क्षत्रिय युवक संघ समारोह: आखिर क्या था इस सम्मेलन का उद्देश्य? यहां पढ़िए Analysis
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क्षत्रिय युवक संघ समारोह: आखिर क्या था इस सम्मेलन का उद्देश्य? यहां पढ़िए Analysis

पिछले तकरीबन एक महीने से भी ज्यादा समय से क्षत्रिय युवक संघ के हीरक जयंती समारोह की तैयारियों में समाज के नेता जुटे हुए थे. बुधवार को जयपुर के भवानी निकेतन परिसर में यह कार्यक्रम संपन्न हुआ, तो समाज और क्षत्रिय युवक संघ से जुड़े सभी लोगों ने राहत की सांस ली है. 

सम्मेलन में बड़ी संख्या में जुटे लोग.

Jaipur: पिछले तकरीबन एक महीने से भी ज्यादा समय से क्षत्रिय युवक संघ के हीरक जयंती समारोह की तैयारियों में समाज के नेता जुटे हुए थे. बुधवार को जयपुर के भवानी निकेतन परिसर में यह कार्यक्रम संपन्न हुआ, तो समाज और क्षत्रिय युवक संघ से जुड़े सभी लोगों ने राहत की सांस ली है. कार्यक्रम को सुपर सक्सेसफुल माना जा रहा है. क्षत्रिय युवक संघ के पदाधिकारी और समाज से जुड़े लोग इस बात को लेकर खुश हैं कि इतने बड़े आयोजन में विशाल जनसमूह जुटा और राजधानी में पत्ता तक नहीं हिला. शांति से आयोजन हुआ और बिना किसी व्यवधान के यह संपन्न भी हो गया. समाज के लोगों के साथ प्रशासन के लिए भी यह बड़ी राहत की बात थी.

लेकिन इस आयोजन के बाद लोगों के मन में जिज्ञासा इस बात की है कि दरअसल इस सम्मेलन का उद्देश्य क्या था? आखिर राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों से आए क्षत्रिय समाज के लोग यहां से क्या संदेश लेकर गए? साथ ही सवाल यह भी कि क्या इस आयोजन से राजपूत समाज अपनी राजनीतिक ताकत का मैसेज राजनीतिक दलों तक दे सका है और सवाल यह भी कि क्या साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस राजनीतिक ताकत का असर दिख सकेगा?

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सम्मेलन में जुटी ऐतिहासिक भीड़ से गदगद दिखे नेता: 
क्षत्रिय युवक संघ के हीरक जयंती समारोह में समाज ने प्रदेश के हर हिस्से से क्षत्रिय समाज के लोगों को न्योता दिया और यहां भवानी निकेतन पर जुटने का आह्वान किया. समाज के लोग बड़ी संख्या में पहुंचे भी और उन्होंने अपनी ताकत का एहसास कराने की कोशिश भी की. लोकतंत्र में सिर गिने जाते हैं और भवानी निकेतन पर मौजूद भीड़ से राजपूत समाज की ताकत का एहसास कराया जा रहा था. मंच पर संबोधन के दौरान खुद प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ ने भी कहा कि आज देश में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में राजा का जनमत पेटी से होता है. उन्होंने कहा कि समाज में पहले राजनीतिक चेतना नहीं थी, लेकिन अब राजपूत समाज जाग रहा है. 

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राजेन्द्र राठौड़ और प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि राजपूत समाज के लोगों को अपने गांव और अपनी जमीन से जुड़े रहना है. उन्होंने आह्वान करते हुए कहा कि संयुक्त परिवार की संपत्ति का भी रखरखाव होना चाहिए. साथ ही लोगों को अपने गांव की जमीन नहीं बेचनी चाहिए. इस सम्मेलन में आई भीड़ से समाज के नेता उत्साहित दिखे. अलग-अलग दावों में नेताओं ने भीड़ का अपने हिसाब से आंकलन किया. कुछ नेताओं का कहना था कि 12 दिसंबर को राजधानी के विद्याधर नगर में हुई कांग्रेस की महंगाई विरोधी रैली में आई भीड़ से कहीं ज्यादा लोग क्षत्रिय युवक संघ के समारोह में जुटे. लोगों ने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही अभी तक इतना बड़ा सम्मेलन राजधानी में नहीं कर पाई. कार्यक्रम में आई भीड़ का आंकलन पुलिस के कुछ लोगों ने ढाई से तीन लाख तक की संख्या मानते हुए किया.

आखिर क्या था इस सम्मेलन का उद्देश्य? कितने कामयाब रहे आयोजक?
क्षत्रिय युवक संघ के हीरक जयंती समारोह में लोगों की भीड़ ने नेताओं का उत्साह बढ़ा दिया, लेकिन चर्चा इस बात की रही कि आखिर इस सम्मेलन का उद्देश्य क्या था? क्या यह मान लिया जाए कि समाज के लोगों ने बिना किसी उद्देश्य के इतनी भीड़ जुटाई थी? क्या यह मान लिया जाए कि समाज को सिर्फ संस्कारवान बनाने की जो बात मंच से कही गई, उसी का संबोधन देने के लिए इतने लोगों को राजधानी में बुलाया गया था? या फिर यह मान लिया जाए कि समाज यह दिखाना चाहता था कि क्षत्रिय युवक संघ के एक आह्वान पर इतने लोगों को राजधानी में बुलाया जा सकता है?

दरअसल लोकतंत्र में सिर गिने जाते हैं और जब किसी समाज का कार्यक्रम इतने बड़े स्तर पर हो तो उसका भी एक राजनीतिक मैसेज होता है। इस सम्मेलन को भी राजनीतिक मैसेज के मायने में किसी रूप से अलग नहीं माना जा सकता। प्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव में दो साल से भी कम समय बचा है। ऐसे में माना जा रहा है कि 2023 के चुनाव से पहले राजपूत समाज ने अपनी तरफ से एक अघोषित मैसेज राजनीतिक दलों को दे दिया है. खासतौर से यह मैसेज उन लोगों के लिए है जो राजपूत समाज की अनदेखी करते हैं या इस समाज की राजनीतिक क्षमता को कमतर आंकते हैं.

क्षत्रिय युवक संघ के पदाधिकारियों ने मंच से नेताओं ने अपने संबोधन में किसी भी राजनीतिक दल का ना तो महिमामंडन किया, ना ही उसे सिरे से खारिज किया, लेकिन 2023 के चुनाव से पहले अपने आप में इस तरह के बड़े सम्मेलन से राजपूत समाज ने यह जताने की कोशिश की है, कि अगर समाज कोई मानस बना ले तो फिर वह धारा बदल सकता है. लेकिन सवाल यह है कि क्या राजपूत समाज के अघोषित राजनीतिक मैसेज को राजनीतिक पार्टियां मानेंगी? और सवाल यह भी कि अगर पार्टियां जयपुर में जुटी क्षात्र समाज भीड़ का कोई राजनीतिक मैसेज मानती भी हैं तो क्या वह मैसेज राजनीतिक पार्टियों के नीति नियंताओं के मानस पटल पर अगले दो साल तक अंकित रह पाएगा? अगर ऐसा हुआ तो क्या समाज को आने वाले चुनाव में टिकट वितरण के दौरान उसका कोई फायदा मिलेगा?

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