Rajasthan Election : राजस्थान की इस विधानसभा सीट पर पिछले 25 सालों से हार रही कांग्रेस, अन्य दलों को मिले ज्यादा मौके
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Rajasthan Election : राजस्थान की इस विधानसभा सीट पर पिछले 25 सालों से हार रही कांग्रेस, अन्य दलों को मिले ज्यादा मौके

Siwana Vidhansabha Seat : बाड़मेर की सिवाना विधानसभा सीट है. जहां पिछले 25 सालों से कांग्रेस को शिकस्त का सामना करना पड़ रहा है, जबकि यहां की जनता ने कांग्रेस से ज्यादा अन्य दलों को मौका दिया है.

Rajasthan Election : राजस्थान की इस विधानसभा सीट पर पिछले 25 सालों से हार रही कांग्रेस, अन्य दलों को मिले ज्यादा मौके

Siwana Vidhansabha Seat : मारवाड़ के इतिहास में सिवाना की रक्षा के लिए कल्ला राठौड़ और हाडी रानी के बलिदान को आज भी याद किया जाता है. लेकिन आजादी के 76 साल में सिवाना का सियासी इतिहास भी बेहद दिलचस्प रहा है. यह वह विधानसभा सीट है जहां पिछले 25 सालों से कांग्रेस को शिकस्त का सामना करना पड़ रहा है, जबकि यहां की जनता ने कांग्रेस से ज्यादा अन्य दलों को मौका दिया है. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ा कि उस से 2 गुना ज्यादा वोट निर्दलीय को मिल गया. जबकि भाजपा की जीत हुई.

जातीय समीकरण

सिवाना विधानसभा सीट के जातीय समीकरण की बात की जाए तो यहां 17.21 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाता हैं जबकि 8.81 फ़ीसदी अनुसूचित जनजाति के वोटर्स है. यह सीट कई दशकों तक एससी वर्ग की रही, लेकिन 2008 के बाद से यह सीट सामान्य वर्ग की है.

सिवाना विधानसभा सीट का इतिहास

पहला विधानसभा चुनाव 1951

सिवाना विधानसभा क्षेत्र का गठन 1951 में हुआ. इस चुनाव में कांग्रेस ने नंदकिशोर को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं राम राज्य परिषद की ओर से मोटाराम चुनावी मैदान में उतरे. जहां मोटाराम को 14095 वोट मिले तो वहीं कांग्रेस उम्मीदवार नंदकिशोर के खाते में महज 2762 वोट आय. इस चुनाव में राम राज्य परिषद के मोटाराम की प्रचंड जीत हुई.

विधानसभा चुनाव 1962

इस चुनाव में यह सीट सामान्य से एससी वर्ग की सीट में बदल गई. कांग्रेस की ओर से हरीराम चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं उनके सबसे करीबी प्रतिद्वंदी रावत राम थे जो कि निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे. जबकि राम राज्य परिषद के लक्ष्मण दास ने भी ताल ठोकी. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार हरीराम की जीत हुई जबकि उनके करीबी प्रतिद्वंदी निर्दलीय उम्मीदवार रावत राम 4856 वोटों से संतोष करना पड़ा. जबकि राम राज्य परिषद के लक्ष्मण दास को 4,453 वोट मिले. हरिराम को 5,863 मतदाताओं ने वोट दिया.

विधानसभा चुनाव 1967

इस चुनाव में यह सीट एससी वर्ग से फिर सामान्य सीट हो गई. कांग्रेस की ओर से हरिराम एक बार फिर चुनावी मैदान में थे, तो वही स्वतंत्र पार्टी की ओर से कालूराम ने ताल ठोकी. चुनावी नतीजे आए तो हरिराम के पक्ष में 7,503 वोट पड़े तो वहीं स्वतंत्र पार्टी के कालूराम को 10,282 वोट मिले और इस चुनाव में उनकी जीत हुई.

विधानसभा चुनाव 1972

1972 के विधानसभा चुनाव में सिवाना विधानसभा सीट एससी कोटे में डाल दी गई. लिहाजा ऐसे में यहां के चुनावी समीकरण एक बार फिर बदल गए. इस चुनाव में कांग्रेस ने जेसा राम को अपना उम्मीदवार बनाया तो वहीं स्वतंत्र पार्टी से सवाइया उम्मीदवार बने. इस चुनाव में बदले समीकरणों का फायदा एक बार फिर कांग्रेस को मिला और कांग्रेस उम्मीदवार जेसा राम को 21,061 वोट मिले तो वहीं स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार को महज 5,346 वोटों से संतोष करना पड़ा.

विधानसभा चुनाव 1977

1977 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बाजी पलटने वाली थी, इस चुनाव में कांग्रेस ने फिर जेसा राम पर ही भरोसा जताया और उन्हें चुनावी मैदान में उतारा. वहीं जनता पार्टी की ओर से चेनाराम ने ताल ठोकी. इस चुनाव में 17,868 वोट पाकर चेनाराम की विजयी हुई, जबकि उस वक्त के मौजूदा विधायक जेसा राम को हार का सामना करना पड़ा. हालांकि दोनों उम्मीदवारों के बीच जीत और हार का अंतर महज 1000 वोटों का था.

