मृत्युभोज एक कुरीति नहीं बल्कि सामाजिक कलंक भी है. समाज सुधारकों का मानना है कि मृत्युभोज जैसी कुरीति सालों पहले कुछ स्वार्थी लोगों ने भोले-भाले इंसानों में फैलाई थी.
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Ajmer: राजस्थान के अजमेर जिले के नसीराबाद उपखण्ड में मृत्युभोज प्रथा खत्म करने के लिए कड़ा कदम उठाया गया. जिसकी सराहना सभी लोग कर रहे हैं.
नसीराबाद उपखंड की पंचायत लवेरा के गांव मोड़ी में सामाजिक सुधार के ध्वजवाहक हरीराम जाट के पिताजी भागचन्द जाट का निधन हो गया. इस इलाके के जाट समाज में मृत्युभोज की कुरीति गहराई तक पैर पसारे हुए है. इस कुरीति की वजह से कई परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से शैक्षणिक स्तर भी प्रभावित हुआ है. सामाजिक सुधार के ध्वजवाहक बामसेफ संगठन के पदाधिकारी हरीराम जाट ने अपने पिताजी के निधन पर आयोजित सामाजिक कार्यक्रम में मृत्युभोज नहीं करने का कठोर निर्णय लिया है.
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हरीराम जाट बामसेफ ओबीसी विंग और किसान संगठन में क्षेत्रीय पदाधिकारी हैं. इनके सराहनीय पहल की बामसेफ जिलाध्यक्ष ओमप्रकाश वर्मा सहित अन्य व्यक्तियों ने सराहना की है. हरिराम जाट ने कहा, '' कुरीति को खत्म करने के लिए किसी को पहल करनी होती है. इसलिए उन्हीं ने पहल कर दी. पारंपरिक कुरीति को खत्म करने का निर्णय कोई आसान काम नहीं होता. पंच-पटेलों के दबाव और नारद मानसिकता वाले व्यक्तियों से लड़ना पड़ता है. इस इलाके में हरीराम जाट और परिजनों द्वारा मृत्युभोज नहीं करने का निर्णय जाट समाज में नजीर बनेगा. ''
जहां मौत हो जाए वहीं बैठकर मिठाई खाना कितना उचित ?
समाज सुधारकों का मानना है कि मृत्युभोज जैसी कुरीति सालों पहले कुछ स्वार्थी लोगों ने भोले-भाले इंसानों में फैलाई थी. जमीन और जेवर गिरवी रखकर मृत्युभोज करने का दबाव बनाया जाता था. साथ ही अधिकांश लोग उस गिरवी रखी जमीन और जेवर नहीं छुड़ा पाते थे. जिसके चलते साहूकार और सम्पन्न व्यक्तियों की गुलामी करने के लिए विवश हो जाते थे. वहीं किसी व्यक्ति के मरने पर मिठाइयां परोसी जाएं और चटकारे लेकर खाई जाएं. यह शर्मनाक परम्परा है. मृत्युभोज कहीं स्थानों पर एक ही दिन में किया जाता है तो कहीं तीसरे दिन से शुरू होकर बारहवें-तेरहवें दिन तक चलता है.
Report- Manveer Singh