Suratgarh: कला पर कोरोना का सर्वाधिक प्रभाव, लोक कलाकारों को नहीं मिला सहयोग
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Suratgarh: कला पर कोरोना का सर्वाधिक प्रभाव, लोक कलाकारों को नहीं मिला सहयोग

कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए देशभर में लॅाक डाउन के दौरान इस कला के कलाकार आर्थिक रूप से कर्जाई हो गए थे. कोरोना संक्रमण के दो दौर के बाद पहली बार कला दिखा रहे कलाकार दलीप राजभाट ने नम आंखों से लॉकडाउन में बिताए समय की जानकारी दी.

लोक कलाकारों को नहीं मिला सहयोग

Suratgarh: राजा-महाराजाओं के समय बहुरूपिया कलाकारों को हुकूमतों का सहारा मिलता था लेकिन अब बहुरूपिया कलाकार और कला दोनों मुश्किल में है. कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए देशभर में लॅाक डाउन के दौरान इस कला के कलाकार आर्थिक रूप से कर्जाई हो गए थे. कोरोना संक्रमण के दो दौर के बाद पहली बार कला दिखा रहे कलाकार दलीप राजभाट ने नम आंखों से लॉकडाउन में बिताए समय की जानकारी दी.

सवाईमाधोपुर की बौंली तहसील के रहने वाले बहुरूपिया कलाकार ने अपनी कला के पहले दिन की शाम रोकर गुजारी. दलीप ने बताया कि कोरोना महामारी का असर ऐसा पड़ा कि परिवार को पालने का जरिया रही कला से दो साल तक दूर रहना पड़ा. उन्होंने बताया कि उनके परिवार में उनके भाई भी इसी कला से परिवार का भरण पोषण करते आए है. कोरोना महामारी के कारण परिवार पर ऐसा वज्रपात हुआ कि आर्थिक स्थिति खराब हो गई और कर्जा सिर पर चढ गया. कोरोना काल के दौरान परिवार का पेट भरने के लिए आठ माह तक खाद्यान्न का सहयोग सरकार से मिला पर अन्य कोई सहायता मुहैया नहीं हो पाई. इस समय परिवार के सदस्यों के पास खाद्यान्न रखकर में कला दिखाने के लिए यहां आ गया हूं.

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दलीप ने बताया कि यह कला उनके पुरखे करते आ रहे थे. वहीं पिता से उन्होंने इस कला को सीखा है और अब बच्चे इस कला में नहीं जाना चाहते हैं और मैं भी उन्हें इस कला में नहीं भेजना चाहता हूं. पांचवी तक पढे़ दलीप ने बताया कि वह अपने बच्चों को पढा रहा है. दलीप अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए गांव की गलियों में निकले तो उन्होंने सबको कोरोना महामारी की तीसरी लहर से एहतियात बरतने के लिए कहा. वहीं कला के माध्यम से उन्होंने सभी को सोशियल डिस्टेंस की पालना करने और बार-बार साबुन से हाथ धोते रहने का संकल्प दिलवाया है.

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क्या है बहुरूपिया कला
राजस्थान में विशेष रूप से प्रचलित बहुरूपिया कला अनेक कलाकारों को विरासत में मिली है. इस कला के कलाकार हिंदू और मुस्लमान दोनों है. मगर वे कला को मजहब की बुनियाद पर विभाजित नहीं करते. मुसलमान बहुरूपिया कलाकार हिंदू प्रतीकों और देवी-देवताओं का रूप धारण करने में गुरेज नहीं करता तो वहीं हिंदू भी पीर-फकीर का रूप धारण करने में संकोच नहीं करते है. बहुरूपिया कला साम्प्रदायिक सद्भाव को बढावा देती आ रही है. राजा महाराजाओं के दौर में इस कला और कलाकार की इज्जत होती थी और उस समय इन्हें उमरयार कहा जाता था. बहरूपिया कलाकार दलीप ने बताया कि आज हर कोई भेष बदल रहा है और बदनाम हम हो रहे है.

Report: Kuldeep Goyal

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