विधानसभा चुनाव 1980

1980 में कांग्रेस का विभाजन हो गया था और जनता पार्टी के उम्मीदवार रहे चेनाराम अब भाजपा के उम्मीदवार बने. जबकि कांग्रेस (आई) की ओर से धारा राम चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस (आई) के प्रत्याशी धारा राम की 20,190 वोटों से जीत हुई. जबकि उस वक्त के मौजूदा विधायक रहे चेनाराम को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा.

विधानसभा चुनाव 1985

इस चुनाव में रामराज्य पार्टी के टिकट पर सिवान के पहले विधायक बने मोटाराम कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे जबकि बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बदलते हुए हुकम राम को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में सिवान के पहले विधायक रहे मोटाराम की 21,373 वोटों से जीत हुई. जबकि बीजेपी के प्रत्याशी हुकम राम को हार का सामना करना पड़ा.

विधानसभा चुनाव 1990

1990 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने अपने पुराने उम्मीदवारों पर ही फिर से भरोसा जताया. हालांकि चुनावी नतीजे आए तो बाजी पलट चुकी थी.इस चुनाव में कांग्रेस के मोटाराम को 18,044 मत मिले तो वहीं बीजेपी के हुकम राम को 31,866 वोट मिले और उनकी जीत हुई.

विधानसभा चुनाव 1993

1993 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस ने अपने-अपने उम्मीदवार बदल दिए. इस चुनाव में बीजेपी की ओर से टीकमचंद कांत उम्मीदवार बने तो वहीं कांग्रेस की ओर से गोपाराम मेघवाल उम्मीदवार बने. टीकमचंद कांत के लिए कहा जाता है कि उन्होंने पोस्ट मास्टर की नौकरी छोड़कर बीजेपी से टिकट हासिल किया था और उनकी मेहनत इस चुनाव में सफल रही और 34,421 मतों से उनकी जीत हुई.

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विधानसभा चुनाव 1998

इस विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस ने अपने पिछले उम्मीदवार पर ही भरोसा जताया और गोपाराम मेघवाल को ही टिकट दिया. भाजपा ने अपने मौजूदा विधायक होने के बावजूद प्रत्याशी को बदला और गेना राम को टिकट दिया. इस चुनाव में कांग्रेस की रणनीति सफल हुई. गोपाराम मेघवाल विधायक बने. हालांकि गोपाराम मेघवाल के जीत के बाद अब तक कांग्रेस यहां से चुनाव नहीं जीत पाई है.

विधानसभा चुनाव 2003

2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उस वक्त के तत्कालीन विधायक गोपाराम मेघवाल पर ही भरोसा जताया तो वहीं उनके सबसे करीबी प्रतिद्वंदी 1993 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत चुके टीकमचंद कांत रहे. हालांकि इस बार टीकमचंद कांत ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और उनकी 41,133 वोटों से जीत हुई.

विधानसभा चुनाव 2008

2008 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर समीकरण बदल चुके थे. इस चुनाव में एससी सीट रही सिवाना एक बार फिर सामान्य वर्ग की सीट बन गई. इस चुनाव में बीजेपी की ओर से कानसिंह कोटडी चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी की ओर से महेंद्र कुमार ने चुनावी ताल ठोकी. वहीं सामान्य सीट होने के बाद इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर बालाराम ने ताल ठोकी. हालांकि इस चुनाव में बसपा के महेंद्र कुमार ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया और कांग्रेस उम्मीदवार बालाराम तीसरे स्थान पर रहे. जबकि भाजपा के कान सिंह ने बसपा के महेंद्र कुमार को 3,982 वोटों के अंतर से शिकस्त दी. इस चुनाव में कान सिंह की जीत हुई.

विधानसभा चुनाव 2013

2013 के विधानसभा चुनाव में बेहद ही दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला. इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टी की ओर से नए चेहरों को टिकट दिया गया. जहां भाजपा ने हमीर सिंह भायल को अपना उम्मीदवार बनाया तो वही कांग्रेस की ओर से महंत निर्मल दास चुनावी मैदान में उतरे. हालांकि प्रत्याशी बदलने के बावजूद भाजपा की जीत को कांग्रेस रोक नहीं पाई और हमीर सिंह भायल की 69,014 वोटों से जीत हुई.

विधानसभा चुनाव 2018

2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार हमीर सिंह भायल को ही रिपीट करते हुए अपना उम्मीदवार बनाया. 2018 के विधानसभा चुनाव बाड़मेर की सिवाना सीट पर 2,42,581 मतदाताओं ने उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला किया. इस चुनाव में कांग्रेस की ओर से पंकज प्रताप सिंह चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं भाजपा ने हमीर सिंह भायल को टिकट दिया. वहीं कांग्रेस के टिकट पर 2008 में चुनाव लड़ चुके बलराम इस बार निर्दलिय के तौर पर अपनी किस्मत आजमाने चुनावी मैदान में उतरे. इस बेहद ही रोमांचक मुकाबले में हमीर सिंह ने महज 957 वोटों के अंतर से जीत हासिल की जबकि बलराम ने पूरा जोर लगा दिया लेकिन फिर भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में 32% मतदाताओं ने भाजपा उम्मीदवार हमीर सिंह भायल का साथ दिया और उन्हें 997 वोटों के मार्जिन से जीत दिलवाई तो वहीं 31% वोटों के साथ निर्दलीय उम्मीदवार बलराम दूसरे नंबर पर रहे जबकि कांग्रेस उम्मीदवार पंकज प्रताप सिंह को महज राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के उम्मीदवार सातारा से 1% ज्यादा वोट मिला.

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