Bikaner News: बीकानेर में अद्भुत कलाकारी के साथ ताज़िये बनाए जा रहे हैं. इस्लामी साल हिजरी का पहला महीना मुहर्रम होता है और मुहर्रम के महीने की दस तारीख़ को इस्लाम के आख़िरी पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए ताज़िये निकाले जाते हैं.
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Bikaner News: राजस्थान के बीकानेर में अद्भुत कलाकारी के साथ ताज़िये बनाए जा रहे हैं. इस्लामी साल हिजरी का पहला महीना मुहर्रम होता है और मुहर्रम के महीने की दस तारीख़ को इस्लाम के आख़िरी पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए ताज़िये निकाले जाते हैं. इन ताज़ियों का निर्माण मुहर्रम का चांद नज़र आते ही शुरू हो जाता है और इन्हें बनाने वाले कलाकार बहुत अक़ीदतमंदी के साथ इस काम में समर्पित रहते हैं.
बीकानेर में भी अद्भुत कलाकारी के साथ ताज़िये बनाए जा रहे हैं. पिछले कई दिनों से कलाकार इसको बनाने में जुटे हैं, जो आज शाम होते ही निकाले जाएंगे. ताज़िये बनाने वाले कलाकार पूरी तरह पाक-साफ होकर ये काम करते हैं. ये काम पूरी तरह से निःशुल्क किया जाता है. यहां तक कि मैटेरियल भी खुद ही लेकर आते हैं.
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एक ताज़िया बनाने में कम से कम 25 से 30 हज़ार रुपयों का खर्च आता है. हम आपको बता दें जहां अन्य धर्मों में नया साल खुशियों के साथ मनाने की परंपरा है, वहीं इस्लामी नए साल की शुरुआत गम से होती है. इस्लामी नया साल हिजरी के नाम से जाना जाता है और इसका पहला महीना मुहर्रम होता है.
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इसी महीने में इस्लाम के आखिरी नबी हज़रत मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन ने इराक़ स्थित करबला में हक़ और सत्य की खातिर अपनी शहादत दी थी. उनका रोज़ा यानी दरगाह करबला में है. हर साल दस मुहर्रम को उनके रोज़े के प्रतीक के रूप में ताज़िये बनाकर उनकी शहादत को याद किया जाता है.