूर्ण इस्तेमाल में सहयोग पर सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये। 

संवाददाताओं से बात करते हुए विदेश सचिव एस. जयशंकर ने कहा, ‘दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय हालात पर चर्चा की और क्षेत्र में राजनीतिक लक्ष्यों के लिए आतंकवाद तथा हिंसा के निरंतर इस्तेमाल पर गंभीर चिंता प्रकट की। वे इस बात पर सहमत हुए कि यह घटनाक्रम क्षेत्र तथा इससे आगे शांति, स्थिरता और प्रगति के लिए सबसे बड़ा खतरा है।’ 

इस बात पर जोर देते हुए कि बिना भेदभाव के सभी तरह के आतंकवाद का खात्मा जरूरी है, दोनों पक्षों ने अफगानिस्तान और भारत को निशाना बनाने वालों सहित आतंकवाद के सभी प्रायोजकों, समर्थकों, सुरक्षित पनाहगाह और ठिकानों को नेस्तनाबूद करने का आह्वान किया। हालांकि पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया। 

यह पूछे जाने पर कि रक्षा आपूर्ति बढ़ाने के अफगानिस्तान की लंबित मांग को क्या भारत ने मान लिया, जयशंकर ने कहा, ‘दोनों नेताओं ने आतंकवाद से मुकाबले और सुरक्षा तथा रक्षा सहयोग मजबूत करने के प्रति अपना संकल्प जताया जैसा कि भारत-अफगानिस्तान रणनीतिक साझेदारी समझौते में परिकल्पना की गयी है।’ 

हालांकि, विदेश सचिव ने आगे और विवरण नहीं दिया और बस इतना उल्लेख किया कि अफगानिस्तान के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के हालिया भारत दौरे के दौरान इस पर चर्चा हुयी थी। प्रधानमंत्री ने भारत से विश्व स्तरीय और किफायती दवाएं तथा परस्पर सहमति वाले साधनों के जरिए सौर ऊर्जा में सहयोग की भी पेशकश की।

जयशंकर ने किल्लत झेल रहे अफगानिस्तान को 1.75 लाख टन गेहूं आपूर्ति करने की भारत की पेशकश पर भी बात की। उन्होंने कहा कि भारत गेहूं की आपूर्ति करना चाहता है और उसने महीनों पहले पाकिस्तान से ‘पारगमन’ के लिए अनुरोध किया था। साथ ही कहा कि हमें कोई जवाब नहीं मिला। 

मोदी और गनी इस पर भी सहमत हुए कि विदेश मंत्री और अफगानिस्तान के विदेश मंत्री की सह-अध्यक्षता वाली रणनीतिक भागीदारी परिषद जल्द ही बैठक करेगी और सहयोग के विविध क्षेत्रों से निपटने तथा आगे मागदर्शन के लिए चार संयुक्त कार्य समूहों की सिफारिशों की समीक्षा की। 

यह स्मरण करते हुए कि भारत-अफगानिस्तान द्विपक्षीय विकास सहयोग ने सफल राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक बदलाव के अफगानिस्तान के अपने प्रयासों में मदद दी है, दोनों नेताओं ने संसद भवन तथा अफगानिस्तान-भारत मैत्री बांध जैसे हालिया महत्वपूर्ण मील के पत्थर तय करने पर खुशी जाहिर की।

दोनों नेताओं ने कहा कि वे इस महीने के अंत में न्यूयार्क में भारत-अमेरिका-अफगानिस्तान विचार विमर्श के फिर आरंभ होने को लेकर आशान्वित हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति गनी को अवगत कराया कि भारत हर मुमकिन तरीके से अफगानिस्तान की सरकार को मदद करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ भागीदारी जारी रखेगा।

संयुक्त बयान में कहा गया, ‘इस संदर्भ में नेताओं ने आगामी चार दिसंबर को हार्ट ऑफ एशिया-इस्तांबुल प्रोसेस (एचओए) के अमृतसर मंत्रीमंडलीय सम्मेलन के साथ ही 5 अक्तूबर को ब्रसेल्स सम्मेलन की अहमियत को भी रेखांकित किया।’

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