शिवसेना के मुखपत्र सामना (Saamana) के जरिए पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) की न्यायपालिका को लेकर की गई टिप्पणी को आधार बनाते हुए केंद्र की मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की गई है. सामना में सुप्रीम कोर्ट को लेकर गंभीर सवाल खड़े करने की कोशिश की गई है.
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मुंबई: पूर्व सीजेआई व वर्तमान में राज्य सभा सांसद रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) की न्यायपालिका को लेकर की गई टिप्पणी के बाद राजनीतिक घमासान छिड़ गया है. गोगोई के बायन के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के मुखिया शरद पवार (Sharad Pawar) ने भी कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं. शरद पवार के बयान के बाद शिवसेना (Shiv Sena) के मुखपत्र सामना (Saamana) के जरिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को लेकर बेहद तल्ख टिप्पणी की गई है साथ ही केंद्र की मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की गई है.
शिवसेना (Shiv Sena) के मुखपत्र सामना (Saamana) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को लकर सवाल खड़े करते हुए लिखा है, 'लोकतंत्र का एक प्रमुख स्तंभ किस प्रकार से खोखला हो गया है, इस पर गोगोई का स्पष्टीकरण प्रकाश डालने वाला है. वरिष्ठ नेता शरद पवार (Sharad Pawar) ने भी गोगोई के वक्तव्य को चिंताजनक बताया है. गोगोई ने नई व्यवस्था को लेकर सच कहने का प्रयास किया है क्या?'
सामना में लिखा है, 'आखिरकार सवाल न्याय-व्यवस्था के विश्वास का है. मतलब सरकार की दबंगई के विरोध में न्यायालय की ओर से जो कुछ आशा की किरण दिखती है, वह भी चीफ जस्टिस के वक्तव्य से धूमिल हो चुकी है. जिस किसान आंदोलन (Farmers Protest) के कारण सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने मोदी सरकार के सुर में सुर मिलाया है, उन आंदोलनकारी किसानों को सरकार पहले ही देशद्रोही घोषित कर चुकी है.
किसानों की ट्रैक्टर रैली का जिक्र करते हुए सामना में लिखा है, '26 जनवरी को आंदोलन करने वाले किसानों का एक दल दिल्ली में घुसा. लाल क़िला (Red Fort) पर उन्होंने उत्पात मचाया. इसका ठीकरा सरकार को किसानों पर ही फोड़ना था लेकिन हुआ उल्टा. इस उत्पात प्रकरण में सत्ताधारी भाजपा (BJP) का ही हाथ होने का सबूत सामने आया है. प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शक और प्रेरक शरद पवार ने भी यह सच बताया है. लाल क़िला पर उत्पात मचाने वाले सत्ताधारियों के ही चेले-चपाटे थे. वे किसान नहीं थे. ऐसा आरोप पवार ने लगाया है, जो महत्वपूर्ण है.'
राज्य सभा में पीएम मोदी के आंसुओं पर एक बार फिर कटाक्ष करते हुए लिखा है, 'शनिवार को संसद में अधिवेशन की समाप्ति पर प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार शरद पवार (Sharad Pawar) को महान बताया. उन्हीं पवार ने मोदी की हकीकत बयां की, यह अच्छा ही हुआ. देश के प्रधानमंत्री ने राज्य सभा से रिटायर होने वाले कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) के लिए आंसू बहाए लेकिन तीन महीनों से दिल्ली की सीमा पर आंदोलन करने वाले किसानों की समस्याओं पर वे नहीं सुबकते. माननीय सर्वोच्च न्यायालय को हिंदुस्थान के संविधान में इस व्यवहार पर कुछ उपाय हो तो बताना चाहिए. संविधान में कर्तव्य की बात निकली है इसलिए कहा जा रहा है. किसानों की समस्याओं पर हिंदुस्थानी संविधान को सुबकने तो दो!'
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